💐आज नेपाल बिहार की इस यात्रा के अंतिम चरण में हूँ। कल बीरगंज से बापसी में नेपाल सीमा से भारत की सीमा में प्रवेश करना था। हम बहुत कहते हैं कि भारत नेपाल से बहुत आगे है और दम भरते भी है अपने बड़े होने का। सीमा पे नेपाल भारत एक से ही दिखते है। बेहद खराब रोड। एक टूटे फूटे रोड़ से दूसरे टूटे फूटे रोड पे सफर। उछलती कूदती झूलती गाड़ी की फ्री में सफारी। बीरगंज से नारायणी नदी का पुल पार और आप भारत में। ट्रक गाड़ियों पे कस्टम की जबरदस्त नज़र। तांगे ई रिक्शे और साईकल रिक्शे पे कोई रोक नही। बड़ा अजीब सा माहौल है। बहरहाल गड्ढों को नापती कूदती गाड़ी भारत की सीमा के गड्ढों में प्रवेश कर गयी।अपने भारत की सीमा में प्रवेश करते ही रक्सौल लाइन का फाटा आता है। लंबी ट्रक रिक्शों तांगों की लाइन।15-20 मिनट के बाद फाटक खुला। में जिज्ञासा वश गाड़ी से उतर फाटक के पास खड़ा हो गया। नज़र इधर उधर घुमाने लगा। देखा खच्चर तांगे में जुटे हैं। कुछ तांगे सवारी लिए थे। सहसा वजन कम था। कुछ तांगे फल सब्जियां और दूसरा सामान लिए थे। मरियल खच्चर दिख रहे थे। जुबान मुँह से निकल के लटक रही थी। उनका चेहरा देख के उनकी स्तिथि का अंदाजा लगाया जा सकता था। भोझ भी इतना लदा था कि ठीक से खड़े भी नही हो पा रहे थे। तांगा फिसला जाता था। छड़ी चुभोई जा रही थी। दर्द उनकी आंखों में था और जीभ भीषनता को बयां कर रही थी। सड़क सारी गड्ढोंं से पटी थी। अभी तक सब लाइन में हिलते डुलते भोझ संभालते खड़े थे। अब कुछ देर में ट्रैन गुजर गई। फाटक ऊपर उठ गया। ट्रक वाले आराम से खड़े थे। पहले तांगे वाले जाने को थे। उफ क्या मुसीबत आ गयी खच्चरों पे। भोझ लादे खच्चर को जैसे ही छड़ी लगाई गई तो एक जोर लगाया खच्चर ने। टायर गड्ढे के ऊपर चढ़ा और भोझ से फिर बापिस गड्ढे में। तीन चार बार जोर लगाने पे तांगा चल पड़ा। एक बाधा पार हुई। और तांगा रेल लाइन पे था। खच्चर पार हो गया तांगे का टायर फस गया। खच्चर को जोर का झटका लगा और खच्चर दारू बाज़ सा हिला। लड़खड़ाया जोर से। एक बार लगा गिर जाएगा। पर दो तीन बार में रेल लाइन टॉप गया। यू लगा शराबी गिरते पड़ते सड़क पार कर रहा हो। जीभ मुह को निकल आयी थी। दोनों तरफ से तांगे आ रहे थे। टकरा भी रहे थे। ट्रक ड्राइवर रोज़ की व्यथा से बाकिफ था सो पहले निकलने दे रहा था। एक आदमी जानवर का अत्यंत शोषण एक सामान्य से लाभ और गैर कानूनी काम के लिए कर रहा था। लाइन लगी थी दोनों तरफ तांगों की। बहुत मार्मिक सा दृश्य था। मैं ये स्तिथि देख रहा था असहाय खड़ा था। दर्द के मार महसूस हो रही थी।और असहाय था। रहा नही गया तो तांगे वाले को डांट दिया। तांगे वाले का जबाब बाबू जी रोज़ का काम है। सहसा चुप रह गया। एक इंसान का जानवर से व्यवहार पे हैरान हूँ। कैसे कर सकते हैं ये सब हम किसी के साथ। दुनिया भर में बहुत सी क्वायतें हो रही हैं इन्हें मुक्त करने की और हम लगता है अभी भी एक सदी पहले का जीवन जी रहे हैं। सोच ही रहा था तो अपनी गाड़ी भी आ पहुंची। ध्यान हटाया और सफर के अगले पड़ाव की और निकल पड़े।चोट सी लगी। पता नही आप को लगी या नही।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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