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Showing posts from December, 2017

एक और साल।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 फिर एक साल खत्म होने को है। हर तरफ हर एक कोई अपनी तरह से जाते साल और आते नए साल का स्वागत अपनी अपनी तरह से करने को तैयार है। कुछ घर पे महफिल सजाये है। कुछ चुनींदा स्थानों होटलों में अपने नए साल के जश्न में जाने को बेकरार हैं। कुछ धार्मिक कार्यक्रमों में व्यस्त हैं और कुछ अपने को धार्मिक कार्यक्रमों से नए साल में ले जा रहे है। कुछ खाने के शौकीन कुछ पीने के, कुछ नाचने के तो कुछ आतिशबाजी के। सब अपने को अपने तरीके से नए साल में ले जा रहे है। कुछ मुड़ के पीछे साल का पूरा आंकलन भी कर रहे हैं। कुछ सब भूल के आगे बढ़ रहे है। कुछ नई उपलब्धियों की तैयारी में है। कुछ का  साल हर बीते सालों की तरह बीत रहा है। कुछ नया नही जिंदगी बस यूं ही बीत रही है। कुछ बेहद नए बदलाव देख रहे है। कुछ की अपेक्षाएं बहुत बढ़ गयी है। एक बड़ा तबका ज्योतिष पे आस लगाये बैठा है।बस कल सुबह भाग्य किस करवट बदलेगा उसके आंकलन में जुड़े हैं। बहुतों ने नये जीवन का आरम्भ विवाह बंधन में बंध कर किया है। जीवन का ये समय सबसे ऊंची उड़ान पे है। एक दूसरे से आशाएं बांध रहे है। एक दूसरे से कुछ प्रतिबद्धता की  उम्मी

अपेक्षा।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 जीवन में हमें बहुत सी अपेक्षाएं होती है। कुछ अपने से कुछ दूसरों से कुछ ईश्वर से । बड़ी लंबी फेरिस्त है इनकी। इसको हम बहुत रूपों में जानते है मसलन आकांक्षा अभिलाषा इच्छा चाह उम्मीद आदि आदि। ये समय की जरूरत भी हो सकती है।ये एक तलब हो सकती है। ये मजबूरी भी हों सकती है। ये सहायता स्वरूप भी हो सकती है। ये स्वार्थ के रूप भी हो सकती है।ये जीवन के हर पहलू में मौजूद है। ये हम कहीं भी किसी से भी रख सकते हैं यहां तक कि हमारे पालतू जानवर भी इससे बचे नहीं है। और अपेक्षा पूरी न होने पर  मन व्याकुल होता है। आप की बुद्धि पे कुछ समय के लिये पर्दा पड़ जाता है । आप भावनाओं के आवेश में बह निकलते हो। थमने पे सही गलत का एहसास हो जाता है। इन सब में मेरा प्रश्न ये है की हम अपेक्षा किस से करें? और क्यों करें?क्योकि सारी सांसारिक व्यवस्था अपेक्षाओं पे ही बनी है। बहुत विचारने के बाद मन जिसे हम दिमाग भी कह सकते है ने उत्तर कुछ ऐसे दिया- इसने मुझसे पूछा एक चीज़ बताओ जिसपे तुम्हारा  पूर्ण अधिकार हो? मैंने बहुत खोज के एक इंसान को ढूंढा। सोचिए कोन? वो में खुद था। दुनिया में मेरी बुद्धि क

कटाक्ष।

🌹🙏🏼*******************✍🏼🌹 कटाक्ष करना एक बुरी आदत है। छींटा कशी उलाहना तंज कसना ये हमेशा द्वेष पूर्ण रहा है। किसी के प्रति बुरे भाव हमेशा इसके कारक। हम बहुत सी बातें अपने मन में पाले रहते है। उनको  बहुत समय तक भीतर ही भीतर जीते है। कटाक्ष करते किन पे हैं देखें तो ज्यादतर अपनो पे ही। जहां और जिन के बीच  हम अपना जीवन सुख के लिये जीते है वहीं हम ये सब कर रहे होते है। ज्यादातर अपने सगों दोस्तों के बीच।रिश्तों में इन सब के लिए बहुत जगह होती है बशर्ते रिश्ते प्रेम पूर्ण हों और नज़रअंदाज़ करने की ढेर सी गुंजाइश हो।द्रोपदी का दुर्योंधन को किया गया कटाक्ष दो परिवारों को बहुत मेंहगा सबित हुआ। परिवार मेंरिश्ते अच्छे न हों तो छोटी सी बात भी चुभ जाती है। कुछ समझदार इसे सामने वाले कि अज्ञानता समझ भूल जाते है औरअपने रिश्तों को सहेज़ के रखते है। भाई भाभियों के रिश्तोंमें बड़ी खटास का कारण ये है। भाईयों भाईयों में आपस मेंबड़पन दिखाने की होड़ और एक अनजान घर पे सत्ता की चाहत दूसरा बड़ा कारण है।कटाक्षों से बेहद करीब दोस्त भी घायल हो जाते है। कटाक्षनकारत्मक रवैया है अपनी बात पहुंचाने का। कई लोग तो आप पे क

