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Showing posts from December, 2019

निंबूपानी 2020...

🌹🙏🏻❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🏻🌹 एक दारूबाज दोस्त और निंबूपानी दोस्त की हैप्पी न्यू ईयर की महफ़िल सजी थी। दबा के पार्टी चल रही थी।गिलास पे गिलास खाली हो रहे थे।निंबूपानी बहुत परेशान था ये इतनी पी क्यों रहा है? मजा कर रहा है या दुख मना रहा है?  निंबूपानी से रहा न गया और और पूछ ही लिया भाई इतनी क्यों पी रहा है?  दारूबाज:भाई तू जो फ्री की पिला रहा है इसलिए पी रहा हूँ।  निंबूपानी:ओए मैंने कब बोला में पीला रहा हूँ? दारूबाज:तो काहे फालतू सवाल पूछ रहा है।चल।निंबूपानी पी। कीड़ा जब उछल रहा हो तो प्रश्न फिर पूछना बनता ही है। निंबूपानी : भाई कोई दुख है क्या? दारूबाज : हां भाई आज कल देश की अर्थव्यवस्था ठीक नही है बहुत दुखी हूं। निंबूपानी : अबे उससे तुझे क्या? दारूबाज : दुख। निंबूपानी : तो दारू क्यों? दारूबाज: गम गलत कर रहा हूँ।गर्द-ए-ग़म-ए-जाँ उड़ा रहा हूँ। निंबूपानी:  अबे ये क्या?.. दारूबाज : एक और निंबूपानी मंगा। पी भाई पी। निंबूपानी: देख दोस्त जो तू इतनी पी रहा है मेरा दिल जल रहा है। दारूबाज: बेटा तू सुखी है ना घर पे.. निंबूपानी: कहाँ दोस्त तभी तो आज तेरे साथ बैठा हूँ।किच किच से दूर। दारूबाज: बेटा दो ज

बिलासपुर- चलते चलते।

🌹🙏🏻❣❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣❣✍🏻🌹 कल काम के सिलसिले में बिलासपुर हिमाचल प्रदेश जाना हुआ।सुबह का वक़्त मिल जाता है शहर को देखने का।ये मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग पे स्तिथ है।चंडीगढ़ से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर।ये सतलुज नदी के किनारे बसा सुंदर शहर है या यूं कहें गोविंद सागर झील के किनारे बसा सुंदर शहर है।आस पास घूमने को काफी कुछ है।मैं आज आपको बेहद खूबसूरत नजारा लेने का रास्ता बताता हूँ। झील का विस्तार भाखड़ा से बिलासपुर तक 50 किलोमीटर के लगभग है।इस मौसम में पानी अपने उच्चतम स्तर से थोड़ा कम होता है।और पानी नीलवर्ण लिये पहाड़ों से घिरी झील का सुंदर नज़ारा पेश करता है।यहां रुकने के लिये हिमाचल पर्यटन का होटल लेक व्यू है।हाईवे के साथ ही बनाया गया है।1450 रुपए में ऐ सी कमरा ऑफ सीजन में मिल जाएगा।कमरे साफ सुथरे ठीक ठीक है।खाना बेहतर है।दूसरा इसकी लोकेशन शानदार है।झील का पूरा नज़ारा।काम खत्म कर रात में पहुंचे तो चारों और पहाड़ शहर के आस पास के गांव की रोशनी से नहाये थे।झील रात में अपने भीतर तारों की रोशनी से नहा रही थी।बेहद मस्त नज़ारा था।शीत लहर जोरो पे थी मगर मैदानी इलाके के मुकाबले ठंड कम लग रही थी।कुछ देर

रिश्तों की मधुरता।

🙏🏻🌹❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🏻🌹 रिश्तों में मधुरता बहुत जरूरी है।हमारे रिश्ते जीवन के रंगों में से सबसे खूबसूरत रंग है।इससे जीवन के मेले लगते है।हमारा ह्रदय मनोरंजन से पूर्ण रहता है।हम खुश होते है।हंसते है गुनगुनाते है।मगर जहां कड़वाहट है वहां कोप का वास है।दरिद्रता है।वहां खिंचाव है।वहां द्वेष है।वहाँ कटुता है।तो मधुर तो सदैव मधुर ही रहता है।हर शख्स को अच्छा लगता है। मधुरता बहुत ही खिंचाव लिये जीवन का बेहतरीन स्वाद है।इंसानी जीवन मे माँ के रिश्ते के बाद सबसे करीबी रिश्ता अर्धनगिनी का होता है। जो हर वक़्त आपके सबसे करीब होती है।जब ये रिश्ता जुड़ता है तो इसमें सभी खट्टे मीठे तीखे स्वाद होते है।शुरू शुरू में इन स्वादों का भाव दिखने लगता है और आप को परोस दिये जाते है।क्षमता अब सामने वाले कि है कि अपने भीतर उपजी जन्मी मधुरता को इसमे कैसे धीरे धीरे मिलाना शुरू करे। रिश्तों में गर्माहट पैदा करे।रिश्तों की गर्माहट में संवाद सबसे जरूरी है।और नए रिश्तों में जितने सही तरीके से शुरू में संवाद गांठा जायेगे उसमे मधुरता का अंश धीरे धीरे बढ़ने लगेगा।खटास कम होने लगेगी। कड़वापन निकल भागेगा।मधुरता बढ़ती जायेगी।द

