🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 कितनी भिन्न भिन्न रचनाओं से पटा संसार है। हर एक कृति भिन्न है हर एक छटा निराली है। जिधर देखता हूँ कुछ सुंदर साअच्छा दिखता है। कभी सोचता हूँ ये माया वश मेरा वहम तो नही? फिर हर उसकी रची हर कृति को देखता हूँ। हर कृति एक नायब सा टुकड़ा ही लगता है। जिसे जितना समझता हूँ ज्ञान वर्धन लेता हूँ। हर कृति से मिले ज्ञान को भीतर संजो लेता हूँ। हर कृति में उस ज्ञान को परखता फेल हो जाता हूँ। क्योंकर हर बार नई कृति में कुछ नया पाता हूँ। किसी मोड़ पे आकर आंकलन में गलत हो जाता हूँ। पर एक और ज्ञान साथ अपने संजो ही लाता हूँ। यू तो भीतर बहुतों से ज्यादा आंखों से पहुंच जाता हूँ। परिपक्वता का एहसास होने लगता है नादानी कर जाता हूँ। दिमाग ज्ञानी सुनने को आतुर है मन मे अधूरा पाता हूँ। हर कृति को हर बार नये रूप में पाता हूँ। फिर विचार हुआ ऐसे क्यों मैं करता हूँ? कितनी बार अपने से बेमतलब छला जाता हूँ। दिमाग पे बोझ बढ़ाता जबरदस्ती अपने को मनाता हूँ। फिर समझा दुनिया तो नित नई है। कितना इसे जानोगे? जितना जाना क्या तुम इससे सब निभा लोगे? उत्तर एक ही मिला ये भीड़ है। हर और कुछ