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लेते लेते हम बहुदा देना भूल जाते है।
जिससे देखो उससे बस लेते जाते है।
माँ से लिया इस संसार तक का श्रम विश्राम।
माँ से लिया इस संसार तक लाने का सौभाग्य।
मां से लिया प्रथम सांसारिक जीवन रस पान।
माँ से ही समझा ममता का प्रथम ज्ञान।
माँ से ही लिया सानिध्य में होने का भान।
माँ से ही लिया प्रेम भाव अभिमान स्वाभिमान।
पिता ने प्रशस्त किया संसार में आने का मार्ग।
पिता से सीखा बहुत व्यवहारिक ज्ञान।
पिता से ही लिया श्रम कार्यकुशलता प्रथम ज्ञान।
ईश्वर के माध्यम से जाना आस्था का परिणाम।
भाई बहनों से लिया रिश्तों का बेहतर ज्ञान।
अपने शिक्षक गुरु से लिया विद्या का महादान।
बंधु बांधवो से संग हो लिया सामाजिक ज्ञान।
पत्नी ने पूरा किया असली पुरुष का पोरष ज्ञान।
अपने बचने ने फिर दिया ममता का सुलभ ज्ञान।
जीवनचक्र हर वक़्त हर समय कुछ कुछ देता रहा।
मैं भी नादान सा होकर लेता और लेता ही रहा।
लेने की आदत ही बुरी पड़ गयी देखो दोस्तो ।
अब हर रिश्तों के बीच समृद्ध होती आदत देखो।
लेते लेते देना शायद मैं भूल रहा था।
ये वो सफा है जिसे शायद मैं भूल चुका था।
आज दोस्त के शब्दों ने ये भाव याद करा दिया।
देने का जो मजा है उससे रूबरू करा दिया।
फिर सोचा कितना सही कहा
लेते लेते हम बहुदा देना भूल जाते है।
आज याद आयी सोचा बंधु बांधवो से सांझा कर लूं।
कुछ उनमे भी देने की इक अलख जगा दु।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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