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Showing posts from August, 2019

संसार और कृति।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 कितनी भिन्न भिन्न रचनाओं से पटा संसार है। हर एक कृति भिन्न है हर एक छटा निराली है। जिधर देखता हूँ कुछ सुंदर साअच्छा दिखता है। कभी सोचता हूँ ये माया वश मेरा वहम तो नही? फिर हर उसकी रची हर कृति को देखता हूँ। हर कृति एक नायब सा टुकड़ा ही लगता है। जिसे जितना समझता हूँ ज्ञान वर्धन लेता हूँ। हर कृति से मिले ज्ञान को भीतर संजो लेता हूँ। हर कृति में उस ज्ञान को परखता फेल हो जाता हूँ। क्योंकर हर बार नई कृति में कुछ नया पाता हूँ। किसी मोड़ पे आकर आंकलन में गलत हो जाता हूँ। पर एक और ज्ञान साथ अपने संजो ही लाता हूँ। यू तो भीतर बहुतों से ज्यादा आंखों से पहुंच जाता हूँ। परिपक्वता का एहसास होने लगता है नादानी कर जाता हूँ। दिमाग ज्ञानी सुनने को आतुर है मन मे अधूरा पाता हूँ। हर कृति को हर बार नये रूप में पाता हूँ। फिर विचार हुआ ऐसे क्यों मैं करता हूँ? कितनी बार अपने से बेमतलब छला जाता हूँ। दिमाग पे बोझ बढ़ाता जबरदस्ती अपने को मनाता हूँ। फिर समझा दुनिया तो नित नई है। कितना इसे जानोगे? जितना जाना क्या तुम इससे सब निभा लोगे? उत्तर एक ही मिला ये भीड़ है। हर और कुछ

कुछ प्रश्न।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 काहे मन पे इतना कुछ लगाते हो। काहे किसी के लिये दिल जलाते हो। काहे किसी से उम्मीद लगाते हो। काहे किसी को दिल की सुनाते हो। कौन है जो तुम्हें कभी सुनेगा? कौन है जो तुम्हारी परवाह करेगा? कौन है जो तेरे संग तेरा हो चलेगा? कौन है जो तेरी राह तेरे लिये तकेगा? प्रश्नों से झूंझ रहा था मन बैरागी है। काम से निकला था दिमाग कहीं और चला है। मन रह रह मुझपे ही गजब ढा रहा है। मुझे ही इन सबका कारण बता रहा है। सोच भी बहुत गहरी हो चुकी थी। कहीं तो कुछ गलत हो रहा था। मैं भी गलत जगह शायद हाथ मार रहा था। अपनी सोच पे क्रोध आ रहा था। इतने में फिर कुछ मन शांत हुआ। अपना दिल मुश्किल से काबू हुआ। वैरागी मन बोला "संसार माया है"। जो ईश्वर की भी समझ मे कभी न आया है। रिश्ते मतलब के ज्यादा हुए जाते है। प्रेम अधिकार लग्न अर्पण अब बेमानी है। आत्मा शुद्ध रहे येही तेरी कहानी है। सब आशाओं को छोड़ अपनी राह पकड़। दिल का शांत मन को वैराग दे कर्म का मार्ग प्रशस्त कर। अपनी आशा अपनी आस अपने से बस कर। दुनिया यू ही चलती रहेगी तू अपनी राह पकड़। तेरी मंजिल तुझे पता है। बाकी