सरल।

🌹🙏🏻❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🏻🌹 कभी कभी बस यूं ही कुछ शब्द कौंध जाते है।ऐसे ही आज कौंधा ।शब्द था "सरल"। तीन अक्षरों का शब्द पूरा जीवन बदलने की संभावना रखता है।सरल से सरलता सुगमता आसानी निष्कपटता सीधापन जुड़ा हुआ है।जो सरल है वो ही सुगम है।इंसान का जीवन रोजमर्रा की लड़ाई से झूंझता आगे बढ़ता है।शांत वही रह पाता है जो सरल हो।बाकी सब बोझ ढोने लग जाते है।दिमाग को बेवजह भार दे देते है।अपने आस पास जो घटित हो रहा है वो कुछ ही आप के हाथ मे है सब कुछ नही।सो बोझ क्यूं डालना? कल कुछ ऐसे ही कुछ फालतू बातों से सामना हुआ। पहले पहल कुछ बोझ बड़ा फिर उतार फेंका अपने काम पे लग गये।रात बहुत बेहतर नींद आयी।जम के आयी।सोचा आप से सरलता का कुछ हिस्सा सांझा करूँ। हमे जीवन को खुशगवार बनाने के लिये अपने जीवन मे सरलता का भाव पैदा करना होता है।आप जितने आसान होंगे आप के आस पास के आड़े तिरछे बुद्धि वाले आप से पार पाने में उतनी ही सहजता रखेंगे।उन्हें खाली दिमाग शैतान नही बनाना पड़ेगा आप के लिये।एक आप सीधे है अगर सरल है।दूसरा सीधी बात करते है।जो भीतर है काफी हद तक बाहर है।आप से संवाद साधना आसान है।आप सकरात्मक सरलता के

कुछ अनचाहा और कुछ हम।

🌹🙏🏻❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🏻🌹 बहुत बार जीवन मे अनचाहे मोड़ और परिस्थितियों से हमे गुजरना पड़ता है।हम अपने आराम की दुनिया के आदी होते है और थोड़ा सा बेआराम बर्दश्त के बाहर समझ लेते है।ये हमारे भीतर एक तो कमजोरी का प्रदर्शन बनता है दूसरा हम परिस्थितियों से भागते है।इस दौरान हमारे भीतर क्रोध जन्म लेता है।जो हमे जाने अनजाने अपने कब्जे में ले हमारे आस पास के माहौल को प्रतिकूल परिस्थितियों में बदल देता है।हम अनजाने में ही अपनेे द्वारा उतपन्न प्रस्थिति से अनजान हो इसे दुश्मन समझ उससे उलझने लगते हूं।ये हर इंसान के साथ रोज हर समय घटित होता रहता है। हर चीज़ तो खुदा मन माफिक देता नही है।और इसकी समझ हमे बहुत कच्ची उम्र में आ जाती है।बचपन मे ही।शुरुआत माता पिता से भी हो जाती है फिर अपने और पनपते रिश्तों से और कभी कभी गुरबत से।गुरबत भी कई तरह से जीवन मे आ धमकती है चाहे अनचाहे।फिर हम बड़े होने लगते है और दुनिया की समझ पैदा होने का समय आ जाता है।बस यहीं कुछ दुनियादारी सही समझ लेते है और कुछ के लिये जीवन बचपन से जवानी के सफर तक बदलता ही नही है और समझ पैदा नही होती। एक बेहद खराब स्तिथि है ये।फिर नये रिश्ते बनन

साहेब की व्यंगशाला ..निर्मला ने.......डाला!

🌹🙏🏻❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🏻🌹 निर्मला : ये पत्रकार क्या समझते हैं अपने आप को हूँ! साहेब : क्या हुआ निर्मले? निर्मला: इनकी तो मैं ............दूंगी ! साहेब: क्या बोल रही हो समझ मे नही आ रहा निर्मले? निर्मला: अभी इनको पता नही है ...........कोन हूँ! साहेब : निर्मले बेबी शांत हो जाओ खुल के बोलो क्या हुआ? निर्मला: बहुत प्रश्न आ रहे है........तुमको।देख लूंगी.......को! साहेब : हुआ क्या निर्मले? निर्मला: ये मीडिया की .........बजा दूंगी! साहेब: शांत निर्मले शांत मुझे बोलो क्या हुआ? क्यों उखड़ी हो? किसने छेड़ा तुम्हे? निर्मला: .....समझते है मुझे कुछ.... नही! साहेब : ये बुड बुड जय कर रही हो? शब्द बीच मे हो खा रही हो। शांत निर्मले शांत। निर्मला : चुप्प बे .......मंद! साहेब : कुछ बोला निर्मले? निर्मला : नही साहेब ( होश में बापिस आते हुए) साहेब : धीरज धरो। हुआ क्या शांति से बताओ? निर्मला : कुछ नही साहेब बस कुछ पत्रकार आज कल कुछ भो पूछ लेते है? साहेब: ओह संबित की लंबित बीमारी। कुछ नही निर्मले शांत हो जाओ मुझ पे छोड़ दो। निर्मले : कैसे छोड़ दूं। मैं जो कर रही हूँ वो नज़र नही आता? जो कर चुकी हूँ उसपे विना तथ्