💐आज कल समाज में अजीब सा आक्रोश है। जहां तहां बहुत अजीब से अत्यंत भावनात्मक अहम टकरा रहे है। समाज कुछ अपनी सहनशीलता खोता जा रहा है। अजीब सी स्तिथि तैयार हो रही है या बनती महसूस हो रही है। हर किसी को किसी से द्वेष उग्रता लिए हुए है। ये उग्रता बहुत बेमानी जंग को दावत पे बुला के रखी है। जहां तहां आप को किसी न किसी गुमा मैं लोग डूबे फड़ें मारते मिल जायेंगे। किसी को पैसे का गरूर है। किसी को ताकत का ।किसी को राजनीति का ।किसी को सरकारी अफसर होने का ।और तो छोड़िए पुलिस के सिपाही को सबसे ज्यादा रौब दिखाने का।माँ बाप को बच्चों पे रौब जमाने का। पड़ोसी को सदा आप से ज्यादा समझदार होने का। पार्क में शाम को घर की जेल से छूटे बुजुर्गों को सब से ज्यादा अक्ल होने का।ये सब एक असहनशील रवैया अख्तियार किये हुए है। सब को अपना प्रभुत्व दिखाना है। अगर आप न मानो तो बिन बुलाये दुनिया मुफ्त में आप की दुश्मन। हां जी कर के निकल जाओ तो आप गधे वो समझदार घोड़े। कहने का मतलब हैं रहेंगे आप से दो कदम आगे भले ही हो किसी लायक भी नही। भला रास्ता क्या बचता है ऐसे बदलते समाज में? सबसे पहले देश हित फिर परिवार हित फिर समाज हित और अ