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Showing posts from November, 2017

आज अब बस अभी।

💐🙏🏾********************✍🏼💐 जीवन की सड़कें बड़ी टेडी मेडी है। राहें भी उबड़ खाबड़ है। जन्म से इन राहों पे चलने की  सलाह शिक्षा मिलने लगती है। बच्चा बड़ा होने लगता है उससे बड़े होने की उम्मीद उसकी उम्र से पहले ही लगा ली जाती है। हम सब अपने से आगे  के जीवन को जीने की तरफ धिकल जाते है। आज की परवाह और खुशियां कही छोड़ आते है। बीते के बारे में सोचने का यत्न करने लगते है। अच्छा हुआ कम याद आता है। बुरा हमेशा मन दिमाग पे छाया रहता है। उससे आज को उलझा ले रख लेते है।आज उलझ जाता है।फिर कहीं दूर से आहट होती है । आहट ही सुनती है नज़र कुछ नही आता। मन अधीर होने लगता है उस आहट को सुनने के लिए। आहट की दिशा समझने लगते है। अंदाज़ा करने की कोशिश करते है। अंदाज़ा फिर दिमाग को फालतू के काम में उलझा लेता है। एक तो भूतकाल ने वैसे ही उलझा रखा है दूसरा इस अनजानी आहट ने जिसका शायद आप से कुछ लेना देना नही। फिर कोई कुछ कल आने वाले कल की कह जाता है। कोई अनसुलझी पहेली आप के पास छोड़ जाता है।कुछ प्रश्न बना जाता है। कुछ अपने प्रस्थिति के अंदाज़े दे जाता है।कुछ सुनी सुनाई बाते बता जाता  है। आप को और उलझा जाता है। पहले भूतकाल

पुष्प।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 आज मन फूलों पे आया है। आज कल मौसम बदल रहा है। हवा शीतलता ले रही है। धरा ऊष्मा को संजोय है। एक बेहद खूबसूरत समा बंधने को है। फूलों के लिये उत्तम समय बन रहा है। ज्यादतर बेहतरीन पुष्प इसी वक्त आने शुरू होते है। मेरा प्रिया पुष्प गुलाब है। देसी गुलाब। इसकी महक इसकी खूबसूरती मुझे आकर्षित करती है। इसकी महक सांसों से जहन में उतर आती है। मुग्ध कर देती है। में थोड़ा सा आस्तिक भी हूँ। एक शक्ति में विश्वास भी शायद करता हूँ। और जो मेरा प्रिय है उसे में पुष्प भी अर्पण करने की अभिलाषा रखता हूँ। या यूं कहें देने की कोशिश करता हूँ। गुलाब मेरी सबसे प्रिय भेंट है हृदय से जिससे में आसक्ति प्रेम श्रद्धा रखता हूँ। गुलाब की महक उसके तोड़ने से सूखने तक कई दिनों बराबर बनी रहती है। इसका इत्र आप को महका सकता है। इसका जल गुलाब जल आप की मिठाई  लस्सी मैंगो शेक का आकर्षण बड़ा सकता है।इसका गुण आप की आंखों की गंदगी धो सकता है और आंखें भी महकने चमकने लगेंगी। इसका जल त्वचा के लिये भी उत्तम है। इसकी मौजूदगी चेहरे पे आभा तो प्रदान करती ही है एक ताजा पन भी ले आती है। पत्तीयाँ इत्र जल और महक से

आभास।

💐🙏🏾********************✍🏼💐 यूं ही कुछ आभास हुआ अपने होने का। अपनो के होने का। अपनो से होने का।हम जीवन के एक मोड़ पे आकर एक दौड़ में शामिल हो जाते है। दिमाग हमारी रफ्तार से भी तेज दौड़ने लगता है। समय से भी दौड़ लगाने लगता है। हम बहुत भौतिकवाद से ग्रस्त हो जाते है। हमारे चारों तरफ वक़्त के साथ अपनो का एक घेरा हो जाता है। ये सब उनका होता है या तो जो हमसे प्रेम करते हैं या फिर हमें किसी मकसद से चाहते हैं। और समय के साथ वो आपको प्रेम मोह या लोभ वश अपना एक हिस्सा आप को समर्पित करते चलते है। प्रेम मोह वाले अभिलाषा की जगह सिर्फ आप के चेहरे पे खुशी छाई रहे इसलिए आप के साथ बने रहने की जुगत में रहते है। और मतलब साधने वाले सही वक़्त के इंतज़ार में। आप अपनी धुन में इसे रिश्तों के बंधन की देंन समझ अपनी दौड़ में व्यस्त हो जाते हो। समय भी दौड़ रहा है आप भो दौड़ रहे है। दौड़ कोन जीतने वाला है किसी को पता नही। हैं एक बात जरूर है जो सबके मन को पता है अंत में समय ही जीतने वाला है हर तरह से। समय से समय की दौड़ में बहुत साथी आपके मददगार बनते है। हम उनकी मदद अधिकार स्वरूप ग्रहण करते है। अपनी इच्छाओं के इर्द  गिर्द