ज्ञान का दीपक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣🙏🌹 अपने भीतर रोज़ ज्ञान का दीपक अब  जलाता हूँ मैं। अपनी खोज में निरंतर लगा हूँ मै। बहुत से मेरे अंधेरे छटने लगे। मुझे जीवन के आईने दिखने लगे। अंधेरों में जहां गम था आशाओं के दीप जलने लगे। अपने ही बहुत से अंधेरे कोने दिखने लगे। हर औऱ बहुत कुछ नया था समझ आने लगा। मैं कहाँ छूटा था कुछ समझ आने लगा। वक़्त की स्याही के निशान चमकने लगे। जिन्हें अनजाने में छोड़ आया था पीछे अचानक दिखने लगे। खिड़की की चिटखनी भी नज़र आई। लपक के खिड़की खोल ली। ताजे शुद्ध ख्यालों की हवा के झोंके आये। दिमाग की गहराइयों में ताजगी लौटा लाये। कुछ ठंडक भी थमा गये। कुछ शांति छोड़ गये। बहुत लबे समय से अंधेरों में कहीं गुम था मैं। भटकाव चारों और था। कभी कहीं कभी किसी से अंधा बना टकरा रहा था। खूब चोट खा रहा था। तभी किसी का हाथ मिला। एक ज्ञान दीपक थमा दिया। कुछ हथेलियों से उसे सहला दिया। अल्लादीन ने ज्ञान दीपक जगमगा दिया। कुछ रोशनी हुई। बन्द खिड़कियां खुली। ताज़गी मिली। भोर सी दिखी। शायद मुझे लंबी नींद से जगा दिया। और अब अपने भीतर रोज ज्ञान का दीपक जलाता हूँ मैं। अपनी खोज में निरंतर

मौत।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 मौत ने कहा मैं तो एक सच हूँ। झुठलाते किसे जाते हो। जब तक में सामने न आऊं भुलाये रहते हो। अपने कर्मो से सदा हम बेपरवाह बन जाते हो। किस और जीवन जायेगा अनजान बने रहते हो। हर वक़्त अपने को चकमा दे इससे टलते हो। हर रोज अपना दिन तुम कम करते जाते हो। मगर अपने को बड़ा कहलाने में इतराते हो। तो सुनो...तुम्हारी उम्र गुजरती तिकड़में लड़ाते । किसी के जख्मों पे नमक छिड़कते। किसी के मन को जलाते। किसी की आह लेते। किसी की बर्बादी का प्लान बनाते। किसी को रुलाते। किसी को झूठ से खुश करते। किसी का तमाशा देखते। किसी को मतलब से अपनाते। किसी को  नीचा दिखाते। कभी ईश्वर को ठगते। कभी अपनी आस को परखते। कभी अपनी कुंठा को ढोते। कभी ईश्वर को विनम्रता देते। कभी कभी अपनो को प्यार देते। तो बहुत गुजरी कुछ गुजर रही। जो थोड़ी बची उसमे ये समझ आयी। किसे ठगता है ए बन्दे। अंत समय सब का हिसाब होगा। अब तक तू राजा था मगर अंत मेरे मुताबिक होगा। रोज तून मौत के करीब आता है। कभी तू जवान कहलाता। कभी अधेड़। कभी बुजुर्ग। और अंत वेले कब्र में पांव लटकाता है। सारी माफी मांगता मेरे पास आता

लहरें।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 वक़्त यू ही गुजरता रहा हम किनारे बैठे रहे। जिंदगी की लहरें टकराती रही हम निहारते रहे। कुछ उछल के छू जाती हम महसूस करते रहे। जब बापिस जाती तो ओझल होती देखते रहे। कुछ मस्ती करती उछाल मारती खुश होते रहे। किनारों से मिलके बिखरते अस्तित्व देखते रहे। किनारों पे आ आवाज करती ये शोर सुनते रहे। लहरों को दिया वो सब लौटा जाती समझते रहे। लहरों की हर हलचल को जीवन से जोड़ते रहे। जीवन मृत्यु के सफर को लहरों से समझते रहे। कहाँ से उठी कब खत्म ये अनुमान लगाते रहे। न आरंभ न अंत येही निरंतरता है समझते रहे। फिर सपनो की नाव बना जीवन लहरों पे सवार हुए। शुरू में हिचकोले खाते आगे बढ़ते झूंझते रहे। अथाह जीवन राशि को लांघने को प्रयत्नशील रहे। क्या जीवन की भोर क्या शब पार जाने को आतुर रहे। लहरों की नज़र से जीवन देखते और समझते रहे। वक़्त यू ही गुजरता रहा हम किनारे बैठे रहे। जिंदगी की लहरें टकराती रही हम निहारते रहे। जय हिंद। 💫⚡🌟✨****🙏****✍ शुभ रात्रि। ❣❣❣❣❣❣🎼❣❣❣❣❣❣❣

