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Showing posts from December, 2018

खुशियां।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 दोस्तो खुशियों का कभी कोई ठिकाना नही। कभी भी  चली जाती है कभी भी लौट आती है। न दिन एक से थे न खुशियां एक सी मिली। कभी कम कभी ज्यादा तो कभी न भी थी। मगर ये दिन तुम्हारा था है और रहेगा। चाहे खुशियां आये जायें स्वाहा हो जायें। मगर हम न विचलित हुए न होंगे न होने देंगे। आज खुशियां दिनों बाद नसीब हुई। खूब मजा लिया दिया पल इसी मे बिता दिया। आज बहुत दिल है चलो दिल की कुछ कहते कुछ सुनाते है। कुछ तुझसे मन की कहते कुछ तेरी सुनते है। कुछ तुझे गा के सुनाते है कुछ तुझ से गवाते है। कुछ तेरे साथ नाचते है कुछ खुद ही थिरकते है। कुछ तेरे साथ अपना भी दिन खुश हसीन बनाते है। कुछ तू दिल सजा कुछ हम दिल के ख्वाब सजाते है। कुछ तेरी रूह मुस्कुराये कुछ मेरी रूह खुश हो जाये। कुछ तेरी हसरतें पूरी हो कुछ हम अपनी कर ले। कुछ तू मेरे साथ खेल कुछ मैं खुद से खेलूं। चल आज फिर बचपन मे एक बार फिर लौट चलें। कुछ दोस्त फिर ढूंढें कुछ और बनाये अपनी दोस्ती पूरी निभाएं। कभी कट्टी हो जायें फिर एक बार अब्बा कर ले। रिश्ता फिर बचपन सा बनायें एक पल रूठे दूजे पल मान जाएं। खूब खुल के खेलें

जब भी हम उदास होते हैं।

🌹🙏🏼❣❣❣❣💏❣❣❣❣✍🏼🌹 जब भी हम उदास होते है तुम दिल के आस पास होते हो। तेरी मुस्कुराहटें मेरे सारे गम भुला देती है। क्या होते हैं वो पल भी जो तेरे एहसास लाते है। जब भी हम उदास होते है तो तुम दिल के आस पास होते हो। दिल बेकरार होता है न जाने तुम से क्या चाहता है। ये उदासी यू ही छटती है जो तुम दिल के पास होती हो। कुछ देर तुम दिल से दूर होती हो मन उदास होता है। तेरी दूरी के एक एहसास से हम उदास होते है। न जाने कोन से अनजाने अपने पास होते है। तेरे दूर जाने से ही मन पशेमान होता है। लगता है के हमने कुछ तो गलत किया होगा। फिर ये एहसास क्यों होते है तुम अगर पास होते हो। जब भी हम उदास होते है तुम दिल के आस पास होते हो। तेरी राहो में हम इन्ज़ार  सदा करते है तेरी इनायत के लिये। तुझे क्या बताएं हम कितनी तमन्नाएं बसाई है इस दिल मे। इसी ख्याल से जब भी कभी उदास होते है तो तुम दिल आस पास होती हो। जय हिंद। 💫****🙏🏼****✍🏼 शुभ रात्रि। 🌹🌹🌹🌹🌹❣🌹🌹🌹🌹🌹

तेरी रहमतें।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 तेरी रहमतों ने न जाने कितने ख्वाब मेरे बना दिये। मैं शुक्रगुजार हूं तेरा जज़्बात तूने मुझमें जगा दिये। काबिल तो नही मैं किसी के ख्वाब पूरे कर सकूं। न रहे कोई ख्वाब अधूरा तूने जरिये इतने बना दिये। हम तेरी पनाहों की नज़र अपने को महफूज़ देखते है। वरना ख्वाब टूटने को कौंन सी देर लगती है यहाँ। याचनायें बहुत सी पाली होंगी हमने भीतर शायद। तू कब इन्हें सुनता रहा हम लेते रहे कभी पता न चला। निगाहें तेरी हम पे भी पड़ती रही हम समझ न सके। तुझे तेरे रूप को कभी खुली आंखों से देख न सके। जब भी खुशियां आती धन्यवाद तो तेरा ही होता। आंखें जब भी बंद करते बस तुझे और तेरी रहमतें पाते। याद शायद बहुत बार मैं भूला होऊंगा पर तुन्हें अबोध ही जाना। मैं गलतियां भी करता रहा तूने बालक ही जाना। बस एक खता और करनी है मुझको माफी पहले ही दे दो। बस कुछ भी हो अपनी पनाहों में मुझे जरा सी जगह सदा के लिए दे दो। जय हिंद। 💫****🙏🏼****✍🏼 शुभ रात्रि। 🌹🌹🌹🌹🌹❣🌹🌹🌹🌹🌹

