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तारीफ के पुल।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹
तारीफ के पुल कितने बांधे बांधते गये।
हम बांधते गये वो ढहाते रहे ढहाते गये।।
हम दूर बेठे लुत्फ लेते रहे वो गुस्सा रहे।
उनको सब नकारना था  नज़ारा लेना था।।
दिल मे बहुत कुछ था जो मन से कहना था।
उन्हें सुनना न था और हमे सुनाना ही था।।
जिससे इश्क़ हो जाये वो हाले दिल ही है।
जिसे वो सुनाया जाये वो मोहब्बतें नूर है।।
तारीफ तो हम इश्क़ की करते है।
वो अपनी समझते है ये उनकी नादानी है।।
लुत्फ तो हम अपने इश्क़ का लेते है।
वो इशारा समझते है ये उनकी परेशानी है।।
आरजुयें कब तक रहेंगे दिलो में।
ये हर वक़्त तुम्हारी पनाहें ढूंढती है।।
तुम कितना भी दूर कर लो पनाहों से।
ये आरजुये फना होगी तेरी पनाहों में।।
हम नादान ही रहेंगे तुम्हे समझने में।
तुम जितना भी समझदार बन समझाओ हमे।।
ये खालिस इश्क़ का जोर है मोहतरमा।
इससे दिलों को ढाया है ये समझ लीजिये।।
न जोर तुममें कम है हमे दूर करने का।
न जोर हममें कम है तुम्हारे पास आने का।।
इनके ख्याल मगरूर हुस्न की रवायत है।
हमारे ख्याल पामाल नही के नाशाद हो बेठे।।
ये मेरा पशेमान होकर फ़ज़ से गुजरना तेरे दिल की आवाज़ है।
और अगर ये तुझे सकून देता है तो ये मेरे फ़वाद की दुआ समझ लेना।।
हम तेरी तारीफ में कसीदे पड़ते ही रहेंगे।
भले ये तुझे मेरा तस्सवुर किश्नगी ही लगे।।
तुम दानिस्ता दूर जाने को बेकरार हो तो।
अ हमनफज हम भी फना होंगे जान लो।।
तुम तरीफ़ लो न लो ये तुम्हारी तबियत है।
हम पुल बांधते जाये ये हमारी तबियत है।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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