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Showing posts from July, 2020

ब्राह्मण कोंन?

बहुत से व्यक्ति विशेष को जाति को लेकर बेहद भ्रम है। उनमे से एक मेरी जाती वर्ग है।जी मैं ब्राह्मणों की बात कर रहा हूँ।इसी पे पढ़ते पढ़ते सुंदर लेख मिला। प्रश्न था "ब्राह्मण कोंन"? जरूर पढ़िये।वेदों का अध्यन कर उनमें लिखे ज्ञान को उपनिषदों के माध्यम से समझाया गया है। उपनिषद हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण श्रुति ग्रंथ हैं।इनमें परमेश्वर, परमात्मा – ब्रह्मा तथा आत्मा के स्वभाव और संबंध का दार्शनिक तथा ज्ञानपूर्वक वर्णन काया गया है।ब्रह्मा, जीव तथा जगत् का ज्ञान प्राप्त करना ही उपनिषदों की मूल शिक्षा है। वज्रसुचिकोपनिषद ( वज्रसूचि उपनिषद् ) यह उपनिषद सामवेद से सम्बद्ध है ! इसमें कुल ९ मंत्र हैं ! सर्वप्रथम चारों वर्णों में से ब्राह्मण की प्रधानता का उल्लेख किया गया है तथा ब्राह्मण कौन है, इसके लिए कई प्रश्न किये गए हैं ! क्या ब्राह्मण जीव है ? शरीर है, जाति है, ज्ञान है, कर्म है, या धार्मिकता है ? इन सब संभावनाओं का निराकरण कोई ना कोई कारण बताकर कर दिया गया है , अंत में ‘ब्राह्मण’ की परिभाषा बताते हुए उपनिषदकार कहते हैं कि जो समस्त दोषों से रहित, अद्वितीय, आत्मतत्व से संपृक्त है, वह ब्राह

धन ।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 धन हर इंसान के जीवन में बहुत महत्व रखता है।सांसारिक सुख सब धन के अधीन किसी न किसी रूप में है ही। धन जी भर कामना और सुख पूर्वक भोगना विरले ही कर पाते है।धन अत्यंत आवश्यक है तो ये बहुत से दोषों का भागी भी है। जरूरत से ज्यादा हो जाये तो सर चढ़ कर बोलता है। ना हो तो दरिद्रता रूप में बुद्धि भी दरिद्र कर देता है। सीमित हो तो लालच की शुरुआत करा देता है। और जैसे जैसे बढ़ता है लालच दिमाग पे भी कब्जा कर लेता है। दूसरों की नज़र में शीघ्र आता है। धन सब रिश्तों को तहस नहस करने में निपुण है। किसी को दिया और फिर बापिस मांगा तो समझो गुनाह हो गया। अपने सब क्षण भर में पराये हो जाते है। तो धन को सहेजना भी कला है। धन कर्म से ही कमाया उत्तम है। उधारी आप की सबसे बड़ी शत्रु है। मांगने वालों की भी रिश्तों में पूछ नही होती। दिखावे की तो पीठ पीछे बुराई तह है।धन बड़ी कातिल चीज़ है जरा सा ध्यान हटा समझो दुर्घटना घटी। इस संसार मे ज्यादतर झगड़े किसी न किसी रूप में धन को लेकर ही है। तार तार होते रिशतों में मुख्य घटक भी ये ही है। धन होना चाहिए इससे इनकार नही। ये आप को ऐश्वर्य का स्वा

अमर या अमरत्व।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 इंसान अपने कर्मो से इतिहास के पन्नो में कैद हो जाता है। उसकी स्मृति चिरकाल तक स्थाई सी लगती है। वो मिटती नही। धुंदली अवश्य हो जाती है कभी कभी। मैं "अमर" शब्द की बात कर रहा हूँ।ये न मरने वाला , अविनाशी, सदा जीवित रहने वाला, शाश्वत,  चिरस्थायी की संज्ञा लिए हुए है।मित्रो अमरत्व देवताओं की भी इच्छा थी और दानवों की भी। इसी के लालच में समुद्र मंथन हुआ।मगर लालच पूरा भी नही हुआ। मगर क्या वाक्य ही अमर होने की लालसा मनुष्य में होती है?होगी शायद!क्योंकि एक इंसान के जीवन की पारी पैंसठ से सत्तर साल की औसतन है और वो भी उसमें हांफ जाता है।फिर लालसा क्यों होगी?बात भी सच है आम आदमी अमर होने की लालसा नही रखता। मुक्ति की अवश्य रखता है।मगर जो बलशाली है उनके भीतर न जाने कहाँ से ये आ जाती है।वो संसार को भोगने की किर्या को अनंत की और ले जाने के लिए आतुर रहते है।मगर प्रकृति के नियम के आगे सब नतमस्तक है।और मृत्यु अपना खेल खेल ही जाती है।फिर व्यक्ति दूसरा रास्ता खोजता है। इतिहास के पन्नो में अमर होने का।इसका सबसे बड़ा उदाहरण राम और रावण है।राम उत्तम कर्मो से ईश

