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Showing posts from January, 2018

चन्द्रग्रहण।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 आज चंद्रग्रहण का दिन था।सुबह 9 बजे के आस पास सूतक के कारण मंदिरों के कपाड बन्द कर दिए गए थे।जो व्यक़्क्तित्व धार्मिक प्रवृत्ति पनपी भक्ति से ओतप्रोत थे उनका आज सुबह से ही उपवास शुरू हो गया। ग्रहण का वक़्त शाम का था। सो इस स्तिथि का पूरा आनंद और फल प्राप्त करने के लिए कुछ भक्ति में लीन हो गए कुछ कीर्तन के आनंद में समा के आनंद की प्राप्ति कर लिए। ये बेला भी अत्यंत शुभ है। माघ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा और ये संयोग 176 साल बाद हो रहा है। घटनाये रोचक होती है।और ऐसी जो आप के जीवनकाल में केवल एक बार होनी हो तो देखनी बनती है। आज उसके लिए मन बना ही लिया था। वैज्ञानिक स्तिथि कैसे बनती है देखिये।चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते हैं    जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में अवस्थित हों। इस ज्यामितीय प्रतिबंध के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को घटित हो सकता है। चंद्रग्रहण का प्रकार एवं अवधि चंद्र आसंधियों के सापेक्ष चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करते हैं। ये पूर्ण

डर और प्रेम।

🌹🙏🏼*******************✍🏼🌹 आज एक विषय पे सोच रहा था कि क्या हम किसी को जोर जबरदस्ती डर से अपने साथ ला सकते है? अगर ले आये तो क्या गारंटी है कि वो हमेशा के लिए हमारे साथ हो लेगा? और अगर ऐसा ही तो रास्ता क्या है? बड़ी विडंबना की स्तिथि उतपन्न हो गयी थी। दिमाग को एकाग्र कर इसका रास्ता ढूंढने लगा।एक बात तो समझ आयी इतिहास को जरा सा झांक के देखा की वक़्ती तौर पर डर की सत्ता के माध्यम से कुछ समय के लिए जन या जन समूह को साथ लाया जा सकता है।ये संभव है।हमारे यहां अंतिम राज्य अंग्रेज़ो का था वे भी इस प्रयोग में  असफल रहे।उससे पहले मुग़ल काल था वे भी इसमें असफल रहे।दोनों साम्राज्यों का पत्तन हुआ। अशोक अंत में कलिंग की बभीषिक देख के अन्तर्मन से असफल रहा और बोध भिक्षुक हो राज्य करने लगा ।बहुत से आक्रांताओं ने डर का इस्तेमाल किया।और कुछ समय के लिए राज्य जमा पाये। और मौका मिलते ही आवाज़ें बुलुन्द हुईं और इनका पत्तन होता गया।इराक हाल ही में तबाह हुआ है।इजराइल फिलिस्तीन को दबा नही पा रहा।लीबिया में गदाफी का अंत बुरा हुआ।बहुत से इस विषय पे उधाहरण है।डर से कुछ वक्त ही साथ लिया जा सकता है।और जब जनता क्रांत

गांधी।

🌹🙏🏼********************🌹✍🏼 बड़ी पुरानी याद आ गई।स्कूल की।हम ने जब उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रवेश लिया तो हम कक्षा 6 में आये।बड़ा सुंदर सरकारी स्कूल था हमारा।जब पहले दिन प्रवेश किया आज भी दिन याद आ जाता है।बात मगर कुछ और करनी थी जिसकी शुरुआत इसी स्कूल से हुई थी ।आज गांधी जी की बहुत याद आ रहीं है।एक गाना भी "साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल , देदी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल"। पूरी दुनिया में क्रांति का नया इतिहास रच दिया बापू ने। एक संदेश पूरी दुनिया को दे गए धैर्य के साथ बिना लड़े विरोध से हक़ की लड़ाई में जो जीत दिला सके। मन मजबूत तन सहनशील और सोच परिपक्कव आप के विरोध को नई दिशा दे सकता है। तलवारें झुका सकता है।उपवास आप के आक्रांताओं के होश उड़ा सकता है।सादगी आप को परिधानों में श्रेष्ठ कर सकती है।आप एक प्रेम का संदेश एक मजबूत बुद्धि तन और मन की सादगी से दे सकते हो। बैरी के मन में भी प्रेम की लो जला सकते हो। सामने वाले का गुस्सा हमेशा नही रह सकता ये गांधी जी बखूबी जानते थे और एक सीमा के पार जा के उसे अपनी पूर्वत स्तिथि में लौटना ही होता था। इंसान की नज़र में इंसानियत कोई म

