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कुछ यूं बीती कुछ यूं गुजरी कुछ कही कुछ सुनी।
जिंदगी बहुत नायाब ही निकली जितनी समझी और सुनी।
हर मोड़ पे इक शख्स उम्र से तजुर्बा लिए खड़ा है।
हम उनसे मुखातिब होते है यहां उम्र जुड़ जाती है।
कुछ आदायें दुनिया की हमपे भी मेहरबां होती है।
हम उनके बहकावे में आते वो हमारी हो जाती है।
वक़्त बे वक़्त दुनिया की हस्तियों से उलझते रहे।
कुछ वो खुद से सुलझ गये बाकी हमे सुलझा गये।
नादान परिंदे भी बहुत मिले नादानियां करते हमे।
हम खुद से नादां हो उन्हें समझदार कहलवा गये।
कुछ तो बेहतरीन मंजरों का भी हमे एहसास हुआ।
कुछ हमने जी लिये बाकी उनके लिए छोड़ आये।
बहुत से गरूर मिले बहुत गरूर टकराये भी हमसे।
कुछ तो हमने गुजरने दिये कुछ की राह बदल दिये।
मोहबतें भी टकराती रही जिंदगी चोट खाती रही।
हम भी मलहम लगाते रहे जिंदगी तुझे संवारते रहे।
वक़्त बहुत जाया हुआ खूबसूरती को समझने में।
खोजी तो भीतर ही छुपी थी जरा धूल में पड़ी थी।
बात बहुत सालों में समझ आयी दुनिया रही पराई।
मोह को लगे हैं सभी प्रेम की किसे कब याद आयी।
कुछ यूं बीती कुछ यूं गुजरी कुछ कही कुछ सुनी।
जिंदगी बहुत नायाब ही निकली जितनी समझी और सुनी।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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