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Showing posts from March, 2019

सास बहू 2।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 मजे की बात है हर घर सास बहु का राज है। दोनों में वर्चस्व की लड़ाई सदियों से लगी हुई है। दोनों को भी एक नौकरी पक्की मिली हुई है। सुबह शाम एक दूसरे के खिलाफ स्कीम बनी हुई है। दोनों के दिमाग की चकरी सदा चलायमान हुई है। एक अपने तजुर्बे को हथियार बनाये हुए है। दूजी अपने अधिकार की रक्षा हेतु हथियार उठाये हुए है। दोनों के तरकश में कई अस्त्र शक्ति रूप समाये हुए है। दोनों के पास एक ब्रह्मास्त्र भी सुरक्षित रखे हुए है। दोनों और से शक्तियां रोज छूटती है और लड़ कर अलोप हो जाती है। ये देख सास बहु एक दूसरे के गुणगान करती पायी जाती है। मौका छूट न जाये इसलिए टोह भी लेती जाती है। समय असमय जब  मौका लगे शक्तियाँ एक दूसरे पे छोड़ दो जाती है। हद तो ये है दोनों सीमाएं सुरक्षित रखने को हर पल ततपर पायी जातीं है। जिसे मौका लगे मिसाइल अटैक करता है दूसरा भी पेट्रियाटिक छोढ़ता है। युद्ध कभी भी कहीं भी छिड़ सकता है मौका तलाशा हर वक़्त जाता है। दोनों की सीमाओं पे एक शख्स सफेद फ्लैग लिए खड़ा रहता है। कुछ भी हो दोनों अपने युद्ध को यही रोक देती है। इंतज़ार होता है ये इधर उधर हो तो लंका

कुछ तो हम सोच रहे।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 कुछ तो हम भी सोच रहे है सोचते सोचते लिख रहे है। कुछ दिन कैसा बीता अपने आप से बतिया रहे है। रोज एक नई तस्वीर गढ़ते है और एक नई राह सोचते है। विचारों के भार से लदी सोच बदलने की नाकाम कोशिश करते है। पल पल दिमाग चंचलता की हर हद पार करता जाता है। हम भी इसे नादान समझ विचारों के फंदे बांध लौटा लाते है। ये रोज नई उड़ाने भरता जाता हम भी थोड़ा घूम आते हैं। कुछ समय पश्चात आनंद के बाद इसे पट्टी पे उतार ही लाते है। विचारों का क्या है टी वी देखते देखते टी वी के हो जाते है। एफ एम सुनते रेडियो से दिल लगा रेडियो बाबू ही हो जाते है। सत्संग में गलती से पहुंच जाते तो ये बेहद धार्मिक हो जाते है। दोस्तो के बीच बहुत बदमाश बेगैरत बेतकलुफ बन जाते है। अखबार पढ़ते पढ़ते नाहक ही नए विचार उमड़ घुमड़ आते है। माहौल देख के दिमाग भी दिल से बहुत तफरी पे उतर आता है। गूढ़ ज्ञान से संचित फिर मर्यादित विचार बाहर आता है। हम गलती करते करते गलत सोच से फिर बापिस होते है। वृहित विचारों से फिर इनका  एक नया द्वंद होता है। यहां संकलित शुद्ध विचार हर बार इन्हें हराते है और हम जीत जाते है। इसलिए कुछ