मौजी मन।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 ये मन बड़ा मौजी है जहाँ देखो हसीन ख्वाब संजो लेता है। मैं काबू में करने को होता हूँ ये फिर दूर भाग लेता है। कभी इस डाल कभी उस डाल बस टिकाव नही लाता है। मैं जंजीर डालने को होता हूँ ये ओझल होने लगता है। इस पल खुश इस पल दुखी पता नही कब इसने किसी की सुनी। यहां कुछ चाहने को होते है ये राह बदलने निकल पड़ता है। अभी तो इसे गुस्सा था अरे अभी इसे प्यार आने को है। न जाने कब इसका मूड बदलता लाख समझाने को है। बेहिसाब प्रश्न उमड़ते जब उत्तर को होता नया प्रश्न खड़ा कर लेता। मैं घुमा फिरा के ला इसे बैठाता ये फिर चलने को होता। मैं इसे समझाने को होता ये मचल मचल जाता। चंचल सी चिडया सा लगता कभी इस डाल कभी उस डाल फुदकता। मैं सोचने लगता ये सोच में ही किधर कहीं और निकल जाता। बहुत कोशिशें की इसे ज्ञान के रास्ते शांति की। बस किसी को गुलाब देते ही फिर भटक जाता। मैं इसे फिर घेर घार के बापिस लाता और ये पीछे दरवाजे बाहर हो लेता। सोचा अब चल छोड़ो इसे क्या काबू करना मुझे कौन सा साधु बनना। बस इतने में ये बहुत बहलता थोड़ा शांत नज़र आता। फिर अचानक जोर से फुदकता नई डाल जा बैठता। ये ही

पुष्प।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 कभी कभी फूलों से ये मन महक जाता है। सुंदरता उनकी बस निहारने को मन कर जाता है। क्या खूबसूरत कृतियों का सृजन प्रकृति से होता है। हर एक पंखुड़ी कुछ नायाब खूबसूरत सी होती है। तराशी भी ऐसी की बिल्कुल बराबर होती है। न जाने कितने रंगों से ये पुष्पों की प्रकृति रँगी है। हर एक पुष्प कुछ नायाब सा दिखता है। मन मेरा उसमे छुपी नायाब आकृतियां ढूंढता है। रंगों में संवरी खूबसूरत खुशबुओं से भरी अमृत थाली ये है। आज का मौसम इनसे कुछ खुशगवार हुआ जाता है। कुछ रात मे महके कुछ भोर को महके कुछ दिन में चहके। सब अपनी अपनी जिंदगी खूबसूरती से जी रहे है हसीन होकर। कुछ घर मे सजते कुछ मंदिर में चढ़ते कुछ बारात में लगते। हर त्योहार इनको है भाता इनके बिना ना खुदा ना दिन खुश होता। जब मलिन इसको तोड़ती गूंथती माला का रूप देती देवो के गले जा बसती। ये कभी नेता कभी अभिनेता कभी जवान कभी शहीद तो कभी शिक्षक को शोभा देते। ये कभी शामियाने में सजते कभी इमारतें सजती इनकी खूबसूरती अपना करती। न जाने ईश्वर ने कब इनकी ईजाद कर डाली। क्या वो मंजर होगा जब खुदा इनको बनाने का ख्वाब देखता होगा। हम इं

हे ईश्वर।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 ईश्वर की पूजा भक्ति हमारे अंदर एक आस्था को जन्म दे उसे प्रबल करती है।ये आस्था मनोकामनाओं को जगाने में सक्षम है।मनोवृत्तियां हमे बहुत सी अभिलाषाओं की और ले जाने में सक्षम है।और ये अभिलाषाएं  ईश्वर से प्रसाद रूप ग्रहण को अधिकार का रूप भी  देती है।हम भक्ति के रास्ते माया में फसें रह जाते है।येही सोचते सोचते मैं ईश्वर से मांगने लगा कुछ दींन रूप मे। हे ईश्वर मैं तेरा उदंड बालक हूँ। नही आता मुझे कोई सीधा रास्ता न समझ दुनिया की। जहां देखो बंधनो का द्वार मुझे रोकता है और मैं फांदता भाग जाता । हे ईश्वर दे मुझे अपनी भक्ति का कुछ अंश। हे ईश्वर दे मुझे अपनी आसक्ति में कुछ छंद। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब लालसाओं से। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब क्रोधो से। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब झूठों से। हे ईश्वर दे मुझे मुंक्ति सब आलस्यों से। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब वैमन्सयों से। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब अभिलाषाओं से। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब अंधेरों से। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब अधिकारों से। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब कुविचारों से। हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब दलिद्

