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धर्म।

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एक शब्द मेरे दिमाग को सदा आंदोलित करता रहता है वो है "धर्म"। और उससे जुड़ा एक प्रश्न की क्या मनुष्य से धर्म है या धर्म से मनुष्य? इसी प्रश्न की खोज में दिमाग इधर उधर ढूंढता पढ़ता रहा।फिर धर्म सी जुड़ी शिक्षाओं को ध्यान से पढ़ा।धर्मं को समझना कुछ आसान लगा।हर धर्म को किसी न किसी ने कलम बध किया।चाहे वो हिन्दू मुस्लिम इसाई या कोई और धर्म हो।दुनिया में ये तीन धर्म हर तरह से सनातन रूप में है।उत्पत्ति कुछ मिलती जुलती है।फिर इन्ही धर्मो की बहुत सी शाखाएं हैं।पर ये है क्या असल में? समय समय पर मनुष्य जीवन पे शोध होते रहे है।मनुष्य समाज मूढ़ से परिपक्वता की तरफ बढा है।इस दौरान इस समाज को सिरे से एकजुट रख आगे बढ़ने के विषय पे सोचा गया।इंसान की दिमागी फितरत को करीब से जाना और समझा गया।हमारे यहाँ ये शोध बड़े पैमाने पे हुए।ऋषि मुंनी इसके ज्ञान को लेख बद्व करने में अग्रणी रहे।धर्म की बहुत सी परिभाषाएं बनी और धर्मो से जुड़ी है।पर शब्द "धर्म "कोई संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। ये सब ऊपर लिखे शब्द धर्म की खोज में मुझे बेहतर लगे।धर्म पूरी तरह से मनुष्य के लिए  जीवन में आचरण का सबक है।उसकी सीमाएं समाज देश दशा काल के हिसाब से लिखी और तेह की गई है। ये एक मनुष्य के पूरे जीवन काल को जीने की पूर्ण पद्यति है।समय समय पर शोधों के जरिये इनमे सुधार कर इसे काल के साथ जोड़े रखा गया है।और विकास और बदलाव की सतत प्रक्रिया को झेलने की क्षमता का इसमे विकास किया गया है।कुछ धर्म उन्मुक्तता का साथ खुले शब्दों से देते है और कुछ मध्यमार्गी और कुछ दबे शब्दों से ।पर बदलाव विकास को सब समझते हुए मनुष्य जीवन को  उसके नैतिक आचरण के घेरे में बांधे धर्म समुदायों के साथ साथ आगे बढ़ रहा है।कुल मिला के धर्म एक बेहतर साफ सुथरा  आचारनपूर्ण जीवन जीने की किताब है।जिसे  अगर सही तरीके से पड़ा जाये तो ये आप को मनुष्य होने के नजदीक ले जाता है और आप को प्रकृति के सब उत्पादों भागिओं के साथ मिल कर उत्तम जीवन जीने की कला मात्र देता है।इसका बाकी विस्तार कुछ ज्यादा समझदार लोगो ने इसको कट्टरवाद की तरफ ले जा के अपने ईश्वर कि सत्त्ता को उत्कृष्ट बता के भावनाओ का दोहन कर राजनीतिक गोटियां सेकने का रास्ता बना लिया है।धर्म गुरु इसे पैसे कमाने बनाने की संस्था बना चुके है। मालिको जो भी धर्म पढ़ो अपनाओ उसे मनुष्य के विकास क्रम से जोड़ बदलाव के साथ मिला अपने जीवन को श्रेष्ठता की तरफ ले जा कर प्रकृति के साथ सौहार्द सामंजस्य रख जीवन में उतार कर एक उत्तम वैर्य वहींन जीवन बनायेंं।येही आप का और आप के होने का धर्म है।आप से धर्म है  धर्म से आप कदापि नही क्योंकि प्राकृतिक चक्र और सृजन आप के रोके और चले नही चलता।ये स्वयम अपने रास्ते और आप के आने के रास्ते तह करता आया है।आप ने बाकी सब अपने हिसाब सहूलियत से बना अख्तियार कर लिया है और चला लिया है।धर्म आप और केवल आप से है।इसे ऐसे ही रखने के लिए यत्नशील रहे।ये मेरे शोध का मत है।सहमती असहमति आप का अधिकार है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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