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Showing posts from October, 2017

पंचमढ़ी।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 मध्यभारत का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है ' पंचमढ़ी'। सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में बसा एक खूबसूरत प्राकृतिक सौन्दर्या से भरपूर जगह। में 2006 से 2010 तक मध्यप्रदेश रहा। कई बार मौका लगा जाने का। वहाँ जा के श्री भवानी प्रशाद मिश्र की कविता याद आ जाती है। हमने स्कूल में पड़ी थी। शायद आप में से किसी को याद हो। कविता के शब्द                सतपुड़ा के घने जंगल।         नींद मे डूबे हुए से         ऊँघते अनमने जंगल।            ये बर्बस ही जीवंत हो उठता है। पंचमढ़ी मैं जा के आप सुरक्षित वन्य जीवन का पूर्ण आनंद ले सकते हो। इंसान नामक भक्षक से ये क्षेत्र अभी भी सुरक्षित है। मिलट्री का कैंटोनमेंट है अंग्रेजों के जमाने से। सो बेहतर स्तिथि में है। इस क्षेत्र का बहुत ज्यादा व्यवसायी कर्ण नही हुआ है। सो प्रकृति की गोद हरी भरी है। यहां रोड के रास्ते जबलपुर या भोपाल से आसानी से पहुंचा जा सकता है। पास में पिपरिया रेलवे स्टेशन भी है। रेल से भी जुड़ा हुआ है।पिपरिया मंडी अपनी उम्दा तुहर दाल जे लिये देश भर में मशहूर है। आप के पास अगर अपनी गाड़ी हो तो आते हुए या जाते हुए स्टेशन क

जय कालका माई।

💐🙏🏾********************✍🏼💐 नरेन्द्र चंचल की बड़ी मशहूर भेंट है' चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है'। और मैने इसे जीवन में बहुत अच्छे से जिया है। मुझे याद है हम श्री निवास पुरी रहा करते थे। कालका माई का द्वार हमारे घर से शायद  3 से 4 किलोमीटर रहा होगा।  में स्कूल में पढ़ता था। नवरात्रे आते ही माँ का दरवार सज जाता था।बड़ा सुंदर मेला लगा करता था। कालका जी का नवरात्री मेला दूर दूर से लोग देखने आते थे। बचपन था भक्ति का ज्यादा पता नही था। मेरे दो तीन लक्ष्य होते थे। एक फोटो खिचवाना दूसरा कचौड़ी आलू की सब्ज़ी खाना और तीसरा अगर तीर निशाने पे लगे तो माँ से खिलौना खरीदवाना। माता के दर्शन का लाभ माँ की भक्ति की बदौलत मिल ही जाता था। हम घर से पैदल आया करते थे।कालका जी की पहाड़ी पार कर के। दर्शन करते। और मंदिर के बिल्कुल बाहर मिठाई की दुकान थी उसपे कचौड़ी बिका करती थी वो दुकान आज भी वहीं वैसी ही है। मुह में पानी घर से चलते ही आ जाता था। माँ भक्ति वश जा रही थी हम जीभ जे स्वाद वश उंगली पकड़े थे। सालों साल ये सिलसिला चला। हर शारदीय नवरात्रे की एक फोटो आज भी घर में मौजूद है। माँ की श्रद्धा वश बु

प्रणाम एक विद्या।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 पुराने समय से हमारे यहां आदर भाव दिखाने के कई तरीके बताये गये है। गुरु शिष्य परंपरा सदियों पुरानी है। गुरु का आदर उसकी सेवा और उसकी मर्यादा का आदर शिष्य की शिक्षा का प्रथम अध्याय होता है। प्रथम गुरु माँ होती है। उसके चरण वंदन से कई शिक्षाएँ हाथ लगती हैं। पहला आदर भाव से झुकना जो आप में शालीनता का पहला सबक देता है। बड़ों के प्रति कृतज्ञता का भाव उत्तपन करता है। आप में समर्पण का संदेश अनुग्रहित करता है। इससे प्रथम आप के सामने वाले के हृदय में प्रेम भाव आप के प्रति उत्पन होता है।  ये प्रेमभाव आप के प्रति आकर्षण को जन्म देता है। ये आकर्षण आप को बुनियादी शिक्षा के पहले सफ़े से सफलता का परिचय करा देता है। जिसने गुरु की नज़र में आकर्षण पैदा कर लिया और अपने लिए स्नेह। उसका सफल होना तह है। हर समाज ने अपने आदरभाव के तरीके विकसित किये है। एक अदब को जन्म दिया है। अंग्रेज़ गले मिलते है। मुस्लिम अदब से सिर झुका सलाम बजाते हैं। हिन्दू नमस्कार करते है।  ये अदब समाज की विशिष्ट पहचान भी है। संसार की दूरियां सिमट रही है। संसार सिमट गया है। दुनिया के तौर तरीके आप के दर आ पहुंचे