सामर्थ्य।

❣🏹🙏🏼🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹✍🏼🏹❣ सामर्थ्य हर इंसान जानवर में जीवन के प्रथम दिवस से ही आ जाता है।जीने की लड़ाई से और अपनी जरूरत को समझाने से।माँ से बच्चा बिना शब्द बोले अपने रुदन भर से अपनी जरूरत समझा देता है।भूखा है या तकलीफ में बहुत आसानी से माँ को समझ आ जाता है।सामर्थ्य या समर्थ होने का पहला प्रमाण यहीं से प्राप्त हो जाता है।जीवन गति पकड़ता है।जो जरूरत पूरी हो रही थी आश्रय में बदलने लगती है।जानवर इस से थोड़ा भिन्न हो जाते है।सामर्थ्य का एहसास उन्हें हर वक़्त रहता है।इंसान सबसे समर्थ बौद्धिक प्राणी है।और इंसान ही वक़्त के साथ अपने सामर्थ्य को भूलने लगता है।स्नेह भाव प्रथम दृष्टया हमेशा बेहतर लगता है।जब इसका प्रभाव इंसान को जीवन के सरल होने का एहसास दिलाने लग जाता है तब मनुष्य सबसे संकट काल से बिना एहसास किये गुजरने लगता है।एक खास आलस उसके समर्थ भाव को बहुत दबा देता है।ऐसे ही अत्यधिक क्रोध शोषण भी सामर्थ्य को दबाने का काम करते है।बुद्धि सामर्थ्य को प्रबल भी करती है और इसे हरने का काम भी करती है।जानवर इसका हर रूप में बहु उपयोग कर पाते है।जब तक अपने सामर्थ्य ताकत की परख न कर ले पीछे नही हटत

राम नाम जप--राजीव पराशर निर्गुणी।

🌹🙏🏼❣❣❣❣❣💫❣❣❣❣❣✍🏼🌹 राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट। अंतकाल पछताओ गे जब प्राण जाएंगे छूट। जय श्री राम। राम राम राम जय श्री राम। राम राम राम हे प्रभु राम। राम राम राम जय श्री राम। हे मेरे राम राम राम राम जय श्री राम। राम राम राम जय राधे श्याम। राम राम राम जय श्री राम राम राम राम जय राधे श्याम। राम नाम राम जय जय राम। हे मेरे राम जय जय राम। हे प्रभु राम जय राधे श्याम। राम नाम राम जय सीता राम। जय सीता राम राम राम राम जय राधे श्याम। जय जय राम हे मेरे राम। राम राम राम हे प्रभु राम। जय सीता राम राम राम राम। हे प्रभु राम जय राधे श्याम। जय राधे श्याम हे प्रभु राम। जय जय राम राम हे मेरे राम। जय जय  राम  जय राधेे श्याम। तेरे भी राम मेरे भी राम जय जय राम राम राम राम जय राधे श्याम। उसके भी राम हम सबके राम जय जय राम राम राम राम जय सीता राम। जय सीता राम राम राम राम। हे प्रभु राम जय सीता राम। जय सीता राम जय राधे श्याम। हे प्रभु राम जय राधे श्याम। राम राम राम जय श्री राम। जय सीता राम जय राधे श्याम राम राम राम राम नाम राम। हे प्रभु राम जय सीता राम। ॐ राम नाम की लूट

होश।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 ये होश बहुत बदतमीज है कमबख्त गुमते खो जाते है। जब भी किसी खूबसूरत बला को देखते खो जाते है। जब भी कोई गलती से तारीफ कर दे खो जाते है। जब कोई सफलता हाथ लगे बेचारे खोने लगते है। जब भी कोई प्यार दे कमबख्त खोने को होते है। जब कभी खुशियाँ अनायास बरस जाये ससुरे खो जाते है। जब कभी तनहाइयों में कोई साथ मिल जाये खो जातेे है। बीवी डांट जाये तो बस होश भागने को होते है। बॉस से उलझ डांट खाये तो होश पैदल हो लेते है। जीवन में पहला पुरस्कार मिलते ही खोने को होते है। जैसे ही प्रसिद्धि हाथ लगती है जाने कहाँ घांस चरने चले जाते है। फिर मंदिर के ढोल मंजीरे बजते है और ये फिर कही गुम हो जाते है। जब कभी सुंदरता से मुलाकात होती है ये लंबे समय गुमें रहते है। जब कभी उत्कृष्ट कार्य सम्पन्न होता है ये भागने को होते है। बहुत से लम्हे है जहां इन्हें गुमने का बहुत शौक होता है। फिर माँ का एक तमाचा आता है और अक्ल कमबख्त ठिकाने आ लगती है। रही सही कसर पिता के सर्राटे दार थपड से पूरी होती है। ऐसे में होश गुमना तो दूर अक्ल भी ठिकाने पे आ रहती है। फिर भी कभी कभी ये होश बहुत बदतमीज ह