गुरुपूर्णिमा- नमन।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 आज का दिन शुभदिन है। सुबह से ही गुरुओं के आशीर्वाद का एहसास होने लगा।आज मैंने अपने हर गुरु को जिन्होंने मुझे बचपन से आज़तक ज्ञान का भागी बनाया सब को दिल से प्रणाम किया। स्कूल आंखों के सामने आ गया।गाँव के स्कूल से आंगनवाड़ी के रास्ते शहर के स्कूल का सारा वक़्त एकदम जीवंत हो उठा। सब गुरुओं को आंख बंद कर उनकी तस्वीर को आंखों में उतारा और प्रणाम किया। पूर्णिमा को चाँद पूरा जवान होता है।अपनी रोशनी से हर अंधियारे को हर लेता है। गुरु भी चाँद की ठंडी रोशनी सा मेरे सारे अंधियारे हर्ता है।सनातन धर्म मे इसकी बहुत महत्ता है।आज के दिन को जानने से इसकी गहराई और धर्म की निष्ठा को समझा जा सकता है।हमारे देश में गुरूओं का बहुत सम्मान किया जाता है। क्योंकि एक गुरु ही है जो अपने शिष्य को गलत मार्ग से हटाकर सही रास्ते पर लाता है। पौराणिक काल से संबंधित ऐसी बहुत सी कथाएं सुनने को मिलती है जिससे ये पता चलता है कि किसी भी व्यक्ति को महान बनाने में गुरु का विशेष योगदान रहा है। इस दिन को मनाने के पीछे का एक कारण ये भी माना जाता है कि इस दिन महान गुरु महर्षि वेदव्यास जिन्हों

जन्मदिन और जीवन का जश्न एक दर्शन।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 जन्म मरण हमारे जीवन का हिस्सा है। जो पृथ्वी पर जन्मे हर प्राणी के लिये सत्य है। मनुष्य का जन्म पृथ्वी पे हर्ष का विषय है।ये एक उल्ल्हास लेकर आता है। और ये जन्म पृथ्वी पे मौजूद सब प्राणियों से उत्तम है।हर प्राणी मनुष्य के अतिरिक्त एक सीमित बौद्धिक क्षमता का मालिक है। इसी के चलते जीवन भी सीमित दायरे में ही पूरा होता है।इसलिए मेरा अपने लिये मानना है के मैं अपने जन्म को हर वर्ष एक हर्ष के साथ उत्सव रूप में देखता हूँ। इस संसार मे आने और उसे भोगने के लिये मन से अगर ईश्वर है तो उसका धन्यवाद करता हूँ।ये संसार बेहद खूबसूरत है। इसके भीतर असंख्य खूबसूरत प्राकृतिक गणनाएं और संरचनाएं है। जिसे जानने की उत्सुकता मुझे अपने मनुष्य रूप में जन्म लेने का मकसद समझाती है। हर प्राणी का समाज है। तो हमारा भी है। मैंने जम्बू दीप में जन्म लिया है।तो मुझे सनातन धर्म से जोड़ कर देखा जाता है। कुछ सभ्यताएं हमे हिंदुकुश के माध्यम से हिन्दू समाज के रूप में भी जानती है। हम गर्व से कह सकते है हम हिन्दू है। पौराणिक काल से जीवन जे गूढ़ को समझ कर हमारे ऋषि मुनियों ने इसे विभिन्न संस्क

सफलता- भगवद्गीता की नज़र से।

🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹 सफलता जीवनचक्र मे बहुत खास  और जरूरी है। आप के सुदृढ़ सफल व्यक्तिव का आधार है। आपके के चलते रहने और आगे बढ़ने का प्रमाण है। बचपन से छोटी छोटी सफलताएं हमे घसीटने( कसुतड़ने) से लेकर चलना सीखाती है। जब चलना सीख जाते है तो दौड़ने लगते है। फिर पीछे मुड़ कर नही देखते। मगर उम्र और जीवन संघर्ष इस नीति को बदल देते है। फिर से हमें इसे जीवन के किसी मोड़ पर आकर समझने की आवश्यकता पड़ती है। बहुत सी प्रबंधन की किताबों में इसके जिक्र लक्षण आधार समझने समझाने को मिल जाएंगे। क्यों न इसे गीता के माध्यम से समझा जाये।अर्जुन की सफलता कोई छोटी सफलता नही थी। जो असम्भव लग रहा था वो विजय रूपी संभवता से प्रेरणादायी इतिहास बन गया। भगवान कृष्ण ने गीता के माध्यम से संसार को जो शिक्षा दी, वह अनुपम है। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार है ब्रह्मसूत्र और ब्रह्मसूत्र का सार है गीता। सार का अर्थ है निचोड़ या रस।गीता में उन सभी मार्गों की चर्चा की गई है जिन पर चलकर मोक्ष, बुद्धत्व, कैवल्य या समाधि प्राप्त की जा सकती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जन्म-मरण से छुटकारा पाया जा सकता है।