देहरादून ।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 आज देहरादून रहने का भाग्य और मौका बना। सुबह सैर करने का भी मौका मिला। देहरादून का मौसम बहुत सुहाना है। ना ज्यादा ठंड है ना गर्मी। पूरा दिन मौसम बेहतरीन है आज कल। सुबह नाश्ता भी यहां के एक अच्छे रेस्ट्रॉन्ट आनंदम में करने को मिला । छोले भटूरे तो अच्छे थे ही साथ ही छाछ भी बढ़िया थी। आटे के लडू स्वादिष्ट थे। कुछ समय पहले यहां से फेनिया ले के गया था। बहुत स्वाद और आनंद से खाई गयी। कहने का मतलब है एक अच्छी साफ सुथरी और हर मानकों पे अच्छी उतरने वाली दुकान है। कभी आप को मौका लगे तो जरूर आइये बल्लू पूरा चौक के पास ही दुकान है। राजपुर रोड पे भी रेस्ट्रॉन्ट है । जब भी मसूरी घूमने का मन हो और देहरादून रुकने का समय मिले तो यहां आ कर जाईये। घंटाघर चौक पे भी कुछ समय बिताइये। यहां एक बेकरी है सनराइज उसका पल्म केक और मिल्क रस बहुत बेहतरीन है घर ले कर जाईये। कुमार स्वीट की चॉकलेट बर्फी खाइये। एलोरा की बटर बाईट टॉफी का मजा लीजिये। देहरादून खाने और मौसम के हिसाब से बेहतरीन जगह है। साल भर मौसम अच्छा रहता है। सामने मसूरी धनौल्टी के पहाड़ों के दर्शन खूबसूरत हैं।देखने के लिये बे

आवाज़।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 आज बरबस बेठे बेठे ख्याल आया कि इंसान चेहरे से तो अलग होते ही है परन्तु आवाज़ भी हर एक व्यक्ति की भिन्न होती है। आस पास नज़र उठा के देखिये आप को कोई दो एक जैसी आवाज़ वाले नही मिलेंगे। हर एक आदमी या व्यक्ति अपने सामाजिक दायरे में कम से कम सौ से दो सौ व्यक्तियों से पहचान रखता ही है। चाहे वो रिश्तेदारी हो चाहे वो दफ्तर का दायरा हो चाहे वो अड़ोस पड़ोस के सामाजिक दायरा हो। बचपन में स्कूल की पढ़ाई शुरू होती है । कई भाग्यशाली बच्चे एक ही स्कूल में पड़ते है। कुछ साथी एक उम्र स्कूल में साथ साथ पूरी करते है।इसके बाद कुछ उच्च शिक्षा के लिए अलग अलग हो लेते है। और फिर अपने धनार्जन के पेशे में लग दूरियाँ बना लेते है। सालों साल आवाज़ सुनाई नही पड़ती। फिर एक दिन घंटी बजती है और आवाज़ आती है पहचाना भाई?  दिमाग हल्का सा दबाव लेता है और बरसों पीछे सेकंड भर में पहुंच जाता है। चेहरा आवाज़ के जरिये सामने आ जाता है। इतनी शक्तिशाली आवाज़ की तरंगें है। लड़कों को लड़के शायद एक बार को न पहचान पायें पर लड़कियों के मामले में आवाज़ दिमाग पे सट देनी असर करती है। इसलिए शायद ऐसा होता भी बहुत बहुत कम है।

नीयत।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 एक रोज़मर्रा में बोले जाने वाला शब्द है 'नीयत'। ज्यादातर इसे हम नकारात्मक रूप में ही देखते सुनते आए है। और ज्यादातर नीयत का नाम लेते ही कहते मिल जाएंगे अरे आप की नीयत ठीक नहीं। नीयत एक तरह का आकर्षण है जो आप को अच्छे बुरे के भेद में ले जाता है।आप के शक करने की प्रवृति को जागृत रखता है। शक हमेशा आप के  दिमाग को सतर्क रखता है। और ये आप को दो तरह से प्रभावित कर सकता है। एक आप हर समय अनहोनी के लिए सतर्क और तैयार रहते हो। वक़्त पे आप चीजों को भांप लेने में सक्षम हो जाते हो। सतर्कता आप को हर दम खड़े पैर रखती है। और ये भाव आप को अच्छे लग सकते हैं पर हो सकता है दूसरों को न लगें। कहने का मतलब साफ है नीयत भांपने में आपको क्षण भो नही लगता पर सामने वाला संकोची तो हो ही जाता है। और नीयत नकरात्मकता का अंश बनाये रहती है। और दूसरा अत्यधिक सतर्कता आप को शक्की बना देती है। गाहे बगाहे आप दुनिया से उलझते रहते हो। जो सतर्कता का नकारत्मक पहलू है। और ये नीयत को बदनीयत करने में भी सक्षम है।' नीयत अगर अच्छी हो तो व्यक्ति सफल हो सकता है' ऐसा हमे सुनने को मिलता ही रहत