दर्शक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 दर्शक जब तुम बहुत कलात्मक दिखतेे हो तो जोश दिलाते हो। दर्शक जब  तुम  बहुत नकारत्मक दिखते हो तो उत्साह गिराते हो। दर्शक जब तुम बहुत भावात्मक दिखते तो उमंग से भर जाते हो। दर्शक जब तुम  बहुत आलोचक होते तो गलती करते दौड़ा बाहर करते हो। दर्शक जब तुम हो बहुत गम्भीर नज़र आते तो घबराहट ले लाते हो। दर्शक जब तुम हो बडे उतेजक शोर शोर कर न जाने किसका दिल दहलाते हो। दर्शक जब तुम  मार्गदर्शक बनते हो मन को बड़े सुहाते हो। दर्शक जब तुम घोतक होते हो तो कभी लक्ष्य बन सामने आते हो। दर्शक तुम जब शांत हो जाते हो तूफान आने अंदेशा बन जाते हो । दर्शक जब तुम गम्भीर सोच मुद्रा में जाते हो न जाने क्या कर जाते हो। दर्शक जब तुम दुघर्टना के समय होते हो तो मृत्यु तुल्य से हो आते हो। दर्शक तुम संगरक्ष क्यों नही हो जाते हो कुछ हिस्सा बन जाते हो। दर्शक तुम मूक वाणी की परिभाषा से क्यों बाहर नही आते हो। आज दर्शक दर्शक रहेगा येही रोज़ रोज अपने को कहलवाते हो। दर्शक चलो हृदय परिवर्तन से तुम्हे जीवंत करते है और दर्शक से योग्य तुम्हे बनाते है। जय हिंद। 🌟💫✨****🙏****✍ शुभ रात्रि। 🌹🌹🌹🌹

सब बिक रहा है।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 दुनिया वाकई बहुत बड़ा बाजार है सजा दरबार है। हर और हर कुछ न कुछ सब कुछ देखो बिक रहा है । कीमत देने वाला चाहिए सब मिल रहा सब बिक रहा है। हर कोई अपनी दुकान सजाए लगाये जो देखो खड़ा है। कोई दिल बेच रहा है कोई इमान का सौदा कर रहा है। कोई धर्म की आड़ में फ़क़ीरीं बेच रहा है कोई विश्वास बेच रहा । कोई रिश्तों को ही बेच गया कोई लहू का सौदा कर रहा है। कोई ज्ञान बेच रहा है कोई साधना और ध्यान बेच रहा है। कोई अपना पेशा बेच रहा है हर कोई अपनी कला बेच रहा है। कोई चमड़ी बेच के दमड़ी बना रहा है कोई चेहरे बेच रहा है। अब तो शायद भगवान से लेकर इंसान तक अपनी अदालत बेच रहा है। कोई पद बेच रहा कोई सच के सहारे भ्रष्टाचार बेच रहा  है। कोई जुमले बेच रहा कोई बर्बाद आंखों को सपने बेच रहा है। कोई अपनी पहचान हो बेच रहा कोई भूख बेच रहा है। कोई झूठ पे झूठ बेच रहा बचा तो झूठ का प्रचार बेच रहा है। कोई संताने बेच रहा  कोई तो कोख ही बेच जीवन चला रहा है। कोई अंग दान में जीवन से खेल अंग बेच रहा कोई मुफ़्लसी बेच रहा है। बोलो क्या खरीदोगे ये बाजार ये दुनिया वाकई बहुत बड़ा बाजार बना हुआ है। हर

लेते लेते।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 लेते लेते हम बहुदा देना भूल जाते है। जिससे देखो उससे बस लेते जाते है। माँ से लिया इस संसार तक का श्रम विश्राम। माँ से लिया इस संसार तक लाने का सौभाग्य। मां से  लिया प्रथम सांसारिक जीवन रस पान। माँ से ही समझा ममता का प्रथम ज्ञान। माँ से ही लिया सानिध्य में होने का भान। माँ से ही लिया प्रेम भाव अभिमान स्वाभिमान। पिता ने प्रशस्त किया संसार में आने का मार्ग। पिता से सीखा बहुत व्यवहारिक ज्ञान। पिता से ही लिया श्रम कार्यकुशलता प्रथम ज्ञान। ईश्वर के माध्यम से जाना आस्था का परिणाम। भाई बहनों से लिया रिश्तों का बेहतर ज्ञान। अपने शिक्षक गुरु से लिया विद्या का महादान। बंधु बांधवो से संग हो लिया सामाजिक ज्ञान। पत्नी ने पूरा किया असली पुरुष का पोरष ज्ञान। अपने बचने ने फिर दिया ममता का सुलभ ज्ञान। जीवनचक्र हर वक़्त हर समय कुछ कुछ देता रहा। मैं भी नादान सा होकर लेता और लेता ही रहा। लेने की आदत ही बुरी पड़ गयी देखो दोस्तो । अब हर रिश्तों के बीच समृद्ध होती आदत देखो। लेते लेते देना शायद मैं भूल रहा था। ये वो सफा है जिसे शायद मैं भूल चुका था। आज दोस्त के शब्दो

