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कुछ तो हम भी सोच रहे है सोचते सोचते लिख रहे है।
कुछ दिन कैसा बीता अपने आप से बतिया रहे है।
रोज एक नई तस्वीर गढ़ते है और एक नई राह सोचते है।
विचारों के भार से लदी सोच बदलने की नाकाम कोशिश करते है।
पल पल दिमाग चंचलता की हर हद पार करता जाता है।
हम भी इसे नादान समझ विचारों के फंदे बांध लौटा लाते है।
ये रोज नई उड़ाने भरता जाता हम भी थोड़ा घूम आते हैं।
कुछ समय पश्चात आनंद के बाद इसे पट्टी पे उतार ही लाते है।
विचारों का क्या है टी वी देखते देखते टी वी के हो जाते है।
एफ एम सुनते रेडियो से दिल लगा रेडियो बाबू ही हो जाते है।
सत्संग में गलती से पहुंच जाते तो ये बेहद धार्मिक हो जाते है।
दोस्तो के बीच बहुत बदमाश बेगैरत बेतकलुफ बन जाते है।
अखबार पढ़ते पढ़ते नाहक ही नए विचार उमड़ घुमड़ आते है।
माहौल देख के दिमाग भी दिल से बहुत तफरी पे उतर आता है।
गूढ़ ज्ञान से संचित फिर मर्यादित विचार बाहर आता है।
हम गलती करते करते गलत सोच से फिर बापिस होते है।
वृहित विचारों से फिर इनका एक नया द्वंद होता है।
यहां संकलित शुद्ध विचार हर बार इन्हें हराते है और हम जीत जाते है।
इसलिए कुछ तो हम भी सोच रहे है सोचते सोचते लिख रहे है।
कुछ दिन कैसा आज बीता अपने आप से बतिया रहे है।
रोज एक नई तस्वीर गढ़ते है और एक नई राह सही खोज रहे है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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