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मौत ने कहा मैं तो एक सच हूँ।
झुठलाते किसे जाते हो।
जब तक में सामने न आऊं भुलाये रहते हो।
अपने कर्मो से सदा हम बेपरवाह बन जाते हो।
किस और जीवन जायेगा अनजान बने रहते हो।
हर वक़्त अपने को चकमा दे इससे टलते हो।
हर रोज अपना दिन तुम कम करते जाते हो।
मगर अपने को बड़ा कहलाने में इतराते हो।
तो सुनो...तुम्हारी
उम्र गुजरती तिकड़में लड़ाते ।
किसी के जख्मों पे नमक छिड़कते।
किसी के मन को जलाते।
किसी की आह लेते।
किसी की बर्बादी का प्लान बनाते।
किसी को रुलाते।
किसी को झूठ से खुश करते।
किसी का तमाशा देखते।
किसी को मतलब से अपनाते।
किसी को नीचा दिखाते।
कभी ईश्वर को ठगते।
कभी अपनी आस को परखते।
कभी अपनी कुंठा को ढोते।
कभी ईश्वर को विनम्रता देते।
कभी कभी अपनो को प्यार देते।
तो बहुत गुजरी कुछ गुजर रही।
जो थोड़ी बची उसमे ये समझ आयी।
किसे ठगता है ए बन्दे।
अंत समय सब का हिसाब होगा।
अब तक तू राजा था मगर अंत मेरे मुताबिक होगा।
रोज तून मौत के करीब आता है।
कभी तू जवान कहलाता।
कभी अधेड़।
कभी बुजुर्ग।
और अंत वेले कब्र में पांव लटकाता है।
सारी माफी मांगता मेरे पास आता।
मैं भी तो मौत हूँ अब क्यों मुझे है याद करता।
येही दिन निर्णायक है।
जिसके जैसे कर्म वो सिर्फ उसी के लायक है।
दुनिया मे और सब तो बहुत झूठ है।
मैं अटल हूँ।
मुझे तो आना है तुझे साथ ले जाना है।
अब तू समझ जितनी मिली उसमे कैसे निभाना है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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