भला मानस कोन।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 बड़ी बार सुनते है जी बड़ा भला मानस है! भला इंसान है! बड़ा अच्छा लगता हैं संबोधन करते हुए सुनते हुए। शाबास सी महसूस होती है। मन को अच्छा लगता है। एक आत्मीयता का एहसास होता है। भला मनुष्य आखिर है कोन? भला जो हमारी सहायता बिना जाने बिना लालच करे। भला वो जो मानवता को समझता हो। भला वो जिसे भलाई तो करनी है पर श्रेय की जरूरत नही। भला वो जो स्तिथि भांप के स्वयं से सहायता के लिए आगे आये। भला वो जो सही को जान कर सही के साथ रहे। भला वो जिसमे कपट न हो। भला वो जो न्याय समझता हो।भला वो जो बैर को प्रेम से निभाना जनता हो। भला वो जो अत्यधिक सहनशील हो।भला वो जो क्रोध को काबू करने की क्षमता रखता हो। भला वो सकरात्मक सोच रखता हो। भला वो जो सदा परोपकार के लिये तैयार रहता हो। भला वो जो परिवार के मायने समझता हो। भला वो जो बच्चों में बच्चों सा दिल लिए हो। भला वो इंसान में ही ईश्वर के दर्शन ढूंढता हो। भला वो जो सद्कर्म में विश्वास रखता हो सद्कर्म ही करता हो। भला वो प्रकृति के सब रूपों को समान रूप से प्यार करता हो। भला वो मन की समझता हो मन से करता हो।भला वो जो घोर आपदा में भी निभाना

आज़दी।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 आज़ादी बड़ा मुन्नकिन है रोज हम किसी न किसी रूप में सोचते हों। बड़ा व्यापक शब्द है। आजादी के मायने उसके साथ जुड़ी जरूरतों के मुताबिक हम बदल डालते है। आजादी एक जिंदादिल उड़ान से जुड़ी है। जहां कोई हर बंधनो से मुक्त हो अपना जीवन अपने अनुसार अपनी इच्छाओं से जीना चाहता है। ये कोई व्यक्ति विशेष भी हो सकता है । कोई समुदाय विशेष भी। विचारों की आजादी कोई आप की छीन नही सकता। वो आप के जहन में दिलो दिमाग में होते है।लेकिन विचारों के किर्यान्वयन  की आजादी शायद हमेशा सम्भव नही। आजादी बंधन नही मानती। आजादी कानून नहीं मानती। आजादी रिश्तों की डोर हमेशा तोड़ के निकल जाना चाहती है। आजादी कोई दीवार नही देखती। आजादी की कोई भागोलिक सीमा तह नही। आजादी कोई भाषा जात पात धर्म संस्कार नहीं मानती। आजादी कोई देश नहीं मानती। आजादी कोई बेड़ी नही देखती। आज़ादी संसार के हर बंधन से मुक्त है। सो ही पूर्ण है। पर ये कल्पना भी है।ये बहुत मतलबी भी है। हर एक इस आज़दी को अपने हिसाब से देख रहा है। किसी को पढ़ने से आज़ादी चाहिये। किसी को खेलने की आजादी चाहिए। किसी को काम पे काम करने की आजादी चाहिए। किसी को घ

