Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2018

सड़क और हमारा जीवन सफर।

🌹🙏🏼*******************✍🏼🌹 सड़क जीवन के कुछ विषय पे काफी साथ चलती नज़र आती है।हम लोग इसका लुत्फ रोज किसी न किसी तरह उठाते ही है।कभी हंस के कभी गुस्सा हो के कभी गाली दे के।सड़क सफर करने का और मंज़िल पे पहुंचने का आसान साधन है।इसका विकास मनुष्य के विकास के साथ ही हुआ।पहले पहल मनुष्य ने आवा जाही के लिए इनका निर्माण किया।कच्चे रास्ते गांव कस्बो शहरों को जोड़ते थे।नदी के उथले तल ढूंढ़ के रास्ते बनाये जाते थे।पहाड़ काट में पगडंडियों का निर्माण होता था।ज्यादतर काम हाथ से होता था।नया दौर पिक्चर में इसे बखूबी समझा जा सकता है।आज भी लकड़ियों के बने पुल इस्तेमाल में है।ये सब की जरूरत मंजिलों को कैसे कम समय में तह किया जाये इसके लिए पड़ी।दार्शनिक और साम्राज्य विस्तार वादी लोगों ने नई जगाहें वादियाँ मैदान तलाशे।पहुंचने के लिए रास्ते बना डाले।हिंदुस्तान का शेर शाह सूरी मार्ग सम्भवतः हमारे यहां का सबसे लंबा कच्चा रास्ता बनाया गया सदूर पूर्व से उत्तर को जोड़ा गया।बहुत सी सराय और मील पत्थर लगाए गए।ऐसे ही सिल्क रोड भी है।जो सम्भवतः सबसे खतरनाक दर्रों से होकर गुजरती है।इंसान के विकास की कहानी कहती है ये सड़कें।

धर्म।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 एक शब्द मेरे दिमाग को सदा आंदोलित करता रहता है वो है "धर्म"। और उससे जुड़ा एक प्रश्न की क्या मनुष्य से धर्म है या धर्म से मनुष्य? इसी प्रश्न की खोज में दिमाग इधर उधर ढूंढता पढ़ता रहा।फिर धर्म सी जुड़ी शिक्षाओं को ध्यान से पढ़ा।धर्मं को समझना कुछ आसान लगा।हर धर्म को किसी न किसी ने कलम बध किया।चाहे वो हिन्दू मुस्लिम इसाई या कोई और धर्म हो।दुनिया में ये तीन धर्म हर तरह से सनातन रूप में है।उत्पत्ति कुछ मिलती जुलती है।फिर इन्ही धर्मो की बहुत सी शाखाएं हैं।पर ये है क्या असल में? समय समय पर मनुष्य जीवन पे शोध होते रहे है।मनुष्य समाज मूढ़ से परिपक्वता की तरफ बढा है।इस दौरान इस समाज को सिरे से एकजुट रख आगे बढ़ने के विषय पे सोचा गया।इंसान की दिमागी फितरत को करीब से जाना और समझा गया।हमारे यहाँ ये शोध बड़े पैमाने पे हुए।ऋषि मुंनी इसके ज्ञान को लेख बद्व करने में अग्रणी रहे।धर्म की बहुत सी परिभाषाएं बनी और धर्मो से जुड़ी है।पर शब्द "धर्म "कोई संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित

