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Showing posts from April, 2020

रमज़ान- एक पवित्र महीना।

🌺🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺 आज सुबह सुबह हमारे प्रिय मित्र का कुशल क्षेम मैसेज आया।मैसेज के अंत मे लिखा था रमादान करीम। रमज़ान का पवित्र महीना शुरू हो गया।रमज़ान या रमादान एक ही शब्द है।बस भाषा का फर्क है, क्योंकि अरबी भाषा में 'ज़' अक्षर का उच्‍चारण ही नहीं है।बल्कि उसे 'द'  बोला जाता है।इसिलए आप इसे कैसे भी कहें बात एक ही है। रमादान करीम भी शानदार अभिव्यक्ति है।रमजान या रमादान करीम का मतलब होता है कि रमजान आपके लिए उदार हो यानी इन दिनों आपको किसी तरह की मुसीबत का सामना ना करना पड़े।  मित्र आपकी शुभकामनाओ के लिए धन्यवाद। हिन्दू मुस्लिम समाज तक़रीबन हज़ार से ज्यादा वर्षो में काफी करीब आ गया है।दोनों धर्मो में ऐसे पवित्र महीने आते है।समय अलग अलग है।हम माघ महीने में कल्पवास संगम नगरी में करते है और पूर्ण व्रत नियम संयम पालन करते है।शुद्धि होती है।ऐसे ही मुस्लिम समाज रमज़ान जा महीना मनाते है।मुस्लिम कैलेंडर में भी बारह महीने होते है।मुस्लिम पंचांग हिज़री कहलाता है।हिजरी या इस्लामी पंचांग को (अरबी: अत-तक्वीम-हिज़री / फारसी:‎'तकवीम-ए-हिज़री-ये-क़मरी' ) जिसे हिज

कथा सत्यवादी महाराज श्री हरिश्चंद्र जी की।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️🌺 आज कल कहानियां रह रह कर याद आ रही है।कुछ दिनों से राजा हरिश्चंद्र के बारे में लिखने का मन हो रहा है।कई बार वाराणसी गया।हरिश्चंद्र घाट पे कर या शुल्क भी दिया।कुछ भूली बिसरी कुछ आधी अधूरी कहानी याद आने लगी।फिर एक संकलन का दिल किया।कई लिखी कहानियां पढ़ी।फिर काफी कुछ पढ़ा। मार्कण्डेय पुराण मैंने बहुत वर्ष पहले पढ़ा था।और कहानी बचपन मे कई बार सुनी।फिर कुछ सुंदर सी लाइन याद आयी हरिश्चंद्र जी के बारे में। "चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार। पै दृढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार ।। चांद और सूरज अपनी जगह से हट सकते है  , संसार का व्यवहार भी बदल सकता है, परन्तु हरिश्चंद्र अपने वचन से कभी पीछे नही हट सकते। कुछ ऐसा ही मेरी समझ मे आता है। चलिये सुने कथा सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र की-- मार्कण्डेय पुराण प्राचीनतम पुराणों में से एक है। यह लोकप्रिय पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था। इसमे हरिश्चंद्र जी की विस्तृत कहानी है। राजा हरिश्चंद्र का नाम सच बोलने के लिए जगत में प्रसिद्ध है। उनकी प्रसिद्धि चारों तरफ फैली थी। इनका जन्म इक्ष्वाकु वंश म

बर्बरीक- योद्धा जो महाभारत का युद्ध न लड़ सका।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️🌺 महाभारत की बहुत सी कथाएं सुनाई जाती थी बच्चों को।एक कथा और थी जिसे सुनने ने मजा आता था वो थी बर्बरीक की। एक कटा सर जिसने पूरा युद्ध देखा।सिर्फ कृष्ण का सुदर्शन चक्र संहार करते देखा। बड़ा आनंद आता था।बाल्यकाल में कथाएं बहुत संक्षिप्त में सुनाई जाती थी। श्री कृष्ण को अचंभित होते हुए सुनने का इंतज़ार रहता था। कल्पनाये उड़ान भरने लगती और कब आंख लगती पता ही न चलता। चलिये आज सबसे पराकर्मी बलशाली सक्षम योद्धा के अंत से भगवान बनने की कथा कहते है।कथाओं के माध्यम से बर्बरीक की  जन्म कथा पिछले जन्म की कथा और दादा से युद्ध की कथा सुनाते है। कथा स्कन्दपुराण के महेश्वर खंड में बहुत विस्तार से लिखी गयी है। कथा सुनिये-- महाभारत के एक महान धनुर्धारी योद्धा थे। वे पांडव महाबली भीमसेन के पुत्र घटोत्कच और मोरवी (नागकन्या माता) के पुत्र थे। बर्बरीक को उनकी माँ ने यही सिखाया था कि हमेशा हारने वाले की तरफ से लड़ना और वे इसी सिद्धांत पर लड़ते भी रहे। बर्बरीक को कुछ ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त थीं, जिनके बल से पलक झपते ही #महाभारत के युद्ध में भाग लेनेवाले समस्त वीरों को मार सकत

