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"विकार"

🌹🙏🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏 आज बहुत दिनो बाद कुछ लिखने का मन किया। कुछ महसूस हुआ कुछ गुजरा तो लगा कुछ बात करूं। शब्द है "विकार"। विकार को बहुत शब्दो से रूप दिया गया है जैसे की विकार का पर्यायवाची शब्द है दोष, बुराई, बिगाड़, खराबी, त्रुटि, कमी, फ़ितूर, अगुण, अपकृष्टता, अपगुण, अबतरी, अवगुण, इल्लत, ऐब, कज, कमी, ख़ामी, खामी, खोट, दुर्गुण, नुक़्स, विकृति आदि हैं। अगर इसे परिभाषित करना हो तो इसका मतलब किसी वस्तु का रूप, रंग आदि बदल जाना होता है । विकृति उत्पन्न होना होता है। विकार में निरुक्ति के चार प्रधान नियमों में एक है जिसके अनुसार एक बर्ण के स्थान में दूसरा वर्ण हो जाता है । ये दोष की प्राप्ति है । बिगड़ना या खराबी भी कह सकते है। ये दोष भी है  बुराई भी और अवगुण भी । ये मन की वृत्ति या अवस्था भी है । मनोवेग या प्रवृत्ति भी है । यह वासना  भी है।  वेदांत और सांख्य दर्शन के अनुसार किसी पदार्थ के रूप आदि का बदल जाना भी विकार ही है। परिणाम । जैसे,ककण सोने का विकार है; क्योंकि वह सोने से ही रूपांतरित होकर बना है । ये एक तरह से उपद्रव भी है और मानसिक हानि भी । ये बीम
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दीपावली की शुभकामनाएं २०२३।

🌹🙏🏿🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏🏿 आज बहुत शुभ दिन है। कार्तिक मास की अमावस की रात है। आज की रात दीपावली की रात है। अंधेरे को रोशनी से मिटाने का समय है। दीपावली की शुभकानाओं के साथ दीपवाली शब्द की उत्पत्ति भी समझ लेते है। दीपावली शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली,  मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी),

कार्तिक मास महत्व।

🌹🙏❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️✍️🌹 मेरा जन्म कार्तिक माह के प्रथम दिवस को हुआ। ये माह मेरे लिए हमेशा से ही खास रहा। दिन सोमवार का था तो हरि संग शिव भी जुड़ गए।  ये माह मुझमें कुछ खास ऊर्जा डाल देता है। इससे मुझे एक खास विश्वास का एहसास मजबूत होता है। कार्तिक माह हम हिंदुओं के लिए कुछ खास है ही। इसे इस श्लोक से समझा जा सकता है। “न कार्तिकसमो मासः न देवः केशवात्परः । न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम् ।।” अर्थात्- कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं है जब, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई देवता नहीं है, वेद के तुल्य कोई शास्त्र नहीं है और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है। इस वर्ष इस माह का आरंभ 29 अक्टूबर को हो रहा है। इस माह के आरंभ में हमारे घर   अमृत काल में प्रभात फेरी का आगमन  हुआ। श्री हरि संग अंजनी पुत्र संकीर्तन हुआ। चलिए थोड़ा और जाने इस माह को.... कार्तिक मास पुण्य अर्जन का मास है, यह व्रत-पर्वों तथा महोत्सवों द्वारा भगवान की आराधना का मास है। यम-नियम, संयम, भगवत कथा तथा वार्ता-श्रवण का मास है, यह व्रतियों तथा साधकों के लिए विशेष उपासना का मास है। हिंदू पंचांग में, कार्तिक माह को

प्रेम पान भंडार जयपुर।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️ आज का दिन थोड़ा तसल्ली भरा था। काम के सिलसिले में आना जाना लगा ही रहता है तो आज जयपुर की तरफ कदम बढ़े। मौसम सुहाना था । बादल अठखेलियां करते बरसते घूम रहे थे। बच्चों सी शैतानी करते बरस रहे थे। प्रकृति ने छटा चाहूं और बिखेरी हुई थी। दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे दोनो और अरावली की सुंदरता बिखेरता आवाजाही का आनंद दे रहा था। जयपुर में दिनचर्या खत्म हुई तो शाम अपनी खूबसूरती ले आई। जयपुर वैसे भी खूबसूरत जगह है।  खूबसूरत गुलाबी शहर।  शहर की व्याख्या अपनी नजर से फिर कभी। आज तो बात होगी पान की। आपको अच्छा खाना और बहरीन शाम व्यतीत करनी हो तो रेडिसन सिटी एक अच्छी जगह है। बेहतरीन तंदूरी खाना आपको जायका और आनंद तो देगा ही और बेहतरीन बांसुरी सुनने का मौका भी। खाने के बाद पान का आनंद अपना ही है। मैने पान हिंदुस्तान के तकरीबन हर बड़े शहर में खाए है। आज पता चला एक बेहतरीन जगह का। आप जयपुर में रात का खाना खाएं और पहुंच जाए अजमेरी गेट।  मिर्जा इस्माइल रोड से टोंक रोड पे मुड़ते ही पेट्रोल पंप के साथ ही प्रेम पान भंडार है।  जो देर रात 2 बजे तक खुला रहता है।हम 10.30 बजे रात

