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व्यस्ततायें जीवन खींचें लिये जा रही है।
हम चाहकर भी इन्हें रोकने में नाकाम रहे।।
सोचा कुछ समय निकाल खुद भी जी लिया जाये जरूर।
हम व्यस्त ही रहे समय अपनी गति से रहा।।
जब भी कभी समय से अपने लिए लम्हा मांगते।
वो हमें चुपके से व्यस्ततायें थमा चला जाताा।।
जीवन में खुद की खबर ही लेना भूल गए।
जब चिट्ठी मिलीं तो सांसे आखरी दम पे थी।
हम चाह के भी तो बीती उम्र बापिस न ला सके।।
बहुत बार वक़्त ने चेताया रोका पर हम रूक न सके।
सोचा कल देखी जायेगी पर वो कल कभी न ला सके।
व्यस्तताओं ने उलझा कर अपने लिए ताला लगा दिया।।
कुल मिला कर अपने मे पूरा उलझा लिय्या।
मैं कोशिशों करता रहा व्यावसताएँ हंसती रही।
मैं तो फिर भी मुक्कमल रहा व्यवस्ताओं में।।
सिर्फ़ मैं नही हर कोई शख्स झूंझ रहा सुबह शाम ये देख कर।
वक़्त मिला तो व्यवस्थाओं से पूछुंगा जरूर।
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हममें क्या कमी रह गईं ये तो बताओ जरूर।
न कुछ कर सको तो ए वक़्त एक लम्हा ही दे दो जिसे मैं जियों तो मन भर के जरूर।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि
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