कभी खुद से खफा होता हूँ।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 कभी कभी मैं खुद से भी खफा होता हूँ। हाँ मैं खुद से खफा होता हूँ और बहुत खफा होता हूँ। कुछ गलत करूँ तो खुद से खफा होता हूं। कुछ गलत सोचु तो खुद से खफा होता हूँ। कुछ गलत विचारूं तो खुद से खफा होता हूँ। कुछ गलत कह दूं तो खुद से खफा होता हूँ। कुछ गलत मन मे धारूँ तो खुद से खफा होता हूँ। कुछ गलत लिख दूं तो खुद से खफा होता हूं। कुछ गलत मान लूं तो खुद से खफा होता हूँ। कुछ गलत निर्णय दे दूं तो खुद से खफा होता हूँ। कुछ गलत होता देख लूं तो खुद से खफा होता हूँ। कुछ किसी के दिल को ठेस पहुंचाऊं खुद से खफा होता हूँ। कुछ किसी के सम्मान को आहत करूँ खुद से खफा होता हूँ। कुछ अपनी नाकामियों से मैं खुद से खफा होता हूँ। कुछ नकल की आदत से मैं खुद से खफा होता हूँ। कुछ असफलताओं पे में खुद से खफा होता हूँ। हाँ मैं खुद से खफा होता हूँ और बहुत खफा होता हूँ। जा जाने कितनी बुराइयां है मेरी जिनसे मैं खुद से खफा होता हूँ। हर बार येही कोशिश रहती है के इस बार खफा न होऊं। मगर हर बार मैं खुद से खफा होता हूँ और बहुत खफा होता हूँ। जय हिंद। 💫****🙏🏼****✍🏼 शुभ रात्रि। 🌹🌹🌹

भक्त और चमचा।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 एक भक्त एक चमचे की भिड़ंत जारी है गुथम गुथा हो रही बड़ी तैयारी है। कभी भक्त ऊपर कभी चमचा ऊपर। बीच बाजार भीड़ मजे ले रही है। अरे भक्त ठीक कह रहा है नही भाई चमचा सही है। भीड़ में जबरदस्त बहसबाजी होने लगी। चार पटकनी चमचा देता तो चार भक्त। दोनों बराबर दमदार न वो दो न वो चार। घमासान मचा हुआ है दोनों में बराबर की लगी हुई है। तेरी भक्ति बढ़ी या मेरी चमचागिरी ठनी हुई है। वो उसकी चार गिनाता वो उसकी चार ढूंढ़ लाता। दोनों ही सच्चे लगते जो अपनी बात सुनाता। अगर एक खूबी गिनवाता दूसरा इतिहास बताता। लड़ते भी ऐसे जैसे जोरू से ठनी हुई है। कायें कायें की आवाज़ से कौवों में जैसे भगदड़ मची हुई है। जिधर देखो सब पशोपेश में हैं के कोन सही है। घर बाहर टी वी रेडियो सब जगह बस चर्चा येही है। कुछ बुद्धिजीवी कयास लगा रहे है टी वी पर। और सबसे ज्यादा अपने को सही बता रहे। आकलनों से बाजार  गरम हैै। जनता बेचारी कंफ्यूज हो गयी है। एक विकास दिखा गया दूजा धुन्दला चश्मा पहना गया। आपस में भक्त और चमचे में अभी भी बेहद ठनी हुई है। पूरा दिन गुजरा दंगल में भीड़ रही  मुखालते में। रात होने को