चलो आज कुछ अंजान हुआ जाये।

💐🙏🏾********************✍🏼💐 चलो आज हम कुछ अपने से अंजान हो जायें ।ऐसे ही मन में ख्याल आया कि क्यों न कभी कभी अपने से अंजान हुआ जाए। क्यों न अपने सफ़े को फिर से लिखा जाए?क्यों न कुछ भुला दिया जाए? क्यों न हम अपनी सोच से कुछ बाहर आयें? अंजान होना आपका भला बुरा दोनों कर सकता है। दुनिया की रीत से अनजान होंगे तो बहुत कशमकश भरा विडंबनाओं भरा रुकावटों भरा जीवन होगा। तो हर जगह अंजान भी नही हुआ जा सकता।घर परिवार में अंजान बने तो फजीहत निश्चित है। दोस्त रिश्तेदार नातेदारों से अंजान बनो कुछ समय आराम से निकल सकता है।अपने जीवन उपार्जन हेतु कार्यों से अंजान बने तो घोर अनिष्ट तेह है।फिर अंजान क्यों बना जाये? शायद अपने भले के लिए कुछ बातों में अंजान बनना पड़ता है।अपने में सुधार कब मुन्नकिन है? सुधार के लिए सबसे पहले अपने जीवन से मिले व्यवहारिक ज्ञान कुछ समय अलग रखा जाए। हम गलत है ये हमे समाज समझा ही देता है। तो हमारा व्यवहारिक ज्ञान कुछ खोट लिए होगा ही न। तो सबसे पहले अपने से ही अंजान बना जाए। जो आप आज है उसे कुछ देर भूला जाए। अपनी तख्ती पे लिखी लिखाई मिटा दी जाए। तख्ती पे जीवन मिट्टी  से पुताई की

वज्र।

💐🙏🏾********************✍🏼💐 एक तगड़ा शब्द 'वज्र'। एक वजनी गोल मजबूत हथियार। एक आघात और तगड़ा घात। कुछ ऐसा ही महसूस होता है सुन के। वीर हनुमान विष्णु भगवान सब के पास ये शक्ति है। इंसान को भी इससे सीख लेनी ही चाहिये। सबसे पहले वज्र से मजबूत बनो। भावनाओं के आवेश को वज्र सी अक्ल की ताकत से तोड़ दो। ह्रदय को वज्र से मजबूत बनाओ।इंसान का शरीर सारी आपदाएँ झेलता है इस प्रकृति में। इससे झूझने के लिए इसे वज्र सा मजबूत बनाओ। समाज के बेहिसाब नाटकों को झेलने के लिये इसे बेहद मजबूत बनाओ। वज्र का ऊपरी भाग गोल होता है। हर तरफ से असर बराबर होता है। इंसान के पास भी शब्दों की ताकत है।उन्हें इस तरह से गड़ो की सब पे असर बराबर हो।  नीचे का हिस्सा गोल लम्बा दंड से होता है। पकड़ बराबर मजबूत रहती है। अपनी आदतों को भी ऐसा रूप आकार दिजीये आप की पकड़ तेह उम्र मजबूत रहे। वज्र पे आते सब हथियार उसकी गोल आकृति से टकराकर अपना निशाना और पथ भटक जाते है। फिसल जाते है।अपने विचारों को ऐसी ही वज्र सा मजबूत रूप दिजीये जो आप पे लगते हर निशाने को आप दिशा हीनः कर दे। आप के सद उत्तम विचार एक बेहतरीन आकार लिए बेहद मजबूत रहे

दोस्त ।कुछ यादें।

💐🙏🏾*******************✍🏼💐 बहुत लोग जीवन में आते जाते रहते है। बहुतों के साथ हम चलने लगते है। कुछ उम्र भर साथ रहते है। कुछ दो कदम ही बस चलते है। बड़ी बिडम्बना है कभी जिनका साथ चाहते हैं वो छूट जाते है कभी जिनसे दूर भागते है वो सबसे लंबा साथ देते है। जीवन बहुत संभावनाओं से भरा पड़ा है। हमे इनका कभी ज्ञात नही होता। हम चलते चले जाते है और लोग जुड़ते। कोन कब कहाँ किस वक़्त मिलेगा ये किसी को पता नही। कोन क्यों कैसे किसलिये मिलेगा इसका कोई अंदाज़ा नही। बस एक बात पक्की है जो आप के संग चलेगा उसमे आप से मिलता जुलता कुछ तो होगा। जो आप को जोड़ के रखेगा। बचपन से बड़े हुए ।जब हम आंगन बाड़ी में पड़ते थे या यूं कहें आज के बच्चों की नर्सरी केजी क्लास हमारी पसंद न पसंद रिश्तों की वहां से ही शुरू हो गयी थी। में आंगनबाड़ी जाया करता था। मेरे बैठने की विशेष जगह तह थी। अपनी बोरी वही बिछाता था। एक दोस्त था।मिले उससे बरसों हुऐ यू कहें कोई तीस बरस। तीस बरस पहले भी केवल कुछ वक्त के लिए मिला था । उसके बीच भी शायद 9 साल का फासला था। उसके शहर या यूं कहें मेरे पुराने शहर एक शादी में जाना हुआ। तो सोचिये ख्याल किसका आया।