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आशिक़ों के बहुत से प्रकार होते है।हंसिये मत।सच कह रहा हूँ।ज्यादा तादात एक तरफा आशिक़ों की होती है।ज्यादतर तो स्कूल कॉलेज के समय से क्लास में ही ऐसा एकतरफा इश्क़ चलाते रहते है।सपनो की दुनिया मे खोये रहते है।किताब में महबूबा ख्यालों में महबूबा ही नज़र आती है।नज़रे किताब पे दिल महबूबा में और ख्याल ख्वाबों में गुम।फिर माँ का झापड़ और ख्याल बापिस नजरे किताबपे और दिल पढ़ाई में।बड़ी विडंबना है ।क्या है माँ को प्रॉब्लम।इतने हसीन ख्वाब और थपड़ की भेंट।उफ्फ। खैर एकतरफा आशिकों की ये व्यथा सदियों से चली आ रही है।माँ भटके हुए आशिक़ों को पढ़ाई की दौड़ में बापिस ला रही है।फ़र्ज़ निभा रही है।मजनुओं की फेरिस्त बहुत लंबी है।भांति भांति के आशिक़।आज विषय मर्दों पे ही है बस।औरतें कम हों ऐसा मैं नही सोच रहा हूँ कसम से।रोज स्कूल कॉलेज पहुंच जाते है झलक पाने या मानो नज़रें ठंडी करने।पढ़ाकू जरा अलग क्लास है कृपया उनके विषय मे ज्यादा यहां न सोचें।कुछ अक्लमंद इसे सब पे लागू न करवायें प्लीज। ऐसे आशिक़ भक्त भी जबरदस्त होते है।आज कल सबसे प्रिय भगवान मूर्ति रूप साईं बाबा जी है।इनके दर पर बृहस्पति वार को हिन्दू भगवानों से ठाकुराये आशिक़ बाबा की शरण मे लाइनों में लगे नज़र आते है।नज़ारा आप खुद भी देख सकते है। या बहुत से पीर भी इनके सच्चे इश्क़ के गवाह बनते है।अगरबत्ती का पूरा पैकेट तन मन धन सहित पीर जी की भेंट।महबूबा फिर भी नदारद।कई तांत्रिकों के घर भी पहुंच जाते है।रोज रात को महबूबा उनको प्रोपोज़ करती है और जनाब बहुत घमंड से नखरे दिखाते हैआगे आगे जनाब पीछे पीछे महबूबा अपनी मोहब्बत का इकरार इज़हार करते मोहब्बत का वास्ता देते अपने प्रेम की भीख मांगते इल्तज़ा कर रही है।और जनाब है कि नखरे ही दिखाये जाते है।नींद टूट नही रही।महबूबा जा नही रही।सूरज निकल के शबाब पे आने को है।बापू आफिस जा चुके।मां को फुर्सत मिली तो देखा पुत्र सिरहाने से जोर जबरदस्ती में लगा है।दे जोर के एक लगा ओये कॉलेज नही जाना।ओ तेरी आज तो लेट हो गये।हाय आज का तो दिन अशुभ हो गया।भगवान ये तूने क्या किया?थोड़ा पहले माँ को नही भेज सकते थे।क्या भगवान तू सही में मुझसे जलता है।मेरी मोहब्बत देखी नही जाती तुमसे।ओये गधे नहा ले नाश्ता तैयार है।मां की आवाज़ में कर्कशता झलक गई। दो डब्बे डाले पानी के और पांच मिनट में तैयार।एक मिनट में रोटी अंदर दूसरे मिनट घर के बाहर।चाहत क्लास में और जनाव बस स्टॉप पे।पढ़ाई गयी भाड़ में कल देखता हूँ कैसे जल्दी नही उठता।फिर पेपर आये भगवान हनुमान याद आये कही दो तो पांच चढ़ाये। किसी तरह पास हुए भाई।इश्क़ में एक तरफा आशिक़ कहलाये।कॉलेज पूरा हो गया।वो अपने घर गये हम अपने घर आये।कम्बख्त सारे साल एक लफ्ज़ उनसे न बोल पाये।आई लव यू न कह पाये ।तभी तो एक तरफा आशिक़ की पदवी ले आए।वहुत साल बाद वो दिखी।सुंदर से दो बच्चे साथ लिए आ रही थी।सामने पड़ते ही बोली राजीव तुम।अरे कैसी हो?इतना बोलना था बच्चों से मिलवाया बोली मिलो ये है तुम्हारे राजीव मामा।पीछे से कुछ जाना पहचाना चेहरा चला आ रहा था।उरे बाबा ये तो अपना शर्मिला मनोज था।जो हमारी महबूबा के प्यारे बच्चों का पापा था।दिल से गले लगाया।मन मे सोचा साले तूने ये गुल कब खिलाया।न बताया न शादी में बुलाया और हमारी महबूबा का हमे भैया कब बनाया? सो जाओ रात बहुत हो गयी है मोहब्बत हमारी किसी और कि मलकाये हयात हो गयी है।सो जाओ हंसो मत मुस्कुराओ बस।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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