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वक़्त यू ही गुजरता रहा हम किनारे बैठे रहे।
जिंदगी की लहरें टकराती रही हम निहारते रहे।
कुछ उछल के छू जाती हम महसूस करते रहे।
जब बापिस जाती तो ओझल होती देखते रहे।
कुछ मस्ती करती उछाल मारती खुश होते रहे।
किनारों से मिलके बिखरते अस्तित्व देखते रहे।
किनारों पे आ आवाज करती ये शोर सुनते रहे।
लहरों को दिया वो सब लौटा जाती समझते रहे।
लहरों की हर हलचल को जीवन से जोड़ते रहे।
जीवन मृत्यु के सफर को लहरों से समझते रहे।
कहाँ से उठी कब खत्म ये अनुमान लगाते रहे।
न आरंभ न अंत येही निरंतरता है समझते रहे।
फिर सपनो की नाव बना जीवन लहरों पे सवार हुए।
शुरू में हिचकोले खाते आगे बढ़ते झूंझते रहे।
अथाह जीवन राशि को लांघने को प्रयत्नशील रहे।
क्या जीवन की भोर क्या शब पार जाने को आतुर रहे।
लहरों की नज़र से जीवन देखते और समझते रहे।
वक़्त यू ही गुजरता रहा हम किनारे बैठे रहे।
जिंदगी की लहरें टकराती रही हम निहारते रहे।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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