जेल।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 जेल शब्द सुनते ही मन में कुछ अजीब सा महसूस होने लगता है। एक अपराध की कल्पना जाग जाती है। सोच के कुछ घबराहट होने लगती है। जेल के नाम से अपराध और अपराधी दोनों ही सामने नज़र आते है। नेताओं के लिए जो गर्व की बात है आम आदमी के लिये पूरा जीवन हो दाव पर है।एक अपराध बोध होता है।क्या इस शब्द को कुछ अपने सुधार के लिये भी इस्तेमाल कर सकते हैं? अगर कानून की नज़र से देखा जाये तो बुरी प्रवृत्ति और अपराध को सलाखों के पीछे आपकी न्याय व्यवस्था के द्वारा पहुंचा दिया गया है।चार दिवारी मैं रह कर एक सुधार प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। सजा की म्याद खत्म होने तक सुधार की गुंजाईश को पूरा किया जाता है। हर इंसान भी ऐसे ही बहुत से अपराध बोध वृतियां कुंठाएं द्वेषों को अपने अंदर जीता है। उनको भी किसी के सुधार माध्यम की आवश्यकता होती है। और एक माध्यम आप स्वयं हो।क्यों न आप किसी के प्रति द्वेष को सदा के लिए जेल की काल कोठरी में डाल दें। क्यों न अपने क्रोध को आप सदा के लिये सलाखों के पीछे भेज दें। क्यों न डर को अंधेरी जेल में डाल दें। क्यों न मजहबी जनून को हमेशा के लिए पिजरे में बंद

हिम्मत।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 हिम्मत एक ऐसा शब्द है जो अगर किसी की भी रगों में है वो शायद सबसे अमीर आदमी है। हिम्मत के बारे में खूबसूरती से लिखा गया है" हिम्मते मर्दा मददे खुदा" । मतलब बड़ा स्पष्ट है जो हिम्मत करता है उसकी मदद ख़ुदा भी करता है। हिम्मत एक ऐसा जस्बा है जो इंसान में कुछ भी कर गुजरने की क्षमता पैदा कर सकता है। राजा भगीरथ माँ गंगा को स्वर्ग से उतार लाये और शिव की जटाओं से होती हुई गंगा पृथ्वी लोक में आई और भगीरथ के पीछे पीछे सागर तक पहुंच गई। तीन पीढ़ियों बाद महाराज सगर के पुत्रों का उद्धार किया। ये महाराज भगीरथ के कठिन तप करने की हिम्मत से ही सम्भव हुआ । ब्रह्मा खुश हुए और उन्हें माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मानो तो गंगा मैया आज तीनो लोको में बहती है इसलिए त्रिपथगा भी कहलाती है। हिम्मत तो महाराज भगीरथ की ही थी। हिम्मत ने ही एवेरेस्ट को पहली बार फतेह करने में शेरपा तेनजिंग और  एडमंड हिलेरी की 29 मई 1953 को मदद की। और दोनों ने मिलकर विश्व की छत पे विजय प्राप्त कर ली। कोलम्बस ने हिम्मत की और 1492 से 1506  में चार अमेरिका की तरफ खोजी यात्राएं कर

धैर्य।

🌹🙏🏾********************✍🏼🌹 हम अपना कितना धैर्य खोते जा रहे हैं आजकल?हमारी सहने और समझने की क्षमता का का कितना ह्रास हो रहा है? जैसे जैसे समाज तरक्की कर रहा है साधन संपन्न हो रहा है हम जीवन के एक अजीब आलास से ग्रस्त हो रहे है। हर चीज़ में जल्दी और आराम की लगी है। हर चीज़ अभी के अभी होनी है। हर बदलाव एक दम अभी चाहिये। उम्मीद ऐसी लगा लेते है के बस जीत आप ही कि लिखी है। हर एक से दी कदम आगे रहना है। जो दूसरे पे है उससे बेहतर मुझपे होना है। एक अजीब सी होड़ ने जन्म ले लिया है। एक सिर्फ पैसे की ताकत ने हमे सब के खिलाफ खड़े होने का बल दे दिया है। खाने पीने की व्यवस्थाएं सुलभ हो गयी है। जनता बेशुमार हुई जाती है। काम सब के पास पूरे वक़्त के लिये मिलता नही है। इंसानो के बड़े हिस्से को खालीपन निकमेपन और बेरोजगारी ने घेरा  है। कुछ ने माली हालत दरुस्त कर ली है कुछ करने में लगे है और बाकी इन द्रुस्तों से कैसे अपना हक लिया जाये इस सोच विचार में अपनी कुंठा को बढ़ाये जाते है। इस बीच एक ही बात का संचार हो रहा है वो है हर चीज़ में उग्रता का अंश। ये धीरे धीरे किसी न किसी रूप में हमारे मन में घर कर रहा है। आज