जय बाबा सिद्ध चानन।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 मेरा पैतृक घर पंजाब के जिला रूप नगर की तहसील आनंदपुर साहिब के पास है। मेरे अपने गांव में पांडव कालीन शिव मंदिर है।मगर आज की कहानी उसके पास ही स्थित मंदिर सिद्ध चानन या कहें सिद्ध चानो की है। यह प्राचीन मंदिर हमारे गांव से 5 किलोमीटर दूरी पर है। इसका इतिहास भी द्वापर युग से जुड़ा हुआ है। इसकी कहानी जानने के लिए कुछ खोजबीन करनी पड़ी। सोचा आप से भी सांझा करूं। शुरू करते है अरदास से। मैने भी करवाई । जै जै बाबा सिद्ध चानो जी, रखे तू रखावे तू, वख्शे तू वख्शावे तू, दुशमन की दौड़ से, घोड़े की पौड़ से, रक्षा करनी बाबा जी, हिन्दु को काशी, मुसलमान को मक्का, दुशमन को तेरे नाम का धक्का। जय बाबा सिद्ध चानो जी। यह सिद्ध बाबा चानो की अरदास है। बाबा सिद्ध चानो के उत्तर भारत में बहुत से मंदिर हैं और उनकी मान्यता है। इनमें कुछ मंदिर जैसे मेरे गांव के पास आनंदपुर तहसील का मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के प्रागपुर का मंदिर, बिलासपुर जिले के समैला का मंदिर और हमीरपुर जिले के पिपलु के मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं। वैसे तो इन मंदिरों में हर दिन ही भक्तों का तांता लगा

कुछ भूली बिसरी यादें।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 कभी कभी याद आ जाती है कुछ भूली बिसरी सी यादें। और मंद मंद मुस्कुरा जाती है ये भूली बिसरी यादें। न जाने कितनी उम्मीदों से भरी थी ये भूली बिसरी यादें। वक्त गुजर गया उम्मीद गुजर गई बस रही तो ये भूली बिसरी यादें। हर दौर में कुछ चमन खिले कुछ गुल बने। वक्त गुजरा तब्दील हुई कुछ भूली बिसरी यादें। कुछ एहसास जो जिए थे इन सांस के साथ। गुजरे वक्त ने बना दिया इन्हे कुछ भूली बिसरी यादें। वक्त की स्याही से लिखे कुछ पल सहेजे थे। समय दौड़ता गया रह गई कुछ भूली बिसरी यादें। कुछ रिश्ते बने कुछ टूटे कुछ रूठे कुछ माने। वक्त ने इन्हे भुला दिया बनाकर कुछ भूली बिसरी यादें। कुछ नजरों के इशारे थे कुछ ख्वाब हमारे थे। समय बदला रहने दिया तो बस कुछ भूली बिसरी यादें। उड़ने का शौक बहुत था छलांगे भी मारी थी। बोझिल कदमों ने दबा दिया रही ये मेरी भूली बिसरी यादें। मिलने और बिछड़ने के गम बहुत बार हुए। वक्त की मलहम ने बना दिए इसे मेरी भूली बिसरी यादें। बहुत से खब्वाबों की कब्र गाह बनती रही ये गहराइयां। वक्त की धूल ने इसे भी तब्दील दिया रही तो बस भूली बिसरी यादें। आज फिर इस धूल को हटा

अंधेरी सुरंग में।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ संध्या काल में उठी इक मशाल में बहुत प्रश्न है। किसी अंधेरी सुरंग में बहुत राजनेतिक कोड़ दफन है। घना अंधेरा है चहुं ओर सन्नाटा भी पसरा हुआ है। कुछ अजीब से दुर्गंध भी हर और फैली हुई है। किसकी ये लाश है जो पैरों तले तो आ रही है दिख नही रही है। मशाल की रोशनी में कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा है। तभी पता चला मेरा चश्मा एक सुरंग के बाहर ही छूट गया है। इस राजनेतिक कोढ़ की दुर्गंध में सब पहचान छुप गई है। इंसान है या जानवर इक सी बू बनी हुई है। इस महामारी का अंदेशा बाहर उजाले में भी फैलने का डर लगने लगा है। अब इस राजनेतिक सुरंग के भीतर बहुत दम घुटने लगा है। पता ये चला है जो भीतर गया वो वापिस नही हुआ है। मुझे लगता है मेरी कब्र का नंबर भी यही लिखा है। जुर्रत मैने जो की कि इस सुरंग का पता आम आदमी के नाम लिखा है। हसरत तो बचाने की थी ये कहां पता था नंबर अपना पहले लिखा हुआ है। कोशिश तो फिर भी समझने की है नंबर लग भी जाए किसको इसका गिला है। प्रश्न अभी भी यक्ष बना हुआ है.. संध्या काल में उठी इक मशाल में बहुत प्रश्न है। किसी अंधेरी सुरंग में बहुत राजनेतिक कोड़ दफन है