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उसके अंदाज़ ही अलग है।
चाहतें बहुत है पर दबा रखी है।
मन उड़ना चाहता है मगर कैद कर रखा है।
दिल मचलाता है पर बांध रखा है।
मन मे ख्याल उमड़ते उनका गला घोंट रखा है।
ऐसे न जाने कोन सी जिंदगी जी रहे है कुछ लोग।
अपने को जैसे तिरस्कार भागी रखा है।
फिर मन करता कोई तो समझे।
फिर दिल करता कोई तो सुने।
फिर रूह चाहती कोई तो पास बैठे।
इन सब मे इच्छायें बेहद दबी हुई सी है।
दिलअपनी कुर्बानियों का हिसाब मांगता फिर रहा है।
रिश्ते सब तुममे त्याग ढूंढते है।
बाकी सब अपनी अपनी सेवा ढूंढते है।
तुम भी किसी का हिसाब दे कंधा ढूंढते हो।
फिर सोचते हो बहुत सोचते हो।
किस किस के लिए करू।
किस किस के लिए जियूँ।
किस किस के लिए सहूँ।
कोई तो मेरा भी हो जिससे ये सब कहूँ।
फिर कहती ही मेरा तोे अंदाज़ अलग है।
सब रिश्ते निभाने मुझ में लिखे है।
सब की जरूरत मैं हूँ।
सब की सेवक भी मैं हूँ।
बस मुझे कौन जाने ये कहाँ लिखा है।
मन मनोस के रह जाती हूँ।
कभी मन मे चीखती चिल्लाती हूँ।
अपने से कह अपने से ही सुन लेती हूँ।
बस दुनिया के लिये लड़ते खुद से हार जाती हूँ।
इसलिये अबला नारी कहलाती हूँ।
फिर सोचती हूँ किस से कहूं।
पर क्यों कहूँ।
क्या रखा है उसे समझाने में।
जिसको मेरी कद्र नही जमाने मे।
क्यों न मैं अपने से ही सवरूँ।
अपने लिये ही सवरूँ।
अपने को देखू और मुस्कुराऊँ।
क्यों न अपनी सहेली खुद बन जाऊं।
सारी खुशियां मन की ताकत से अपने मे समाउँ।
दुनिया कुछ भी कहें मैं क्यों अबला कहलाऊँ।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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