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जेल शब्द सुनते ही मन में कुछ अजीब सा महसूस होने लगता है। एक अपराध की कल्पना जाग जाती है। सोच के कुछ घबराहट होने लगती है। जेल के नाम से अपराध और अपराधी दोनों ही सामने नज़र आते है। नेताओं के लिए जो गर्व की बात है आम आदमी के लिये पूरा जीवन हो दाव पर है।एक अपराध बोध होता है।क्या इस शब्द को कुछ अपने सुधार के लिये भी इस्तेमाल कर सकते हैं? अगर कानून की नज़र से देखा जाये तो बुरी प्रवृत्ति और अपराध को सलाखों के पीछे आपकी न्याय व्यवस्था के द्वारा पहुंचा दिया गया है।चार दिवारी मैं रह कर एक सुधार प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। सजा की म्याद खत्म होने तक सुधार की गुंजाईश को पूरा किया जाता है। हर इंसान भी ऐसे ही बहुत से अपराध बोध वृतियां कुंठाएं द्वेषों को अपने अंदर जीता है। उनको भी किसी के सुधार माध्यम की आवश्यकता होती है। और एक माध्यम आप स्वयं हो।क्यों न आप किसी के प्रति द्वेष को सदा के लिए जेल की काल कोठरी में डाल दें। क्यों न अपने क्रोध को आप सदा के लिये सलाखों के पीछे भेज दें। क्यों न डर को अंधेरी जेल में डाल दें। क्यों न मजहबी जनून को हमेशा के लिए पिजरे में बंद कर दें। क्यों न बदमिजाजी को उम्रकैद दे दें।क्यों स्त्री के प्रति बुरे भाव को जेल में ठूस दें। क्यों न आवेश और युद्ध की ललक को सलाखों की राह दिखा दें। क्यों न निर्दयी निर्लज्ज निष्ठुर विचारों को जेल की हवा खिला दें।क्यों न रिश्तों में घुलते वैमनस्य को सुधार की चारदीवारी में कैद कर दें। क्यों न जुल्म के विचार को जंजीरों में बांध दें। क्यों न रिश्वत फ़ायदा लेने के विचार को कठोर दंड का भागी बना अपने भीतरी सुधार गृह में भेज दें। ऐसी बहुत सी बातों को जो एक इंसान के अंदर की जागृत अवस्था है उसके माध्यम से अपने सुधार गृह की सलाखों के पीछे पहुंचा दें। हर इंसान में चेतना की अवस्था होती है और ये चेतना ज्ञान के माध्यम से जागृत रहती है अन्यथा अचेतन अवस्था हमेशा आप को अपना शिकार बना गुनाहे अज़ीम की तरफ धकेलती रहती है।प्रश्न ये भी उठता है ज्ञान है क्या? किस ज्ञान की बात कर रहे है? ज्ञान किताबी तो नही है पर एक व्यवहारिक ज्ञान जरूर है जिसके माध्यम से इंसानी रूप में अच्छे बुरे का ज्ञान ही हमारा जरूरी सरल ज्ञान है। ये अच्छे बुरे की पहचान से आप को अपना ही जज बना देता है। आप की सारी बुराईयां आप की अदालत के कठघरे में खड़ी होती है। चेतना अच्छाई के तरफ से बुराई के खिलाफ आप की अदालत में अपना मुकदमा लड़ती है। और आप न्याय की बुनियाद पे सही फैसला कर बुराई को जेल की सलाखों के पीछे या तो उम्र कैद देते हो या सजाए मौत। ये ही जेल की आप के जीवन में अचेतन को चेतन बनानें के लिए जरूरी है। अगर आप ने ये भीतरी युद्ध अपने आप से जीत लिया तो सांसारिक जेल का डर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। आप जागृत हो जाएंगे और सांसारिक जेल भी साधना स्थल लगेगा। ये ही सांसारिक जीवन में रह के सन्यास का पहला कदम है । सारी बुराईयों को इस जेल की हवा खिलाईये और शुद्ध होते रहिये।बाकी आप की मर्जी।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 52 से 62 तक आज हम बात करेंगे।संक्षिप्त में इस भाग को जान लेते है। भाग 5:-इस भाग में अनुच्छेद 52 से 151 तक शामिल है। भारत के राष्ट्रपत...
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