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बड़ी पुरानी बात चली आयी है दुनिया में तीन ही चीजों को लेकर झगड़ा है "जर जोरू और जमीन" । बड़े ध्यान से आस पास होते घर परिवार समाज में ज्यादतर झगड़ों का कारण ये ही तीन है।जर याने धन या सोना जिसको पाने की क्वायत सारी उम्र हम करते है।कुछ ये धन शालीनता और कर्मठ हो कमाते है और धैर्य रखते है ।और कुछ बेहद जल्दी से इसे पाना चाहते है और हर उल्टा सीधा रास्ता अपना के इसे बहुत जल्दी हांसिल करना चाहते है। रिश्तों को ताक पर रख हम इसे त्वज़ो देते है।हर रिश्ते का चीरहरण कर डालते है।अपने भीतर ही भीतर तार तार हो जाते है और द्वेष के बीज जन्म जन्मांतर की दूरियां पैदा कर डालते है।धन लालच को बढ़ावा देता है।व्यवहारिक ज्ञान इससे आप को बचाता है।बशर्ते आप ने इस सुगम सहज ज्ञान को बिखेरते रिश्तों को देख के खूब सीख लिया हो।पैसा किसी भी रिश्ते का कत्ल कर सकता है और जहां रिश्तों में ये किसी भी रुप में न रहे वहां सिर्फ प्यार और सम्मान होता है। धन जरूरी भी है पर इसका लालच बेहद खतरनाक।दुनियाके सबसे ज्यादा झगड़े इसी को लेकर हुए है।समृद्ध सम्पन्न मुल्कों को लंबे समय तक बार बार इन्ही सब के चलते लूटा गया। धन आज पति पत्नी अबिभावक बच्चों भाई बहनों के बीच टूटते रिश्तों की बड़ी कहानी कहता है।हर दूसरे घर में इसको लेकर कलह है।बचिये इससे।फिर आती है जोरू।जोरू बीवी से लेकर प्रेमिका का संबोधन है।इसके पर्यवाची है वामांगिनी, बहु, कलत्र, प्राणप्रिया, गृहलक्ष्मी, संगिनी, सहचरी, बेगम, पत्नी, भार्या, अर्धागिनी, वनिता, दारा।ये दूसरी कलह की हर घर में बड़ी जड़ है। एक औरत ही दूसरी औरत की दुश्मन ।घर में माँ बहु बेटी तीन औरतें मौजूद हों सकती है।तीनों केवर्चस्व चाहिये।ये वर्चस्व की लड़ाई परिवार तोड़ डालती है।यहां मर्द हमेशा कमजोर कड़ी होता है।माँ की न सुने तो क्या औलाद पैदा कर दी बीवी की न सुने तो कैसे इंसान से शादी हो गयी।कभी जोर जोर से झगड़े की आवाज़ तो कभी शांतिकाल में सूजे मुँह।समझदार व्यक्ति न नौ में न गयारह में का फ़ॉर्मूला लगा कर निकल लेते है।झगड़े शांत करने का सबसे बेहतर तरीका।वर्ना जोरु को लेकर झगड़े बड़ी आम त्रासदी है जो हर मनुष्य के साथ घटित होती रहती है। अब आती है जमीन।इसने बाप बेटों भाइयों के रिश्तों को डसा और निगल लिया है।जो भाई बहन बचपन में एक दूसरे के बिना रह नही पाते थे वो बड़े होकर अकलमंद हो रिश्तों की माहींन डोर को लालच वश एक मिनट में तोड़ डालते है।ये डोर फिर कभी नही जुड़ती।जुड़ती है तो गांठ बांध कर ही जुड़ती है।जो कभी प्रिय होते थे जिनके साथ खेले जन्मदिन मनाते थे हर त्यौहार बचपन में साथ मनाते थे। वो अब चेहरा देखने से भी भागते है।जमीन ने हर रिश्ता लीला है।मजे की बात है इतिहास उठा कर देख लें एक जमीन कभी किसी एक कि नहीं हुई।हर तीन से पांच दशक में ये अपना मालिक बदल लेती है।किसी की सगी नही।फिर भी इसके लिए इतना मोह।हम इंच के लिए रिश्तों का खून करते है और ये जब मालिक बदलती हैं तो पलट के भी नही देखती।समाज लड़ रहे है।देश लड़ रहे है।मजे की बात है कोई और जानवर इसके लिए इतना पागल नही होता।शेर भी बूढ़ा होने पे अपनी स्तिथि समझ दूसरे को अधिकार सौंप देता है।उसे एहसास हो जाता है अब ये जमीन मेरी नही रही।कोई जवान नर उसपे अधिकार कर लेता है।परंपरा यथावत सृष्टि के समय से चली आ रही है।हम अधिकार ही छोड़ना नही चाहते।जिसके लिए खूनी संघर्ष होते है।देश समाज आपस मे भिड़ रहे है।इंसानियत और इंसानों का कत्ल आज भी रोज हो रहा है।तीनो झगड़े हर जगह मौजूद है। आकांक्षायें अपेक्षाएं लालच इन तीनो मैं मौजूद है।येही झगड़े की वजह है।ज्ञानी इसे समझ सबसे पहले इन सब से अपने आप को ऊपर उठाता है।फिर अपने परिश्रम से अपने लिए जर जोरू और जमीन का इंतज़ाम करता है।ना लेना एक न देने दो।येही ज्ञान संतानों को भी देता है।भाई बहनों का हक़ बिना मांगे दे देता है।रिश्ते बच जाते है।माता पिता को सम्मान दे उन्हें अपने बचपन में ले जा खुद माँ पिता बन उन्हें बच्चे सा सुख देता है।और उत्तम रिश्तों कि राह पे प्रेम बिखेरता हुआ रिश्तों को समेटता हुआ आगे बढ़ता जाता है।झड़गा सिर्फ अपने आप से रह जाता है कि कहीं मैंने कुछ गलत तो नही कर दिया।येही जर जोरू जमीन के झगड़े से ऊपर उठ आनंदमय जीवन जीने का मंत्र है।भोगिये सब बस लालच न कीजिये और अपने कर्मो से बनाई धरती पे फसल काट कर सम्पन बनिये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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