नल दमयंती - प्रेरक प्रेम कथा।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️🌺 मैंने अपने बचपन मे अपनी माता से बहुत सी कथाएं सुनी है। तक़रीबन हर रात को सोने से पहले कोई न कोई कहानी। बचपन मे उम्र का पहिया चलता रहा और हमारी कहानियां भी उम्र संग भागती रही।कुछ याद रह गयी कुछ भूल गयी।ऐसे ही बैठे बैठे याद आ गयी नल दमयंती की कहानी।बहुत संक्षिप्त में सुनाई जाती थी।आज सोचा पहले खुद पढ़ लूं फिर आप को पढ़ा दूं।चलिए आज आप की कहानी सुनाते है एक प्रेमकथा कहते है। नल दमयंती आख्यान आर्यों के प्रसिद्ध प्राचीन दंतकथाओं में से एक है । यह उदात्त और अमर प्रेम की आदि कथा है। यह कथा महाभारत में भी (महाभारत, वनपर्व , अध्याय 53 से 78 तक) वर्णित है और इतनी सुन्दर,सरस और मनोहर है कि कई विद्वान् इसे व्यासकृत मानते हैं । इस कथा पर राजा रवि वर्मा के साथ ही अनेक चित्रकारों ने अपने चित्र तैलचित्र बनाये हैं । यह अमर कथा अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से कितनी बार ही मंचों को सुशोभित कर गयी है। आइये इसे विस्तार से सुने.. ये कहानी तब सुनाई गई जब युधिष्ठिर को जुए में अपना सब-कुछ गँवा कर अपने भाइयों के साथ वनवास करना पड़ा। वहीं एक ऋषि ने उन्हें नल और दमयन्ती की कथा सुन

संचेतन -आज में जीने की कला।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️🌺 जैसे जैसे दुनिया तरक्की पे है इंसान जबरदस्त मानसिक दबाब में। एक ही व्यक्ति से कई अपेक्षाएं और फिर बहुतेरा धन। आदमी धन कमा लेता है। दिमाग पे बोझ बढ़ा लेता है।एक होड़ का हिस्सा बन जाता है।पांच दिन का आफिस पर सात दिन काम करता है।शनिवार रविवार सब एक समान।पारिवारिक कलह अलग।बॉस से तू तू मैं मैं अलग।आफिस की राजनीति अलग।पता नही जाने अनजाने कितने काम लिए दिमाग चलता है।धीरे धीरे दिमाग जबाब देने लगता है। बौद्धिक क्षमता कार्य क्षमता कम होने लगती है।इसका पता काफी पहले लग चुका था।इसका उपाय निकला "संचेतन "से।मैनेजमेंट की भाषा मे माइंडफुलनेस। आज इसी विषय वे संकलित ज्ञान आप के समक्ष शोधों सहित रख रहा हूँ।आज इसपे एक ऑनलाइन प्रशिक्षण  भी लिया।चलिए जाने इसे.. माइंडफुलनेस या संचेतन वर्तमान के अनुभवों, गतिविधियों और संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर मन का नियंत्रण है । दिन-प्रतिदिन के तनाव से राहत पाने के लिए कर्मचारियों के बीच बड़ी कंपनियों में माइंडफुलनेस लोकप्रिय हो गई है, साथ ही साथ उनकी मानसिक क्षमताओं को बेहतर बनाने में मदद कर रही है और इसके