पैसा।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 पैसा पैसा पैसा बहुत काम का ये पैसा बस। हर शख्श इसके आगे पीछे भागता रहता बस। बड़े काम हर काम जीवन मे सबके आता बस। इंसानो की इज़ाद इंसानो पे ही हावी होता बस। पैदा होने से मरने तक का पूरा साथ निभाता बस। बचपन से बड़े होने की कवायत में संग रहता बस। इसे प्राप्ति के साधन वश ज्ञान दिलाया जाता बस हर माँ बाप अपने बच्चों को दौलतमंद देखते बस। कुदरत की सब नेमतों से हमेशा मुह फेर लेते बस। हर पाठ जीवन का पैसे को लेकर पढ़ाया जाता बस। कुछ भी पढ़ लो कर लो अंतिम लक्ष्य येही होता बस। ये ना मिले तो माँ बाप को बेहद दुख लग लेता बस। शादी ब्याह में इसको खूब तोल मोल देखा जाता बस। सुखी भविष्य का आगाज़ कटोरा ले लगाया जाता बस। हर रिश्ते में मुख्य आकर्षण सदैव ये ही रहता बस। इसी को देख हृदय विवश सब निभाया जाता बस। दोस्ती के अंत मे सुदामा को भी यही कराती है बस। इसके भोग से क्या कोई ईश्वर अछूता रहा? क्या कोई मंदिर इसके प्रभाव से अभागा रहा? क्या कोई साधु संत महंत इसका त्याग कर पाया? क्या कोई मठाधीश महामंडलेश्वर इसका मोह त्याग पाया? हर और हर तरफ इसकी ही चर्चा है बस। घूम फिर के हर ब

चाट।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 चाट कोन कौन खाये हो भाई। ये उत्तर पूर्व और पश्चिम भारत मे किसी न किसी रूप में या यूं कहें बहुत रूपों में खाई जाती है।मसलन आलू चाट समोसा चैट टिक्की चाट भल्ला पापड़ी चाट मटर टिक्की चाट आलू टिक्की चाट फ्रूट चाट आलू फ्राई चाट न जाने कितनी तरह की चाट बनाई खाई जाती है। चाट शब्द बहुत साधारण है समझने में। जब कोई चीज़ स्वादिष्ट लगती है तो परोसने वाली थाली जीभ से चाट ली जाती है।मतलब अत्यंत स्वादिष्ट जिसके बाद प्लेट भी चाटने का दिल करें। इसी तरह बहुत से मसालों चटनियों संग ऐसा मिश्रण तैयार किया जाता है जिसे खाने वाले को आनंद आ जाये और जीभ का स्वाद उत्तम हो जाये।येही चाट है।मसाले दार बातें चटपटी बातें सब इन्ही चटनियों के रास्ते संज्ञा पाती है।खैर आज यहां शाम ढल चली। रेल भवन से निकलते ही शीतल बहती हवा ने दिल छू लिया। पटेल चौक पार्किंग तक पैदल चलने का मजा आ गया। लखनऊ वाले हमे बहुत चाट खिलाये है।आज उनको भी दिल्ली की चाट खिलाने के मौका मिला अलबत्ता पैसे मैंने नही खर्चे। हंसिये मत। कॉलेज के समय से इंडिया गेट के सामने शाहजहां रोड है।उसपे यू पी एस सी भवन है।साथ मे गली है।और वहां प्रभु