प्रारब्ध।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 आज हमारे एक खास मित्र अपने माता पिता को लेकर बहुत परेशान थे।माता पिता बहुत सदकर्मी ईश्वर में अटूट विश्वास और साफ सुथरे व्यक्तित्व के मालिक थे।शायद कभी किसी का बुरा न चाहा हो।मगर अब बुढ़ापे में आ देह बेहद कष्ट मैं थी।मित्र बहुत परेशान।दिमाग पे बोझ बड़ा लिया था।भीतर ही भीतर अपनो से और ईश्वर से क्रोध कर लिया।शायद दिमाग बोझ से दबा नकरत्मकता को बढ़ा रहा था।कोई प्रिय नही दिखता था।सब मतलबी निष्ठुर और धम्भी नज़र आते थे।लडाई का मन पूरे जोर पे था।शायद झगड़ा किया भी।प्रश्न एक ही था बार बार मेरे माता पिता की ऐसी गति क्यों?बात होतें होते ये अन्दाज़े हीँ लगते रहे बस ।येही प्रश्न मेरी तरफ बड़ा दिया गया।मेरा पहला उत्तर था उनका "प्रारब्ध" ही इसका कारण है। तो पहले प्रारब्ध की परिभाषा समझी जाये। प्रारब्ध को काम आरंभ किया हुआ भी कहा जा सकता है या जो शुरू किया गया हो। सबसे जरूरी पूर्व जन्म अथवा पूर्वकाल में किये हुए अच्छे और बुरे कर्म जिसका वर्तमान में फल भोगा जा रहा हो।प्रारब्ध इसी को इंगित करता है।अपने द्वारा किये गए उक्त कर्मों का फलभोग।विशेषतह इसके दो मुख्य भेद हैं

ज्योति कलश छलके।

🌹🙏🏼*******************✍🏼🌹 मैं एक गाने पे बहुत बार लिखना चाहता हूँऔर हर बार फैल हो जाता हूँ। सोचा आज लिख ही दूं।ये रह रह कर मेरे मन में गूंजता रहता है।पंडित नरेन्द्र शर्मा ने शब्दो को इतनी खूबसूरती से पिरोया है के आंख बंद कर गुनगुनाने का आनंद ही अलग है।में ग्रामीण जीवन से बहुत प्रभवित रहा हूँ।एक मेरी पैदाइश और दूसरा कुछ बेहद करीब से देखा जीवन वहां की खुली खुली धरती शुद्ध शीतल हवा और वहां कि सुंदरता मुझे आकर्षित करती रही है।वहां की सुबह का आनंद बड़ा सुख दायी है।वहाँ की छोटी छोटी चीज़े बातें मेरे मन में सदा समाई रही है।चूल्हा लीपना घर में रोज गोबर मिट्टी से लिपाई।उसकी महक ।चूल्हे पे बनती गरम गरम मकई की रोटी।मखन के साथ लस्सी ग्लास।हरी मिर्च अदरक की चटनी।ये सब नहाने और पूजा के बाद।और नहा के मन्दिर जा के जल चढ़ाना ।भगवान के सुंदर प्राकृतिक निवास का आनन्द लेना। कनेर के फूलों से भगवान का श्रृंगार।  ये मेरे गाँव और जन्मस्थान का मेरे अंदर जीता एहसास है।उस मिट्टी की भीनी भीनी सुबह की खुशबू मुझे बहुत भाती है।फिर जब सूरज निकलने को होता है और पंछी चहचाहट करते झुंडों में उड़ते है तो उन्हें निहारने

बच्चे खेल और पार्क।

🌹🙏🏼*******************✍🏼🌹 बच्चे हमारे साथ साथ हमारे देश की धरोहर है।ये हमारा हमारे समाज का सुंदर भविष्य और उसकी कल्पना संजोय हुए है।इनसे ही हम अपना और अपने देश का बेहतरीन कल देखते है।इनका स्वस्थ शरीर और स्वस्थ बौद्धिक क्षमता देश के सकारत्मक विकास में सबसे महत्वपूर्ण है।जिसके लिए इसकी सांझी जिम्मेदारी हम सब की है।सरकार स्कूल घर ये सब इनके सतत विकास के लिये सुविधाएं मोहिया कराने के साधन है।जहां जहां ये तीनों अंग साथ मिल के काम करते है वहाँ विकास की धारा बह निकली है।विकसित देश इसकी कहानी कहते है। हमारे देश में खेल आज भी समाज को जागरूक करने में असफल रहे है।क्योंकि ये हमारे मनोरंजन का साधन मात्र है।और हम इन्हें किसी सिनेमा की तरह देखते है। अपने पे लागू करने के भावना से दूर।हमारे शहर बेतरतीब तरीके से विकसित हो गये है और हो रहे है। बच्चों के विकास के साधन कहीं भी देखने को नहीं मिलते। शहरी विकास मंत्रालय हर जगह है।शहर बसाता है।और कुछ आधारभूत सुविधाओं के ध्यान के बिना।हम छोटे थे।घर के आस पास पार्क खेलने की लिए मिलते थे।हमें खेलता देख बड़े बूढे खुश होते थे।जम कर वर्जिश और जम के खेलते थे।पार

