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कभी नीलगिरी की वादियों में शाम जवां होती है।
साथ मे हम और महफ़िल जवां होती है।।
सर्द हवाएं तन को छू के मचलती चलती है।
हम भी इस खुशगवार महफ़िल में चले आते हैं।।
कुछ अपने से कुछ मौसम से बतियाते है।
वो जो मुझे छू के निकलती है हम दौड़ पड़ते।।
ये नग ए जबल ने बहार खास फैलाई हैं।
ये फूलों की महफ़िल उसी ने सजाई है।।
भांति भांति की महक हर तरफ फैली हे।
रंगों की तो न पूछो जितने सोचो उतने खिले है।।
हर तरफ गुलिस्तां ए चमन खूब महका हुआ है।
कुछ खास सब ये रूप रंग लिए से खिले है।।
एक तरफ गुलाबों ने भी जम के डेरा डाला है।
न जाने कितने खूबसूरत से रंग लिए है।।
आकाश में बादलों की चहल कदमी जारी है।
न जाने कितनी नई नई आकृतियों बन मिट रही।।
हवाओं ने भी कम जोर नही लगा रखा है अपना।
बादलों को उड़ाती अठखेलियाँ कर मजे कर रही।।
हम भी इन्हें झूमता देख मचल मचल रहे।
वादियों की खुशबू का आनन्द बखूबी से ले रहे।।
नीलगिरी के नैसर्गिक सौंदर्य जी भर पान कर रहे।
हर एक ऊंचाई में हवा का रुख देख रहे।।
सफेदे के भी जंगल होते है ये समझ रहे।
बनस्पतियां पर्वतों में समाई है लुत्फ ले रहे।
यहां सीता फल भी खास मिठास लिए हैं चख रहे।।
यहां चॉकलेट भी खूब बनांनी सिखाई खाई जातु है।
जेब खोलो तो चॉकलेट खूब मजे से मुह में जाती है।
चाय के नए नए रूप बने है बेचने को।।
किस तरह से पढ़ा पढा के बेची जाती है।
जिसका देखो तेल निकाल लेते है भई।
थमा देते है हमको बीमारियां समझा के ।।
येही देखते वादियों में शाम जवां होती है।
साथ मे हम और महफ़िल जवां होती है।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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