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अहंकार - भाग ३ 🌹🙏

🌹🙏💫💫💫💫💫💫💫🇮🇳💫💫💫💫💫💫💫🌹✍️ बीते तीन चार दिनों मैं पारिवारिक यात्रा पे रहा। ससुराल के सुख का आनंद लिया। और कुछ अपने संबंधियों से मुलाकात भी की। मैं अपने जन्मस्थान पे हमेशा जाता हूं और वहां भी गया। वहां मेरी रूह बसती है।  हां वहां भी गया जहां जाकर मुझे आत्मिक शांति और अध्यात्म का अनुभव होता है। मां मुझे अपने दर पे आने देती है। मेरे मन की सभी तृष्णाएं और सब अहंकार वहां हवन कुंड में स्वाह हो जाते है।  मैं "मां श्री नयना देवी जी" की बात कर रहा हूं। और ये सत्य है । आप की जहां श्रद्धा आस्था होती है ये सब अपने आप दूर हो जाते है। और एक बात , ईश्वर सब को समय समय पे आइना किसी न किसी रूप में दिखाते रहते है। आस्थावान को इशारा  मिलता है और सुधार होता है। बाकी की आंख पे पट्टी बंध जाती है।   आज महाभारत में दिए ज्ञान को समझने की जरूरत है। जान लीजिए भगवान स्वयं अपने भक्तों का अभिमान दूर करते हैं , फिर वह चाहे उनकी अर्धागिनी सत्यभाभा हों, प्रिय गोपियां हों, अभिन्न मित्र अर्जुन हो, वाहन गरुड़ हो या भक्त नारद हो । भगवान अकिंचन को ही प्राप्त होते हैं अभिमानी को नहीं। अर...
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अहंकार - भाग २

🌹🙏💫💫💫🇮🇳💫💫💫🌹✍️ कल से आज तक व्यर्थ के अहंकार और अभिमान वश उपजे क्रोध के कई उदाहरण सामने आ रहे है।  शिक्षक अपने विवेक से दूर होता दिखाई दिया। भाई अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करता दिखा। मित्र हर तरह से सही साबित होता दिखाई दिया। हमारा समाज पिछले पचास वर्षों में कुछ ज्यादा ही असहनशील नजर आने लगा है।  "एक कहो और आगे से दस सुनो"  स्तिथि कमोवेश सब जगह दिखाई देने लगी है। कल बात के अंत में गीता में कुछ व्याख्या आपके समक्ष रखनी थी। श्लोक ये था ----  दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च । अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ।। (गीता १६।४) गीता (१६।४) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—हे पार्थ ! दम्भ, घमण्ड, अभिमान, क्रोध, कठोरता और अज्ञान—ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने इन दुर्गुणों को ‘आसुरी सम्पदा’ कहा है । ‘आसुरी सम्पदा’ का अर्थ है तमोगुण से युक्त अहंकार, दम्भ, घमण्ड, अभिमान, क्रोध तथा कठोरता आदि दुर्गुणों और बुराइयों का समुदाय जो मनुष्य के अंदर विद्यमान रहते हैं ।  ये ही दुर्गुण मनुष्य को संसार में फंसाने वाले और अधोग...

अहंकार।🤔✍️

🌹🙏💫💫💫🇮🇳💫💫💫🌹✍️ किंचित आज मन में बार बार अहंकार शब्द गूंज रहा है। समाज में चारों और ये बेहद विकराल रूप ले चुका है। "मैं" की हद अब बेहद रूप में सब और दिखाई देने लगी है। अहंकार के सबसे बड़ी गति ये है के ये दिमाग और आम समझ को आंशिक समय के लिए शिथिल कर देता है। और इसी दौरान मनुष्य रूपी जानवर बेकाबू हर रूप में हो जाता है।  बचपन से ही घर में हमें इससे दूरी बनाए रखनेकी सलाह दी जाती रही है। बार बार चेताया भी जाता रहा है। "फलों से लगा वृक्ष झुका रहता है"। अहंकार के दुष्परिणाम हमे बहुत तरह के उदाहरण देकर समझाए जाते रहे है। स्कूल में भी इसकी खूब शिक्षा समय समय पर दी जाती थी। मगर मनुष्य रूपी जानवर हर वक्त मनुष्य रूप में तो नहीं रह सकता। राक्षस कुल में भी इसे तूल नही दिया जाता था। राक्षस स्वभाव से ही अहंकारी और क्रोधी होते है।  इसलिए एक बात जान लीजिए बुरी सलाह से राजा खत्म हो जाता है, अहंकार से गुण और नशा करने से शर्म नष्ट हो जाती है । ऐसा ही एक संवाद रामायण में देखने को मिलता है ---  शूर्पणखा और रावण का प्रसंग - श्रीरामचरितमानस के अरण्य कांड में लक्ष्मण ने शूर्पणखा के ...

