Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2020

गुरु।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 आज मन मे रह रह कर मेरे जीवन मे विशेष स्थान रखने वाले गुरुओं की स्मृति आ रही है। मैं आज उन सब का मन से शुक्रगुजार हूं जिन्होंनो मुझे किसी भी रूप में कुछ भी ज्ञान दिया है।वे सब मेरे मन के भीतर श्रद्धा की गहराईयों से सम्माननीय है। बचपन से आज तक समय समय पर ईश्वर की कृपया से मेरे जीवन मे कुछ खास लोगो का बहुत योगदान रहा है।उन्ही के सत्कार में आज लिखने का मन हो रहा है।गुरु शब्द ही सारा सार है मेरी बात का। गुरु' शब्द में 'गु' का अर्थ है 'अंधकार' और 'रु' का अर्थ है 'प्रकाश' अर्थात गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ 'अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक'। सही अर्थों में गुरु वही है जो अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करे और जो उचित हो उस ओर शिष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे।  मेरी प्रथम वंदना है गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः॥ अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवानशंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता

खसखस।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 खसखस बहुत प्राचीन समय से भारतीय व्यंजनों का हिस्सा रहा है। गर्मियों में शीतल पेय में बहुत लंबे समय से उपयोग में है। इसका शर्बत आपको सब जगह मिल जाएगा।ये चमत्कारिक रूप से बादाम अखरोठ नारियल गरी के साथ पीस कर दूध के साथ सेवन करने से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। मैं भी बाजार से सामान ले आया। सोचा आज इसी पे लिखे शोधों को पढ़ा और पढ़ाया जाये। खसखस का वानस्पतिक नाम वेटिवेरिया जिजनियोइडिस है, और यह पोएसी (Poaceae) कुल से है। इसके अन्य नाम ये हैंः- हिंदी में– खस, गनरार, खस-खस, वीरन मूल, बेना अंग्रेज़ी में–  खस-खस ग्रास  संस्कृत में– वीरण, वीर, बहुमूलक, उशीर, नलद, सेव्य, अमृणाल, समगन्धक, जलवास उर्दू में– खस  कन्नड़ में– मुडिवाल , वेट्टीवेरू  गुजराती में– सुगन्धिवालो  तेलगु में – कुरूवेरू , तमिल में -उशीरम, वेट्टिवेर  बंगाली में– वेणर मूल , खसखस  नेपाली में – खस  पंजाबी में – पनी  मराठी में – वाला  मलयालम में – रमाच्हम  पर्शियन – खसदाना रेशा , बीखीवाला , खस  अरेबिक में– इजेखिर  पॉपी सीड यानी खसखस मूल रूप से एक तिलहन है जो खसखस के पौधे (पैपर सोम्नीफेर

साहेब की व्यंगशाला:मन से"झूठ सी बात"।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 साहेब: मेरा दिल रो रहा है।मुझे भीतर से परेशान कर रहा है। मैं आहत हूँ। मैं व्यथित हूँ। मुझे भी दर्द होता है।मेरे पांव में भी आपके छालों का दर्द होता है। आपकी भूख मुझे मारती है... मैं बहुत आहत हूँ... निर्मला : क्या हुआ साहेब?क्या हुआ साहेब? मैं घबरा रही हूँ। सब ठीक है न साहेब। साहेब: सत्यानाश निर्मले सारा सत्यनाश कर दिया। निर्मला: क्या कर दिया साहेब? साहेब: कुछ और देर बाद नही आ सकती थी। निर्मला:माफी मिले तो पूछूं? साहेब:बोलोगी। निर्मला:गुस्सा क्यों हो साहेब। साहेब:तुम्हे दिखता नही है क्या? निर्मला:नही साहेब। साहेब:क्या बोली ? निर्मला: कुछ नही साहेब।पूछा बस क्या हो गया साहेब।? साहेब:मैं मन की "झूठ सी बात "की तैयारी कर रहा था। निर्मला: ओह माफ़ कर दो साहेब अपने को लपेटना नही आता न सो फेंकने का पता नही चला। साहेब:क्या बुड़ बूड़ा रही हो? सुनाई नही दिया। निर्मला: कुछ नही साहेब आप बहुत अच्छे नेता बनाम अभिनेता है। साहेब:सच्ची निर्मला :मुची साहेब:थैंक यू निर्मला: वेलकम साहेब। साहेब:याद आया वो 20 लाख का क्या  हुआ? गोली बंटी? निर्मला: साहेब सब टी वी व

आत्मसम्मान।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 आत्मसम्मान बहुत बहुमूल्य चीज़ है।इसे सदा बरकरार रखना चाहिए। येही अपना जीवन आधार है। ये आप के भीतर की मजबूती है।जो आप को सदा हर परिस्तिथि में मजबूत रखता है। आत्मसम्मान आप के भीतर संचारित सकरात्मक ऊर्जा का प्रभाव है। जो किसी भी कीमत पे आपको बाहरी दबाबों के आगे झुकने नही देता। नकात्मकता को हावी होने नही देता। समझौतों में उलझती जिंदगी को बाहर निकाल ले जाता है। उन्मुक्तता का एहसास कराता है। हर व्यक्ति के भीतर आत्मसम्मान का अंश होता है। कुछ इसे परस्थितियों के हवाले कर डालते है और खो देते है।महाभारत में इसका उलेख कुछ इस तरह से है। तूर्णं सम्भावयात्मानम्। शीघ्र अपने आप को सम्मान का भागी बनाओ। नात्मावमन्तव्य: पूर्वाभिरसमृद्धिभि:। कभी निर्धन थे, इस कारण अपने आप को तुच्छ न समझें। न ह्यात्मपरिभूतस्य भूतिर्भवति शोभना। जो स्वयं अपना ही अनादर करता है उसे समुचित वैभव प्राप्त नहीं होता। कुरु सत्त्वं च मानं च विद्धि पौरुषमात्मन:।  आत्मसम्मान और बल को प्रकट कर, अपने पौरुष (वीरता) को पहचान उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।  अपने आप अपना उद्धार करें, अवसाद में

