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काहे मन पे इतना कुछ लगाते हो।
काहे किसी के लिये दिल जलाते हो।
काहे किसी से उम्मीद लगाते हो।
काहे किसी को दिल की सुनाते हो।
कौन है जो तुम्हें कभी सुनेगा?
कौन है जो तुम्हारी परवाह करेगा?
कौन है जो तेरे संग तेरा हो चलेगा?
कौन है जो तेरी राह तेरे लिये तकेगा?
प्रश्नों से झूंझ रहा था मन बैरागी है।
काम से निकला था दिमाग कहीं और चला है।
मन रह रह मुझपे ही गजब ढा रहा है।
मुझे ही इन सबका कारण बता रहा है।
सोच भी बहुत गहरी हो चुकी थी।
कहीं तो कुछ गलत हो रहा था।
मैं भी गलत जगह शायद हाथ मार रहा था।
अपनी सोच पे क्रोध आ रहा था।
इतने में फिर कुछ मन शांत हुआ।
अपना दिल मुश्किल से काबू हुआ।
वैरागी मन बोला "संसार माया है"।
जो ईश्वर की भी समझ मे कभी न आया है।
रिश्ते मतलब के ज्यादा हुए जाते है।
प्रेम अधिकार लग्न अर्पण अब बेमानी है।
आत्मा शुद्ध रहे येही तेरी कहानी है।
सब आशाओं को छोड़ अपनी राह पकड़।
दिल का शांत मन को वैराग दे कर्म का मार्ग प्रशस्त कर।
अपनी आशा अपनी आस अपने से बस कर।
दुनिया यू ही चलती रहेगी तू अपनी राह पकड़।
तेरी मंजिल तुझे पता है।
बाकी तेरे साथी कुछ पड़ाव भर है।
उन्हें भी अपने हर सफर के अंत से पहले खुश करता चल।
जय हिंद।
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सुप्रभात।
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