यादों के झरोखों से।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣🌹✍ यादों के झरोखों से कभी कभी जिंदगी को झांकते है। कुछ भूले रिश्ते वक़्त की कब्र में दफन नज़र आते है। कुछ टूटे सपने कब के स्वाह हुए है दिखने लगते है। कुछ गैर जरूरी तकल्लुफ जो निभाये समझ आते है। जो इरादें नेक तो थे उनकी दुआ मिलती सी लगती है। जो दिल तोड़े उनकी आंच आज भी दिल पे लगती है। जो झूठ बोले उनसे रिश्तों की तबाही नज़र आती है। जो चोटें लगी और मिली उनके दर्द की टीस उठती है। मूक गवाही आज कुछ कृत्यों पे रोती सिसकती दिखती है। यादें हमेशा हसीन भी नही होती मन टटोलती रहती है। मगर आज यादें बहुत से किस्से छिपाये नज़र आती है। आज एल्बम खुली तो बहुत सी तस्वीरें नज़र आती है। ऐसा नही कुछ अच्छा नही बहुत अच्छा भी नज़र आया है। अच्छे की यादें रोज सुबह शाम मन बहला के निकल लेती है। यादों में कल की तरह ही सदा आगे पीछे बनी रहती है। बस अपने को और भीतर देखने की इच्छा भी कभी होती है। जब जब मैं अपनी और देखता हूँ कुछ गलतियों से रूबरू होता हूँ। कुछ पिछली यादों से कुछ अपनी गलतियां सुधार लेता हूँ। बस इसलिये यादों के झोरखों से अपने आप को देख लेता हूँ। कुछ बेमतलब हुई जिंदगी आगे के ल

जिंदगी कुछ यूं।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 कुछ यूं बीती कुछ यूं गुजरी कुछ कही कुछ सुनी। जिंदगी बहुत नायाब ही निकली जितनी समझी और सुनी। हर मोड़ पे इक शख्स उम्र से तजुर्बा लिए खड़ा है। हम उनसे मुखातिब होते है यहां उम्र जुड़ जाती है। कुछ आदायें दुनिया की हमपे भी मेहरबां होती है। हम उनके बहकावे में आते वो हमारी हो जाती है। वक़्त बे वक़्त दुनिया की हस्तियों से  उलझते रहे। कुछ वो खुद से सुलझ गये बाकी हमे सुलझा गये। नादान परिंदे भी बहुत मिले नादानियां करते हमे। हम खुद से नादां हो उन्हें समझदार कहलवा गये। कुछ तो बेहतरीन मंजरों का भी हमे एहसास हुआ। कुछ हमने जी लिये बाकी उनके लिए छोड़ आये। बहुत से गरूर मिले बहुत गरूर टकराये भी हमसे। कुछ तो हमने गुजरने दिये कुछ की राह बदल दिये। मोहबतें भी टकराती रही जिंदगी चोट खाती रही। हम भी मलहम लगाते रहे जिंदगी तुझे संवारते रहे। वक़्त बहुत जाया हुआ खूबसूरती को समझने में। खोजी तो भीतर ही छुपी थी जरा धूल में पड़ी थी। बात बहुत सालों में समझ आयी दुनिया रही पराई। मोह को लगे हैं सभी प्रेम की किसे कब याद आयी। कुछ यूं बीती कुछ यूं गुजरी कुछ कही कुछ सुनी। जिंदगी बहुत नायाब ही