नारी सशक्तिता।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 नारी सशक्तता काफी वर्षों से हमारे समाज में गम्भीर मुद्दा रहा है।एक वक़्त कहावत थी"ढोर ग्वार शुद्र और नारी ये सब ताड़न के अधिकारी"। जब कही गयी ज्यादतर समाज का बड़ा हिस्सा अनपढ़ था।उस समय के समाज के जो प्रतिष्ठित धंभी लोग बोल देते थे लोग उसे जीवन में उतार लेते थे। अनपढ़ और बेरोजगार एक ही कड़ी में है।दोनों लाचार और भीतर से क्रोधित।एक तरफ देवी को पूजते है और माँ भगवती के लोक को  सबसे ऊपर मानते हैं और दूसरी तरफ घर की स्त्री का अपमान।संविधान की भूमिका लिखते वक्त भी भगवान और देवी को लेकर संविधान सभा में विवाद हो गया था। बंगाली भाई देवी के वर्णन से संविधान की शुरुआत चाहते थे ।बड़ी विडंबना हो गयी थी।तो निर्माताओं ने आम आदमी की आवाज़ ही शामिल कर दी। भगवान और देवी अपने ही भक्तों के भक्ति विवाद  संविधान की भूमिका  कल्पना से बाहर हो गए। हम लक्ष्मी जी सरस्वती जी दुर्गा माँ अनेकों अनेकों रूप में भजते है।ज्ञान की शुरुआत बच्चे में माँ सरस्वती के ध्यान से की जाती है।फिर खूब धन के लिए लक्ष्मी माता का पूजा अर्चन भी करते पाये जाते है। ध्यान से देखें तो पुरुष समाज ज्यादा द

भव्य।

🌹🙏🏼******************✍🏼🌹 आज ऐसे ही एक शब्द मन में बार बार आ रहा है।"भव्य"। इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए मैंने इसके समानार्थी शब्दों को पढ़ा। ये सकारत्मक और नकारत्मक पहलू लिए हमेशा रहती है इसकी समझ पैदा हुई। जब इसे पढ़ा तो कितने समानार्थी शब्द निकले पढ़िये आप भी ।अतिरंजित, अनर्गल, विपुल, अत्यंत, असंयत, आडंबरपूर्ण, अपार, अति, व्यापक।.अभिमानी, कपटी दिखावटी, गर्वित दिखावटी।.अमीर, संपन्न अच्छी तरह से, धनी जीवनस्तर, समृद्ध, सजीले।औपचारिक, ऊंचा, सुवक्ता, उदात्त, ।तेजतर्रार, देदीप्यमान ,प्रधान, मुख्य, प्रमुख, अग्रणी, उच्चतम, प्रभावशाली, राजसी, शानदार, यादगार, विशाल, महत्वाकांक्षी। महान, पराक्रमी, ।प्रचुर, भरपूर, उदार, विलासी, खर्चीला, असंख्य, असाधारण।शानदार मनोरंजक, सराहनीय ।सुंदर, रमणीय, मनोरंजक गज़ब। अब मैं इसके सकारत्मक पहलू या विषय भी ही बात करूंगा ये सब भव्यता लिए है।कुछ विषय विशेष है कुछ संज्ञात्मक विशेष है। भव्यता  एक तो विशालता को प्रतिबिंबित करती है दूसरा ये विस्तार बताती है।इमारतें भव्य रूप लिए होती है ।ईश्वर इष्ट पूजनीय की मूर्तियाँ भव्य रूप दर्शाती है।बहुत से आयोजन भव

गणतंत्र।

सर्वप्रथम आज के शुभ दिन पे सब मित्रों को बहुत बहुत बधाई।गणतन्त्र दिवस हमारा  राष्ट्रीय पर्व है जो हम 26 जनवरी को मनाते है। इसी दिन सन्  1950  को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर  भारत का संविधान लागू किया गया था। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 जनवरी को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई० एन० सी०) ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। यह भारत  के तीन  राष्ट्रीय अवकाशों में से एक है, अन्य दो स्‍वतंत्रता दिवस  और  गांधी जयंती हैं।गणराज्य एक ऐसा देश होता है जहां के शासनतन्त्र में सैद्धान्तिक रूप से देश का सर्वोच्च पद पर आम जनता में से कोई भी व्यक्ति पदासीन हो सकता है। इस तरह के शासनतन्त्र को गणतन्त्र कहा जाता है। "लोकतंत्र" या "प्रजातंत्र" इससेअलग होता है। लोकतन्त्र वो शासनतन्त्र होता है जहाँ वास्तव में सामान्य जनता या उसके बहुमत की इच्छा से

अमीरी।

🌹🙏🏼********************✍🏼🌹 कभी कभी बातें करते करते मुँह से निकल जाता है बड़ा 'अमीर' है भाई। ज्यादातर इसका इस्तेमाल पैसे की  तुलनात्मक सोच के जरिये किया जाता है।जो सामाजिक लिहाज से मान्य भी है।में ये भी मानता हूँ इसके कमाने के लिए जायज़ रास्तों से सबको प्रयत्न शील भी होना चाहिये।मेहनत हमेशा काम करती हैं भाग्य भी अगर साथ हो तो तोहफा समझिये।फिर भी अगर पैसा रूपी दौलत कुछ कम हो तो शोक कभी न करें।दौलतें और बहुत सी है और अमीर और बहुत से।ज्यादा समझ न आये तो लावारिस पिक्चर का गाना जरूर सुने "काहे पैसे पे इतना गरूर करे है...पैसे से तुम क्या क्या यहां खरीदोगे"। शायर तो शायर है और हर वक़्त के जीवन के दर्शनशास्त्र के गवाह है।तो मालको अमीरी और भी बहुत सी है।बहुत रिश्ते बटोरने में ही अमीर हो जाते है।बहुत से परिवार से समृद्ध हो जाते है।बहुत से निर्मल बुद्धि से अमीर पाये जाते है।बहुत से भावनाओं के अमीर बन जाते है।बहुत से शब्दों को बोलने के और बहुत से शब्दों को लिखने के अमीर बन जाते है।कोई अपने स्वस्थ शरीर हां जी स्वस्थ शरीर से भी अमीर हो जाता है।कोई सेवा से निस्वार्थ सेवा से भी अमी