कभी कभी।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🌹 कभी कभी बहुत आंदोलित होता हूँ मैं। व्यवस्थाओं के शिखर का बोझ ढोता हूँ मैं। हर और फैले मैले को शायद ढोता हूँ मैं। कभी नगवार गुजरे तो  बेमन होता हूँ मैं। हर और अहंकार भयं की फैली ज्वाला है। हर इंसान अपने मे दुबक जीवन जीता है। खोखले संदेशों की माला घूमता पिरोता है। झूठ कपट धोखों को ओढे रहता फिरता है। हर शख्श अपने झूठ में सच को ढूंढता फिरता है। महान बनने को फिरता है पर सच बोलने से डरता है। आनंद की अनुभूति में दुख की बेकदरी करता है। वक़्त लौट के आता है इसकी फिक्र कब करता है। फरेबों ने जिंदगी झूठ की इमारत बना के रखी है। हर कोने में जिसके जिंदगी बुझी सी छुपी पड़ी है। मुस्कराता हूँ मैं शायद अपने सच को छुपाते हुए। कोशिश भी की शायद डर के शायद गुम हो गया मैं। बस एक पहचान को ढूंढ रहा हूँ मै जो मिलती नही। इतनी दलदल भर ली है के ढूंढने को पैर चलाता हूँ औऱ डूब जाता हूँ । कहीं तो ईश्वर कोई एक सहारा दे दे मुझे। पकड़ जिसे मैं भी बाहर आ सकूं कुछ दिन सच की जिंदगी जी भर जी सकूं। जय हिंद। ✨🌟⚡💫****🙏****✍ शुभ रात्रि। ❣❣❣❣❣🎸🎻🎺🎷❣❣❣❣❣

ए मुल्क।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍ ए मुल्क तुझे भी मेरी जरूरत है। तेरी हर सरहद पे मेरी नज़र पूरी है। कोई आंख जो उठाए उम्र उसकी पूरी है। जोश की मुझमे भी कोई कमी नही है। तेरी हर सरहदों पे समझलो पहरेदारी मेरी है। जान हथेली पे लेकर हर वक़्त जो चलता हूँ। तेरी हर टीस को दिल से लगाता हूँ। तेरे हर दर्द को अपना बनाता हूँ। तेरी तक़दीर में अपने को ही पाता हूँ। सोते जागते तुझे अपनी माँ बताता हूँ। तेरी खुशबू से महकता तुझे पूजता हूँ। अपनी हर ख्वाइश में तुझे ही पाता हूँ। कुछ भी कर लूं तेरे इर्दगिर्द मंडराता हूँ। मेरे हर सुखों की करणी धरती तूँ ही है। तेरे हर हिस्से को अपने खून से सींचता हूँ। ये निगाहें सदा तेरी रक्षा में बस टिकी है। मुझे हर रण के लिए तैयार करती रहती है। कोई नज़र क्या तुझपे उठाएगा। जिसने जुर्रत की चूर चूर हो जायेगा। ये ही मेरी प्रतिज्ञा है तेरी सरहदें सुरक्षित है। ए मुल्क तुझे भी मेरी जरूरत है। दुश्मन एक बात समझ ले आज। तेरी हर सरहद पे नज़र मेरी पूरी है। जय हिंद। 💫⚡🌟✨****🎸****✍ शुभ रात्रि। ❣❣❣❣❣❣🙏❣❣❣❣❣❣