खाना जालंधर दा।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 पंजाब में बहुत अच्छे अच्छे शहर है।सब की अपनी अपनी खूबियां है।कुछ के नाम दुनिया जानती है। लुधियाना जालंधर अमृतसर दुनिया मे जाने जाते है।और एक चीज़ भारत वर्ष में पंजाब ने मशहूर कर दी है वो है ढाबा। ढाबा शब्द पंजाब से निकल कर पूरे भारतवर्ष में फैल गया।इसका श्रेय यहां के मेहनती ट्रक चालकों को जाता है।खैर आज जालंधर के सफर पे था।खाना पीना आदतन नई जगह देखता है।तो आज भी सोच कोई नई जगह खाना खाया जाये। दोपहर के डेढ़ बजे रहे थे। नाश्ता सुबह 7 बजे किया था।चूहे पेट मे दौड़ रहे थे।तो जालंधर स्टेशन के आसपास कोई अच्छी जगह जाया जाये।हमारे सहकर्मी हमे एक ढाबे पे ले गये। सेंट्रल टाउन जालंधर।जगह थी सैनिकस मणी वेजेटेरियन ढाबा।ये यहां की लोकल चेन समझ लीजिए। शायद चार पांच आउटलेट है।वहां पहुंचे तो साफ सुथरा छोटा सा बैठने का स्थान।सामने बुफे लगा हुआ।आप अपनी पसंद से मेनू में भी ले सकते है।खैर अपनी आदत हमेशा मशहूर को लेती है।वहां का बुफे मशहूर है। मात्र 120 रुपए प्रति थाली। अब आप पर्ची कटवाओ और थाली प्राप्त करो।सामने खीरा प्याज़ सलाद हरी मिर्च और आचार। अब बुफे पे आ जाईये । जीरा राइस , कढ़ी पकोड़

गुलाल उड़ाया जाये।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 चल आज रंगों की बात हो जाये थोड़ा गुलाल उड़ाया जाये। टेसुओं के फूलों को आज फिर पीस के कुछ रंग बनाया जाये। रात जो बीती टेसुओं को भिगो कर कुछ केसरिया हुआ जाये। बहुत से फूलों की बहार आयी हुई है चलो कुछ सुखाया जाये। इन गुलों से कुछ महक ले के अबीर गुलाल पीस पीस बनाया जाये। कृष्ण के श्याम मलाल को राधा पे रंग डाल मिटाया जाये। चल चैत्र मास की पूर्वसंध्या पे रंगों संग नववर्ष का स्वागत किया जाये। मनु भी आये पूरा इतिहास रच लाये चलो उन्हें भी याद किया जाये। अरे अरे देखो जोधा संग अकबर खेल रहे होली कुछ याद किया जाये। चलो आज ईद ए गुलाबी आब ए पाशी शाहजहां संग मनाया जाये। आया रे वसंत झूम झूम के रंगों को इसमें उड़ाया जाये। चलो काम देव को आमंत्रण दे उन्हें पुनः जीवत किया जाये। चलो नंदी भृंगी गणों को भी आज रंगों से संवारा जाये। कुछ रास रंग नाच गाना मृदंग संग बजाय गाया सुरम्या जाये। बहुतों के गिले शिकवों टूटे बिखरे दिलों को मिलाया जाये। सब रंगों से भरे इस त्यौहार को सब संग मिल मनाया जाये। ब्रिज से उठी धूली को कृष्ण संग गुलाल बना उड़ाया जाये। चलो खेलें होली को प्रेम संग दि

चल छोड़े।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 नादानियां बहुत है जिंदगी की किसे देखें किसे छोड़े। आज़ाद तो हुए हम मगर तन्हा तन्हा किसे पकड़े किसे छोड़े। ख्वाईशें बहुत है इस जिंदगी से किसे जियें किसे छोड़े। मासूमियत भी भरी है जिंदगी में किससे कहें कैसे छोड़े। हैवानियत कभी सवार होती है कैसे निकालें कैसे छोड़े। जख्म बहुत लिए क्यों दिखाएं क्यों न दिखाएं बस छोड़े। सीखने को बहुत मिला जिंदगी किसे सीखे किसे छोड़े। दुआएं बहुत ली और दी कब लगी नही लगी चलो छोड़े। मकसद बहुत बनाये जिंदगी कब पूरे हुए अधूरे रहे छोड़े। रिश्तों की कमान कई बार हाथ आयी फिसली चलो छोड़े। मन दौड़ता रहा पकड़ने की कोशिश करते रहे चलो छोड़े। मुरादें लेकर समय बहुत मुक़दस आया गया चल छोड़े। रहम तक़दीर से बहुत हुए न हुए चलते रहे चल रे छोड़े। इनाम बरबस आ खड़े हुए अचानक फुर्र हुए चल छोड़े। नेमते बहुत थी जिंदगी में मिलती छूटती गयी चल छोड़े। यारियां दिल से लगी कब छूटी कब टूटी रूठी चल छोड़े। रश्क  बहुत हुए जिंदगी में कब घटे कब बड़े चल छोड़े। दीन बहुत दिखे जिंदगी में कृपा मिली न मिली चल छोड़े। खुशियों ने दामन हर बार थामा हर बार झटका चल छोड़े। इतने रंगों से सरोवार है जिं