कुछ बैराग के क्षण🤔

🌹🙏💫💫💫⛳💫💫💫🌹✍️ अमूमन मैं शाम को अगर अपने दफ्तर गया तो 4 या 4.30 बजे शाम को घर के लिए निकलता हूं। आज भी जब निकला। मौसम बेहद गर्म था। लू चल रही हो तो 40 डिग्री भी बहुत थपेड़े मारता है। मैदानी इलाकों में जमीन पानी सब गर्म हो जाता है। ये गर्मी खेती बाड़ी में बहुत उपयोगिता भी रखती है। मगर जब जमीन गर्म होती है तो नंगे पैर अपने पे आसानी से  धरने नही देती। आज पिता जी की याद भी आ गई। हमारे पिता का जन्म भी पंजाब के एक गरीब परिवार में हुआ था। पढ़ने के लिए स्कूल भी घर से सात किलोमीटर दूर था। बताते थे चप्पल के पैसे तो नही होते थे और गर्म जमीन पे खेतों खेतों चल के भी जाना पड़ता था। और वे पीपल के पत्ते पैरों में बांध कर जाया करते थे। समय बदला आज मुझे याद नही पड़ता की में कभी अपने जीवन काल में कभी बिना चप्पल के रहा। घर के बेड़े में कभी धूप में अगर पैर रख भी दिया तो जल्दी से भाग के बापिस ठंडे में आ गए।  आप सोच रहे होंगे ये सब क्या बात लिख रहा है। बात ये है कुछ लोगो की दुनिया अभी भी वही साठ साल पीछे है। वो भी दिल्ली जैसे शहर में। स्कूल तो भूल ही जाईए।ये नजारा बहुत से शहरों का है और मानिए...

"विकार"

🌹🙏🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏 आज बहुत दिनो बाद कुछ लिखने का मन किया। कुछ महसूस हुआ कुछ गुजरा तो लगा कुछ बात करूं। शब्द है "विकार"। विकार को बहुत शब्दो से रूप दिया गया है जैसे की विकार का पर्यायवाची शब्द है दोष, बुराई, बिगाड़, खराबी, त्रुटि, कमी, फ़ितूर, अगुण, अपकृष्टता, अपगुण, अबतरी, अवगुण, इल्लत, ऐब, कज, कमी, ख़ामी, खामी, खोट, दुर्गुण, नुक़्स, विकृति आदि हैं। अगर इसे परिभाषित करना हो तो इसका मतलब किसी वस्तु का रूप, रंग आदि बदल जाना होता है । विकृति उत्पन्न होना होता है। विकार में निरुक्ति के चार प्रधान नियमों में एक है जिसके अनुसार एक बर्ण के स्थान में दूसरा वर्ण हो जाता है । ये दोष की प्राप्ति है । बिगड़ना या खराबी भी कह सकते है। ये दोष भी है  बुराई भी और अवगुण भी । ये मन की वृत्ति या अवस्था भी है । मनोवेग या प्रवृत्ति भी है । यह वासना  भी है।  वेदांत और सांख्य दर्शन के अनुसार किसी पदार्थ के रूप आदि का बदल जाना भी विकार ही है। परिणाम । जैसे,ककण सोने का विकार है; क्योंकि वह सोने से ही रूपांतरित होकर बना है । ये एक तरह से उपद्रव भी है और मानसिक हानि भी । ये...

दीपावली की शुभकामनाएं २०२३।

🌹🙏🏿🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏🏿 आज बहुत शुभ दिन है। कार्तिक मास की अमावस की रात है। आज की रात दीपावली की रात है। अंधेरे को रोशनी से मिटाने का समय है। दीपावली की शुभकानाओं के साथ दीपवाली शब्द की उत्पत्ति भी समझ लेते है। दीपावली शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली,  मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी),...

कार्तिक मास महत्व।

🌹🙏❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️✍️🌹 मेरा जन्म कार्तिक माह के प्रथम दिवस को हुआ। ये माह मेरे लिए हमेशा से ही खास रहा। दिन सोमवार का था तो हरि संग शिव भी जुड़ गए।  ये माह मुझमें कुछ खास ऊर्जा डाल देता है। इससे मुझे एक खास विश्वास का एहसास मजबूत होता है। कार्तिक माह हम हिंदुओं के लिए कुछ खास है ही। इसे इस श्लोक से समझा जा सकता है। “न कार्तिकसमो मासः न देवः केशवात्परः । न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम् ।।” अर्थात्- कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं है जब, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई देवता नहीं है, वेद के तुल्य कोई शास्त्र नहीं है और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है। इस वर्ष इस माह का आरंभ 29 अक्टूबर को हो रहा है। इस माह के आरंभ में हमारे घर   अमृत काल में प्रभात फेरी का आगमन  हुआ। श्री हरि संग अंजनी पुत्र संकीर्तन हुआ। चलिए थोड़ा और जाने इस माह को.... कार्तिक मास पुण्य अर्जन का मास है, यह व्रत-पर्वों तथा महोत्सवों द्वारा भगवान की आराधना का मास है। यम-नियम, संयम, भगवत कथा तथा वार्ता-श्रवण का मास है, यह व्रतियों तथा साधकों के लिए विशेष उपासना का मास है। हिंदू पंचांग ...