प्रसन्नचित।

🌹🙏🏼*******************✍🏼🌹 कभी कभी मन हंसता रहता है हम चाहे न चाहे खुशी अपने आप आती है। बिना कारण।और मन प्रफुलित हो खूब खिलखिलाता है।कारण मुझे बड़ा सादा सा लगा ।जब दिमाग शांत हो कोई बोझ न हो और आस पास हल्का फुल्का माहौल हो।तो शायद दिमाग कि स्तिथि बहुत सामान्य हो जाती है।जब दिमाग सामान्य स्तिथि में पहुंचता है तो मान लीजीये ये इसकी सबसे सौहार्द की स्तिथि है।हर तरफ सब अच्छा अच्छा महसूस होता है। जो हल्की फुल्की बातें हमारे चारों तरफ होती है वो भी मनोरंजक सी लगती है।अगर आस पास दोस्त मित्र मिल जाते है तो समाँ बांध देते है।हम उम्र की बातें तफरी का मूड बना देती है।मित्रों सहयोगियों सेहकर्मियों के साथ खाने की टेबल छप्पन भोग सी महसूस होती है ।सारे डिब्बे खुल जाते है।कई स्वाद ज़ुबान पे चढ़ जाते है।इन सब के बीच दिमाग पूरे मजे ले रहा है।जब आप हंसते हो।खून का दौरा अपनी प्राकृतिक चाल पकड़ लेता है।जीवन वायु को मस्तिष्क तक खूब इकठ्ठी कर ले जाता है।हृदय हसने के साथ ही अपनी कसरत शुरू कर देता है।कसरत करता हृदय बेहद स्वस्थ और तारो ताज़ा महसूस करता है।दिमाग को सकारत्मक संदेश भेजने लगता है।हर हंसी का पल पूरा

होली और रंग।

🌹🙏🏼*******************✍🏼🌹 होली का त्यौहार आने को है। वसंत ऋतु अपना जौहर दिखा रही है।फाल्गुन मास में प्रकृति ने सब रंग बिखेर दिए हैं।हर तरफ रंग बिरंगे फूलों की बहार है।नायाब नायाब फूल।भांति भांति के फूल।यहां वहां जहां तहां नज़र उठती है बस रंग बिखरे नज़र आते है। डेलिया इसी मौसम में खिलता है।पीला जमुनी सफेद गुलाबी लाल अनेक रंगों में।टेसू के फूलों से अरावली पर्वत शंखला केसरिया हुई जाती है।जहां तहां कपोलें खिल उठी है।खेतों में सरसों पीली चादर बिछाए है।गेंदे की तो बात ही न पूछो। गुलदावरी ने कितने रंग अख्तियार कर लिए है।गुलाबों में महक फूट पड़ी है।और देखो कुछ दिन पश्चात होली सामने होने को खड़ी है।रंग आप को जीवन के हर पहलू में रंगीनी बनाये रखने की प्रेरणा देते है।आज कल सुबह और शाम मीठी मीठी ठंड से नहाई है।हवा की शीतलता आंखों नाक से छूती हुई पूरे शरीर को आनंद दे रही है। न पंखे न ए सी की जरूरत।कमरे की खिड़कियां खोल दो मंद मंद शीतल हवा के झोंके सारे कमरे का मौसम खूबसूरत कर देते है।शरीर एक सकूँन में आ गया है। ये मौसम प्रकृति के रंगों से गुलज़ार है। दिमाग की तबीयत भी दरुस्त कर देता है। हमारे पुरखे