हमे और भी।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 हमें और भी होंसलों की तलाश है। हमे और भी उड़ाने अभी भरनी है। हमे और भी मंज़िलों को छूना है। हमे और भी ऊंचाइयों पे जाना है। हमे और भी किस्से अभी बनानें है। हमे और भी कहानियां लिखनी है। हमे और भी कविताएं अभी पढ़नी है। हमे और भी गीत अभी गुनगुनाने हैं। हमे और भी हाथ अभी साफ करने है। हमे और भी अस्त्र अभी चलाने है। हमे और भी नज़रें अभी पैनी करनी है। हमे और भी युद्ध अभी जीतने है। हमे और भी सफाई अभियान चलाने है। हमे और भी कुदरत को करीब लाना है। हमे और भी बेहकावों को अभी छोड़ना है। हमे और भी बेबसी से पार अभी पाना है। कुछ न पूछो आ दिले नादां तुझे भी बुलाना है। दुनिया तो बड़ी बेरहम है दिल तोड़ के हंसती है। कुछ न कुछ कर इन मुखालतों से पार पाना है। जिंदगी रोज नया फसाना है हमी ने सुनना हमी को सुनाना है। जय हिंद। 🌟💫✨****🙏****✍ शुभ रात्रि। 🌹🌹🌹🌹🌹❣🌹🌹🌹🌹🌹

क्रोध हो रहा है।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 क्रोध हो रहा है क्रोध हो रहा है। अपनी सोच पे क्रोध हो रहा है। अपनी इच्छाओं पे क्रोध हो रहा है। अपनी जुबान पे क्रोध हो रहा है। अपनी शब्दों पे क्रोध हो रहा है। अपनी अकर्मण्यता पे क्रोध हो रहा है। अपनी नाकामियों पे क्रोध हो रहा है। अपने विश्वास पे क्रोध हो रहा है। अपने निर्णय पे क्रोध हो रहा है। अपने निश्चय पे क्रोध हो रहा है। अपने लगाव पे क्रोध हो रहा है। अपने झुकाव पे क्रोध हो रहा है। अपने वायदे पे क्रोध हो रहा है। अपने सहयोग पे क्रोध हो रहा है। अपने व्यवहार वे क्रोध हो रहा है। अपने मृदु भाषा पे क्रोध हो रहा है। अपने मुखालते पे क्रोध हो रहा है। अपने धम्ब पे क्रोध हो रहा है। हां बहुत क्रोध हो रहा है। जम के ये मुझपे बरस रहा है । मुझे पूरा गिराने को हो रहा है। हां बहुत क्रोध हो रहा है। ये क्या लिखते लिखते ही पी गया हूँ। कौन है जो मेरी और ही रहेगा। अकेला था अकेला हूँ अकेला ही रहूंगा। चल छोड़ किसके कर्मो का लेखा लिखता है। जिंदगी थोड़ी सी ही बची है। थोड़ा और पी चल शांत हो । कल की तुझे क्यों पड़ी है? हर एक शख्श अपने कर्मो का भागी है। चल छोड़ तुझे