आनंद बाजार।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 दुनिया आनंद का बाजार है। हर तरफ खुशी की दुकानें सजी है। कोई इनसे महक लेता है और कोई मुँह फेर के निकल लेता है। आनंद ढूंढने की जरूरत नही हर और फैला पड़ा है।बुरा न मानो दोस्तों कभी कभी बहकी बहकी बाते भी करनी चाहिए।दोस्तों को भी लगना चाहिए भाई बिन पिये ही टल्ली हुआ पड़ा है।मगर दिल से कहूं ये जीवन का सबसे हसीन सच्चा जीवन दर्शन है।आनंद लूटने वाला इसे हर कहीं ढूंढ लेता है। सोचते रहने वाला किसी नुकड़ पे खड़ा हो बस तमाशा देखता रहता है। दूसरे के आनंद पे दुखी हो अपना ही सोक मनाता रहता है। बड़ी अजीब बात है ना हर और आनंद का बाजार लगा पड़ा है फिर भी खुशी कम और गम ज्यादा भरा पड़ा है। हर और द्वेष जलन क्रोध पीड़ा धम्भ मुफ्त में बंट रहा है। रोज सुबह होती है मगर रातभर दिमाग मे पकी सुबह होते ही धधकती जलती धू धू ही लेती है।दिन के अठारह घण्टे पहले पकते घर से आफिस आफिस से घर और फिर घर घर ।फिर खूब सिकते मलाल भर लेते । आनंद बाजार तो आँख खुलने से ही लग जाता है। मगर खरीदार कोई कोई निकलता है। बाकी सब कंफ्यूजियाये आते है आनंद की पूछताछ जरूर करते है और निकल जाते है। मन में हमेशा उलझ

पति है हम।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 सुबह उठते ही पति ने प्रेम भरी आवाज़ लगाई। पति : भाग्यवान सुनती हो..  चाय पत्नी : उठ गये ? पति : हाँ भाग्यवान। पत्नी : चलो दूध ले आओ। पति:  अजी सुनती हो दूध नही है क्या? पत्नी : बहरे हो क्या? सुना नही दूध ले आओ पति: कैसे बात करती हो भाग्यवान हम पति है। पत्नी :चाय पीनी है? पति : अभी लाया भाग्यवान ..दूध। पत्नी : कुछ फल सब्जी आते हुए ले आना?खत्म है। पति : आफिस के लिए देर होगी। पत्नी: जल्दी उठा करो।एहसान न दिखाओ। पति: खाने में क्या बनाया है। पत्नी: सिर तुम्हारा! परोसूं अभी? पति: कैसी जली कटी सुबह सुबह करती हो आखिर पति है हम।  पत्नी: क्या बोला? पति: कुछ नही भाग्यवान। लाओ थैला दो। पत्नी: एक तो पति ऊपर से ये आलसी औलाद। उफ्फ तंग आ गयी। पति : कुछ कहा? पत्नी: हाँ -- अब जाने जा कुछ लोगे? पति :अभी गया अभी आया मेरी जान। पत्नी: शुक्र है।निकले। पति देव चल दिये येही सोचते सोचते कि भई हम तो पति है। और लौट आये समान लेकर। पति : खुश होकर ये लो भाग्यवान समान ले आये। पत्नी: झलाते हुए रख दो उधर। पति: समान लाये है। पत्नी: एहसान किये है क्या आप। पति : नही । पत्नी: तो फिर?

भाषा- समाज का आईना।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 काफी समय से लिखने से मन दूर दूर सा है। ऐसे समय आते रहते है जब जीवन मे अल्पकालिक विराम आते है। ये कई तरह के संतुलन बरकरार कर देते है। विश्राम भी दे देते है। आज एक भाषा पे प्रोग्राम देखते देखते मन बन ही गया। सोचा कुछ भाषा पे ही लिखा जाये।गणेश देवी जी इसके बहुत अच्छे ज्ञाता है। उनके अध्यन से निकले तर्कों ने काफी प्रभावित किया। भाषा यू तो अपने दिमाग मे पनपते विचार, जरूरते और मनोस्तिथि को समझाने का साधन है। ये मौखिक है ये सांकेतिक है और ये लिखित है जो आप पढ़ रहे है।इसपे बहुत शोध आपको मिल जायेंगे। भाषा किसी भी समाज या इंसान का दर्पण या आईना है। भाषा से हम किसी समाज या मनुष्य को कुछ ही क्षणों में समझ सकते है। भाषा स्वत् हमारी तस्वीर सामने वाले के सामने गढ़ देता है। सभ्य ज्ञानी व्यक्ति धीर गम्भीर तोल मोल समझ से आसान बोलने वाले होते है। ऐसा समझा जाता है।मगर चतुर चालाक धोखेबाज़ कपटी भी ऐसा वर्ण धारण कर लेते है मगर ये अल्पकालिक ही होता है।मौखिक भाषा को सांकेतिक भाषा शुद्ध रूप में प्रगट करती रहती है। इसके लिए आप गंभीर होकर चेहरे पे चलती सांकेतिक भाषा को पढ़ेंगे