भारतीय संविधान भाग 8 अनुच्छेद 239 कख़ व ख।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 8 अनुच्छेद 239 कख़ व ख। 239कख. सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध —यदि राष्ट्रपति का, उप-राज्यपाल  से प्रतिवेदन मिलने पर  या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि,– (क) ऐसी  स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र का प्रशासन अनुच्छेद 239कक या या उस अनुच्छेद के अनुसरण में बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अनुसार नहीं  चलाया जा सकता है ;या (ख) राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के उचित प्रशासन के लिए  ऐसा  करना आवश्यक या समीचीन है, तो राष्ट्रपति , आदेश द्वारा, अनुच्छेद 239कक के किसी उपबंध  के अथवा उस अनुच्छेद के अनुसरण में बनाई गई किसी विधि के सभी या किन्हीं उपबंधों के प्रवर्तन को, ऐसी  अवधि के लिए  और ऐसी  शर्तों के अधीन रहते हुए , जो ऐसी  विधि में विनिर्दिष्ट  की जाएं , निलंबित कर सकेगा, तथा ऐसे  आनुषंगिक और पारिणामिक  उपबंध  कर सकेगा जो अनुच्छेद 239 और अनुच्छेद 239कक के उपबंधों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के प्रशासन के लिए  उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों ।] [7][239ख. विधान-मंडल के विश्रांतिकाल में अध्या

भारतीय संविधान भाग 8 अनुच्छेद 239।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारत का संविधान – भाग 8 संघ राज्यक्षेत्र [1][संघ राज्यक्षेत्र] [2][239. संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन–(1) संसद  द्वारा बनाई गई विधि द्वारायथा अन्यथा उपबंधित  के सिवाय, प्रत्येक संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा , और वह अपने  द्वारा ऐसे  पदाभिधान सहित, जो वह विनिर्दिष्ट  करे, नियुक्त  किए  गए  प्रशासक के माध्यम से उस मात्रा तक कार्य करेगा जितनी वह ठीक समझता है । (2) भाग 6 में किसी बात के होते हुए  भी, राष्ट्रपति  किसी राज्य के राज्यपाल  को किसी निकटवर्ती संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक नियुक्त  कर सकेगा और जहां कोई राज्यपाल  इस प्रकार नियुक्त  किया जाता है वहां वह ऐसे प्रशासक के रूप  में अपने  कॄत्यों का प्रयोग अपनी  मंत्रि-परिषद् से स्वतंत्र रूप  से करेगा । [3][239क. कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के लिए  स्थानीय विधान-मंडलों या मंत्रि-परिषदों का या दोनों का सॄजन–  (1) संसद , विधि द्वारा [4][पांडिचेरी  संघ राज्यक्षेत्र के लिए ,]– (क) उस संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल के रूप  में कार्य करने के लिए निर्वाचित या भागतः नामनिर्देशित और भागतः निर्वाचि

करौंदे।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 चलिये आज आप का मुह कुछ खट्टा कराया जाये।स्कूल की छुट्टी के बाद बहुत चुराये।खट्टा फल करौंदा।करौंदे का कच्चा फल कड़वा, अग्निदीपक, खट्टा, स्वादिष्ट और रक्तपित्तकारक है. यह विष तथा वातनाशक भी है।इसे भिन्न भिन्न नमो से जाना जाता है हिन्दी: करोंदा, करोंदी।अंग्रेजी: जस्मीड फ्लावर्ड।संस्कृत: करमर्द, सुखेण, कृष्णापाक फल।बंगाली: करकचा।मराठी: मरवन्दी।गुजराती: करमंदी।तैलगी: बाका।लैटिन: कैरीसा करंदस। करोंदा एक झाड़ी नुमा पौधा होता है । इसका वैज्ञानिक नाम कैरिसा कैरेंडस (Carissa carandus) है। करोंदा फलों का उपयोग सब्जी और अचार बनाने में किया जाता है। यह पौधा भारत में राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश हरियाणाऔर हिमालय के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह नेपाल और अफगानिस्तान में भी पाया जाता है। यह पौधा बीज से अगस्त या सितम्बर में १.५ मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। कटिंग या बडिंग से भी लगाया जा सकता है। दो वर्ष के पौधे में फल आने लगते हैं। फूल आना मार्च के महीने में शुरू होता है और जुलाई से सितम्बर के बीच फल पक जाता है।करौंदे का पेड़ पहाडी देशों में ज्यादा होते हैं कांटे भी होते है।