विषाणु या वायरस।

🌺🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺 आजकल कोरोना को लेकर पूरी दुनिया मे घमासान मचा हुआ।एक विषाणु मनुष्य के संहार पे उतारू है।विषाणु या वायरस हमारे आस पास रहते आये है।मगर संक्रमण कुछ विशेष परिस्थितियों में होता है।जब होता है तो महामारी का रूप भी धर लेता है।सोचा आज इसी पे पढ़ा जाए।और जो भी अच्छे लेख इसपे उपलब्ध है उनका सार आप से सांझा किया जाये।आइये जाने विषाणु को... विषाणु (virus) अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं।ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचन

यादों के झरोखों से--कुछ खास रिश्ते।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️🌺 बहुत गुजरी बहुत बीती बहुत सुनाने का मन तो  था मगर सुनाये क्या? जब भी मौका लगता है उस दिन कहीं यह दिल कहीं अपनी पुरानी यादों में कहीं खो जाता है। हम भी जज्बाती हो जाते हैं जब याद उनकी आ जाती है। यह इश्क है कहीं भी होता है किसी से भी होता है। यह हर रिश्ते में होता है हर जगह होता है ।जब यादों में ही दिल के भीतर तक समायी हो तो उसकी याद ना आए ऐसा कैसे हो सकता है। हम भी बहुत चीजों को भूल कर जिंदगी की दौड़ में चलते चले जा रहे हैं। किसी पड़ाव पर कुछ देर रुकते हैं तो उन भूली बिसरी शायद यादों को संजोते जा रहे हैं ।ऐसे ही कुछ अपनों की जुबानी अपनों की कहीं अपने बचपन की कुछ कहानी सुनी। जिन्होंने हमें गोद खिलाया   हमें खूब गोद खिलाया उनके मन की कुछ कहानी हमने अपने मन से सुनी। यादों को जीने का मजा भी अलग है जब याद आ जाए उसको लिख  कर संजोने का मजा भी अलग है।फिर सोचते रहे सोचते रहे सोचा लिखें सोचते सोचते लिखने लगे ।नानाजी ने एक अंगूर की बेल लगाई थी खूब अंगूर उस पर लगे थे ।खूब बाहर आई थी ।दूर रहते थे काम के सिलसिले में परिवार को पालने के लिए खूब मेहनत करते थे। अब

जय श्री हनुमान-श्री भरत समान।एक रोचक प्रसंग।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺✍️ आज एक बहुत सुंदर प्रश्न सामने आया।भगवान राम ने हनुमान की तुलना भरत से की थी लक्ष्मण से क्यों नही?इस प्रश्न का उत्तर बहुत सरल भी है और बहुत मुश्किल भी।इस प्रश्न के कई उत्तर अलग अलग ग्रंथो में मिलते हैं।सबसे सुंदर रचना रामचरितमानस है।मैंने कुछ इसी से और इससे जुड़ी कथाओ से जानने का प्रयत्न किया है।अब इस प्रश्न को सरल नज़रिये से देखते हौ।सरल इसलिए कह सकता हूँ के श्रद्धा प्रेम भक्ति की तुलना जो उस कड़ी में सबसे ऊपर हो उससे ही की जा सकती है।जिस वक्त ये श्री राम जी ने हनुमान जी को कहा वो समय व्याकुल भाव लिए था ।लक्ष्मण जी युद्ध भूमि में मूर्छित थे।हनुमान जी संजीवनी लेकर लोटे थे।तुलसीदास जी ने बहुत सुंदर लिखा  विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥ अर्थ- आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम के काज करने के लिए आतुर रहते है।  प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥ अर्थ- आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में बसे रहते है। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, ब

