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मंजिलें है हमसे बहुत दूर हमने भी तह करने की ठानी है।
रुकावटें है बहुत मंजिलों में हमने भी पार पाने की ठानी है।
कठनाइयाँ है बहुत मंजिलों में हमने भी लांघने की ठानी है।
परेशानियां है बहुत मंजिलों में हमने भी गुजरने की ठानी है।
रुसवाईयाँ है बहुत मंजिलों में हमने भी सहने की ठानी है।
जग हसाइयाँ है बहुत मंजिलों में हमने हसने की ठानी है।
अकेलापन हैं बहुत मंजिलों में अकेले ही चलने की ठानी है।
दोराहे भी है बहुत मंजिलों में अपनी राह जाने की ठानी है।
मोड़ भी है बहुत मंजिलों में अडिग रह जाने की ठानी है।
घुमाव है बहुत मंजिलों में चकमा दे निकल जाने की ठानी है।
रिश्ते भी है बहुत मंजिलों में हो सके तो निभाने की ठानी है।
व्यसन भी है बहुत मंजिलों में इनसे बच निकलने की ठानी है।
मोहपाश भी है बहुत मंजिलों में शायद बंधे चलने की ठानी है।
घोर काली घटायें है मंजिलों में न डरने की इनसे ठानी है।
बस एक जोश है अब इन मंजिलों पे पहुंचने की ठानी है।
इन मंजिलों पे पहुंचने की ठानी है।
जय हिंद।
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सुप्रभात।
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🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 52 से 62 तक आज हम बात करेंगे।संक्षिप्त में इस भाग को जान लेते है। भाग 5:-इस भाग में अनुच्छेद 52 से 151 तक शामिल है। भारत के राष्ट्रपत...
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