जीत।

💐🙏🏾********************✍🏼💐 एक शब्द है 'जीत'। बड़ा महत्व रखती है जीवन में।एक जीत आप का होंसला काफी बढ़ा देती है। एक हार आप को अपने सबसे निचले स्तर पे ले जाने में सक्षम है। एक जीत दूसरी जीत को जन्म देती है। और फिर ये एक सिलसिला बन जाती है। जो इसका स्वाद एक बार चख लेते है उन्हें वक़्त के साथ इसकी आदत पड़ने लगती है। ये आदत जब तक बहुत अच्छी है जब तक ये आप को आप की 'मैं' से दूर रखें। आप का अहम तो बरकरार रहे परंतु घमंड न आये। ये बहुत ही आवश्यक है। जीतने की कला जीवन की सफलता की कुंजी है ही। आप के साथ आप के इलावा आप का परिवार जुड़ा है। जो आपसे प्रेरणा लेता है। कहीं आप आश्रित है तो कोई आप पे आश्रित है। जो आप पे आश्रित है वो आप की विजय के यश को देखना चाहता है। ये विजय आप के काम में हो। आप में छुपी किसी प्रतिभा मैं हो। ये विजय आप की सामाजिक प्रतिष्ठा में हो। ये विजय आप की रिश्तेदारी में आप के रसूख को लेकर हो। या ये विजय आप के अध्यात्म में हो। ऐसी बहुत सी जीत आप को साहसी  बनाने में  सहायक होती है। जब आप साहस के साथ किसी भी क्षेत्र में अपनी ताकत की परख करते हो तोआप को परिणाम अपेक्षा

आप का व्यक्तित्व आप का आइना।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 बहुत से व्यक्तित्व आप को प्रभावित करते हैं आप के जीवन काल में।जब बचपन था तो माता पिता से बेहतर कोई नही। उनकी बौद्धिक क्षमता से ज्यादा कुछ दुनिया में नही। आप को हर चीज़ का जबाब उनके पास नज़र आता है। और बात भी सही है। बचपन के ज्यादतर सवाल माँ बाप अच्छे से हमे समझा सकते है। वो ज्यादातर आम प्रश्न होते थे या फिर छोटी कक्षा के जिन्हें ज्यादातर माँ बाप हल करने की स्तिथि में होते थे। इसलिए हमारे लिए बचपन के  हमारे प्रेरणा स्रोत्र भी होते है। पहली शिक्षा किसी भी इंसान को घर से ही मिलती है। घर पे दादा दादी माता पिता और भी रिश्तेदार हमारे शुरू शुरू के शिक्षक बनते है। और ये बात पूरी उम्र आप को राह दिखाती रहती है। पूरे जीवन का सार बड़े बजुर्ग हमे संक्षिप्त में समझा पाते हैं। ध्यान से अपने जीवन में इन सब का योगदान देखिये तो पता चलेगा कि बहुत कुछ हम उनके चश्मे से देखने की कोशिश करते रहते है। ये बचपन में मिले सहज ज्ञान का प्रभाव होता है। जो पूरी उम्र संग ही रहता है। सहज और व्यवहारिक ज्ञान ज्यादातर घर से ही मिलता है। स्कूल में सीखने या सिखाने पे भी बहुत बार बच्चों में बदलाव

सैर और सेहत।

💐🙏🏾********************✍🏼💐 सैर करना सेहत के लिये एक बेहतरीन उपाय है। आज कल की भागदौड़ वाली कॉरपोरेट जीवनशैली ने दिमाग को तो खूब लाद दिया है । पर शरीर को छोड़ दिया है। जब हम दफ्तर जाते है तो हर श्रेणी के लोग हमारे आस पास नज़र आते है। एक वो वर्ग है जो सेहत को लेकर काफी सतर्क है। दूसरा सतर्क तो है पर गम्भीर जरा कम है। तीसरा मेरे जैसा है जो लापरवाह है। ये लापरवाही एक उम्र के बाद  आप के लिए संकट की घड़ी बन सकती है। और उससे अगर पार पाना हो तो हमारा शरीर और उसके अंग चलायमान रहने चाहिये। ये हमारे शरीर में खून का परवाह संतुलित रखता है। और वायु भी प्रचुर मात्रा में मिश्रित होती है। इससे कई सामान्य रोगों को साधा जा सकता है। छोटी छोटी बीमारियां ज्यादा तंग नही करती।मेरा स्थूल शरीर आराम अवस्था मे ज्यादा रहना चाहता है।उसे आराम नही चाहिये पर दिमाग आलस की तरफ भगाता है। ये आलस ही हमारे दुखों का कारण बनता है। ये दुख गम्भीर होंगे या नही शायद वक़्त से जागी चेतना पे निर्भर कर सकता है। एक बार चिड़या अगर खेत चुग गयी तो पछताये क्या होगा। बहुत दिनों से सेहत को लेकर परेशान तो था जिसका कारण में खुद ही हूँ। एक वक्