कलिंग का युद्ध- एक जीत या हार।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️🌺 युद्ध की विभीषिका को हम सब भली भांति जानते है।पूरी दुनिया का इतिहास युद्धों से ही भरा पड़ा है। राजा कहीं भी हुऐ राज्य बढ़ाने के लिए लड़ते रहे। युद्ध के अंत मे विजय उत्सव के बाद जान माल का नुकसान जानने से होता है।हर कोम में इसकी विभीषिका और उसका चित्रण मिलता है।हर धर्म उसे अपने धर्म की लड़ाई से जोड़ने का प्रयत्न करता रहा है जो आज भी जारी है।हमारे भारत के इतिहास में सबसे बड़ा राज्य अशोक का रहा।सीमाएं मयमार से ईरान और नीचे आंध्र तक फैली थी।जब अशोक लड़ने से हटा तो भारी जान माल का अंत कर चुका था।आज अशोक के विषय मे पढा। उसके हृदय परिवर्तन को जानने का प्रयास किया।युद्ध से क्या हाँसिल किया उसकी नज़र से जाना।काफी कुछ संकलित किया आप के लिये। जानते है कलिंग का युद्ध।अशोक का इतिहास शिलालेखों के माध्यम से जाना गया।तेहरवां शिलालेख कलिंग के युद्ध को बताता है।अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है। अब तक अशोक के 150 से ज्यादा अभिलेख 45 स्थानों से प्राप्त हो चुके हैं, जो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे हुए हैं। जहाँ एक ओर ये अभिलेख उसकी साम्

प्रकाश -छटते अंधकार।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🌺 अंधकार हमेशा ही एक खास डर लिए रहा है।डर के साथ ही भीतरी चेतना को डर के दामन में धकेलने का काम भी कर देता है।फिर प्रकाश होता है।डर अचानक भाग जाता है।ये छोटा सा काम किसी भी रात जब आप अकेले हो तो अपने घर कर के देख सकते है।प्रकाश की किरण तुरन्त भीतरी चेतना को विश्वास से भर बाहर ले आती है।आप शांत महसूस करते है। प्रकाश वह है जिसके भीतर पड़कर चीजें दिखाई पड़ती हैं । वह जिसके द्वारा वस्तुओं का रूप नेत्रों को गोचर होता है । दीप्ति । आभा । आलोक । ज्योति । चमक । तेज । सब प्रकाश के स्रोत्र है या प्रकार है। वैज्ञानिकों के अनुसार जिस प्रकार ताप (ऊष्मा) शक्ति का एक रूप है उसी प्रकार प्रकाश भी । प्रकाश कोई द्रव्य नहीं है जिसमें गुणत्व हो । प्रकाश पड़ने पर भी किसी वस्तु की उतनी ही तोल रहेगी जितनी अँधेरे में थी । प्रकाश के संबंध में  वैज्ञानिकों का यह सिद्धांत ( विद्युच्चुंबकीय सिदधांत) है कि प्रकाश एक प्रकार की तरंगवत् गति है जो किसी ज्योतिष्मान् पदार्थ के द्वारा ईथर या आकाशद्रव्य में उत्पन्न होती है और चारों ओर बढ़ती है । इसी से जुड़ी मेरी कुछ आध्यत्मिक बाते है।

महाभारत : जानिये कौरवों को।

🌺🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️🌺 हमारा दूसरा बड़ा महाकव्य ग्रंथ वेद व्यास जी द्वारा रचित विश्व का सबसे बड़ा काव्य महाभारत की कथा है।शायद विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध और सबसे ज्यादा जानमाल के नुकसान वाला युद्ध येही है।इसकी विभीषिका का अनुमान इसमे हुई हैं जानमाल की हानि से लगया जा सकता है।इसमे 18 अक्षौहिणी सेना का समूल विनाश हुआ था।अक्षौहिणी प्राचीन भारत में सेना का माप हुआ करता था। ये संस्कृत का शब्द है। विभिन्न स्रोतों से इसकी संख्या में कुछ कुछ अंतर मिलते हैं। महाभारत के अनुसार एक अक्षौहिणी सेना में 21870 रथ, 21870 हाथी, 65 610 घुड़सवार एवं 109350 पैदल सैनिक होते थे।इसके अनुसार इनका अनुपात 1 रथ:1 गज:3 घुड़सवार:5 पैदल सैनिक होता था। इसके प्रत्येक भाग की संख्या के अंकों का कुल जमा 18 आता है। एक घोडे पर एक सवार बैठा होगा, हाथी पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक फीलवान और दूसरा लडने वाला योद्धा, इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और चार घोडे रहे होंगें, इस प्रकार महाभारत की सेना के मनुष्यों की संख्या कम से कम 4681920 और घोडों की संख्या, रथ में जुते हुओं को लगा कर 27156