सब समझदार।

🌹🙏🏼❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 जिसे देखो वो कुछ खाए समझदार हुआ जाता है। कुछ आप की कम सुनता है बाकी सब अपनी सुनाता है। हर बात का उसको इल्म है। आप खामख्वाह उसको नही मानते है। आप जज़्बातों में आकर न सुनने पे आमादा है। पर वो भी बचु अपने लॉजिक लगाने पे आमादा है। आप के मुह से एक बात छूटती है। वहां पूरी कहानी ही गढ़ जाती है। आप बात का इशारा भी नही समझ पाते। वहाँ वे कहानी ही खत्म कर जाते है। हर वक़्त कुछ विचलित से मन लिए वे घूमते है। और सारी दुनिया ही उन्हें गलत नज़र आती है। जितनी भी जिरह कर लो उनसे कमबख्त। अंत मे हार अपनी ही नज़र आती है। बहुत से ज्ञान के ये लोग मालिक होते है। जहाँ जगह बन जाये नाक अपनी वही घुसा ही देते है। ख्याल पूरा रखते है के दूसरा जीत न पाये। मसाला हर वक़्त दिमाग में लिये घूमते है। हर जगह कहते पाये जाते है " मुझे पता है"। भाई जे ही बता दो तुम्हे क्या नही पता है। जबाब आता है मुझे तो सब पता है। सिर न धुनें तो क्या धुनें भाई इस इंसान को तो सब पता है। भूल के भी आप उनसे शर्त लगा नही सकते। पता तो है ही के जीतना तो उन्हें ही है। आप कोई भी लॉजिक लगा लो जिंदगी क

ताला।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 बहुत ख्याल आये आज ताले के। सोचा कहाँ कहाँ  जडुं इन्हें। सोचा क्यों न जुबांन पे जडुं पहले। क्यों न नकारात्मक सोच पे जडुं इसे। क्यों न अपनी जिद्द पे जडुं इसे। क्यों न अपने क्रोध पे जडुं इसे। क्यों न खोते विवेक पे जडुं इसे। क्यों न अपनी तुच्छ आकांक्षाओं पे जडुं इसे। क्यों न बढ़ती मनोविकृति पे जडुं इसे। क्यों न खोती सहनशीलता पे जडुं इसे। क्यों न द्वेष पालती बुद्धि पे जडुं इसे। क्यों न विलासता के द्वार पे जडुं इसे क्यों न भोग प्यास पे जडुं इसे। क्यों न कटु वाणी पे जडुं इसे। क्यों न असत्य वचनों पे जडुं इसे। क्यों न काम अभिलाषा पे जडुं इसे। क्यों न भीतरी उन्माद पे जडुं इसे। क्यों न विभस्त सोच पे जडुं इसे। क्यों न तृस्कार की भावना पे जडुं इसे। क्यों न मूर्खता अज्ञान पे जडुं इसे। क्यों न संदेह भाव पे जडुं इसे। क्यों न धोखों पे लगाऊं इसे। क्यों न फरेबों पे कसु इसे। बहुत से प्रश्न उठे मन मे सोचा कहाँ कहाँ लगाऊं इन्हें। कुछ गिन लिए कुछ लगा दिए कुछ बाकी रह गये। इतना ही समझ आया बस इन तालों से खुशियां महफूज़ है। और एक बात इन ताले को चाबी लगाकर फेंक दी

मंज़िलें और संगी।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹 हसरतें पलती रही और हम मंजिलों को तलाशते बढ़ते रहे। कभी होंसलों ने राह दी कभी विश्वास ने सहारा दिया।। मंजिले नज़र आने लगी हम हसरतों को राह बढ़ते रहे। मंज़िलें जो कभी दूर थी आज कुछ पास दिखने लगी।। हम कभी दौड़ते थक जाते चल पड़ते कभी दम भर लेते। कभी कोई टकराता राहों में साथ हो मंज़िलों पे बढ़ चलते।। अकेले निकले थे सफर पे दोस्त मिलते गये कारवां बनता गया। जो सफर मुश्किल भरा कभी नज़र आता था दोस्तों ने आसां कर दिया।। अकेले थे तो सफर दूरियां महसूस हुआ करती थी। दोस्तों ने कब कितना चला दिया अब तक के सफर का पता ही न चला।। नित नये पड़ाव आते औऱ हंसते हंसते निकल जाते। महफिलें सजती समा बंधता और रात दिन यू ही मस्ती से गुजर जाते।। हम एक दोस्त ही ढूंढते यहां तो बहुतेरे हम से मिल जाते। बस हिम्मत इतनी करनी पड़ती के कहते ए दोस्त सुनो तो।। कुछ कुछ दूर साथ देते कुछ और कुछ दूर कुछ संग ही निकल लेते। कुछ फिर किसी मोड़ पे आ मिलते उनसे खूब अदब से मिलते।। मंज़िलें तह होती गई और जिंदगी हसीन सी हो गयी। जो जब चले थे बोर सी थी आज खुशनुमा बहार हो गई।। ये ऐसे ही नही हुआ के अपने से हसीन हो गय