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आइये आज जाने भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 3 अनुच्छेद 172 से 177 तक।
172 राज्यों के विधान–मंडलों की अवधि–(1) प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथमअधिवेशन के लिए नियत तारीख से [24][पाँच वर्ष]तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और 1[पाँच वर्ष]की उक्त अवधि की समाप्ति का फरिणाम विधान सभा का विघटन होगा : परंतु उक्त अवधि को,जब आफात् की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, तब संसद् विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात् किसी भी दशा में उसका विस्तार छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा ।
(2) राज्य की विधान परिषद का विघटन नहीं होगा,किंतु उसके सदस्यों में से यथासंभव निकटतम एक -तिहाई सदस्य संसद् द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त बनाए गए उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवॄत्त हो जाएंगे ।
173. राज्य के विधान–मंडल की सदस्यता के लिए अर्हता—कोई व्यक्ति किसी राज्य में विधान-मंडल के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब–
[25][(क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकॄत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है ;]
(ख) वह विधान सभा के स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का और विधान परिषद के स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का है ;और
(ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं हैं जो इस निमित्त संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाएं ।
[26][174. राज्य के विधान–मंडल के सत्र, सत्रावसान और विघटन –(1) राज्यपाल , समय-समय पर , राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर , जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किंतु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा ।
(2) राज्यपाल , समय-समय पर ,—
(क) सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) विधान सभा का विघटन कर सकेगा ।
175. सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार–(1) राज्यपाल , विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में उस राज्य के विधान-मंडल के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में, अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा ।
(2) राज्यपाल, राज्य के विधान-मंडल में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा ।
176. राज्यपाल का विशेष अभिभाषण –(1) राज्यपाल , [27][विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में]विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधान-मंडल को उसके आह्वान के कारण बताएगा ।
(2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए [28]* * * उपबंध किया जाएगा।
177. सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार—प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होगा कि वह उस राज्य की विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले और विधान-मंडल की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नही होगा।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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