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Showing posts from November, 2020

कार्तिक माह विशेष-मोहिनी अवतार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ नारायण नारायण।आज की आनंद चर्चा मोहिनी अवतार पे हो जाये और इस धार्मिक माह का समापन इस अमृत रूपी कथा से किया जाए। अग्नि पुराण पद्य पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण और भागवत पुराण मत्स्य पुराण आदि में भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की कथा मिलती है। भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार’ उनका तेहरवां अवतार माना गया है।हम जानते है के देवता और असुरों द्वारा समुद्र मंथन के फलस्वरूप अमृतकलश की उत्पत्ति हुई जिसे असुर लेकर भागने लगे। दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। सुर पक्ष कमजोर पड़ रहा था। यदि अमृत असुरों के हाथों लग जाता तो प्रबल असुर धरा पर अधर्म का राज चतुर्दिक स्थापित कर देते।ऐसा सोचकर भगवान विष्णु ने सर्वविश्वसुन्दरी मोहिनी स्त्री का रूप धारण किया और सुर तथा असुरों को अपने रूप से मोहकर अमृत बांटने हेतु राजी कर लिया। राक्षसराज विप्रचित्ति और सिंहिका नामक राक्षसी से उत्पन्न पुत्र राहु वेश बदल कर देवताओं की कतार में बैठकर अमृत ग्रहण कर गया। इस बात को सूर्य और चंद्रमा भांप गए और मोहिनी रूपधारी भगवान विष्णु को यह तथ्य ज्ञात करवा दिया। राहु तो अमृत पी चुका था

कार्तिक माह विशेष-धन्वंतरि अवतार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ नारायण नारायण। आज की आनंद चर्चा आयुर्वेद के अवतरण  विद्वान और भारतीय चकित्सा पद्यति के सूत्रधार देव स्वरूप विष्णु रूप  धन्वंतरि पे हो जाये। ॐ धन्वंतरये नमः ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरये अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूपाय श्रीधन्वंतरीस्वरूपाय श्रीश्रीश्री औषधचक्राय नारायणाय नमः॥ ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय सर्व आमय विनाशनाय त्रिलोकनाथाय श्रीमहाविष्णुवे नम: || अर्थात परम भगवान् को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिये हैं, सर्वभय नाशक हैं, सररोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरी को नमन है। हम जानते है हिन्दू धर्म को मानने वाले समस्त भारत भूखंड के प्रत्येक कोने में दीपावली के दो दिन पूर्व हम समस्त भारतवासी धनतेरस पर्व को किसी न किसी रूप में मनाते हैं। यह महापर्व कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भारत में ही नहीं अपितु सारे विश्व में वैद्य समाज द्वारा भगवान धन्वंतरि की पूजा-अर्चना कर उनके

कार्तिक माह विशेष-महर्षि वेद व्यास जी।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️ आज की आनंद चर्चा महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना करने वाले ऋषि वेद व्यास के जीवन के बारे हो जाये। महर्षि वेद व्यास के पिता कौन थे, किन परिस्थितियों में व्यास का जन्म हुआ, उनका जीवनकाल कैसे और कहां बीता, आदि जैसे घटनाक्रम के विषय में आज इस चर्चा में आनंद लिया जाये । कथा का प्रारंभ ऋषि पराशर से है।विश्व के पहले पुराण, विष्णु पुराण की रचना करने वाले महर्षि पराशर एक बार यमुना नदी के किनारे भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते हुए उनकी नजर एक सुंदर स्त्री सत्यवती पर पड़ी। मछुआरे की पुत्री सत्यवती, दिखने में तो बेहद आकर्षक थी लेकिन उसकी देह से हमेशा मछली की गंध आती थी, जिसकी वजह से सत्यवती को मत्स्यगंधा भी कहा जाता था।महर्षि पराशर, सत्यवती के प्रति आकर्षित हुए बिना रह नहीं पाए। उन्होंने सत्यवती से उन्होंने नदी पार करवाने की गुजारिश की। सत्यवती ने उन्हें अपनी नाव में बैठने के लिए आमंत्रित किया।नाव में बैठने के बाद पराशर ऋषि ने सत्यवती के सामने प्रणय निवेदन किया, जिसे सत्यवती ने सशर्त स्वीकार किया। पराशर ऋषि, सत्यवती के साथ संभोग करना चाहते थे, जिसकी स्वीकृति देने

कार्तिक माह विशेष-हयग्रीव अवतार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ नारायण नारायण। हे मनुष्यो ध्यान से सुनो ये कथा।एक समय की बात है। हयग्रीव नाम का एक परम पराक्रमी दैत्य हुआ। उसने सरस्वती नदी के तट पर जाकर भगवती महामाया की प्रसन्नता के लिए बड़ी कठोर तपस्या की। वह बहुत दिनों तक बिना कुछ खाए भगवती के मायाबीज एकाक्षर महामंत्र का जाप करता रहा। उसकी इंद्रियां उसके वश में हो चुकी थीं। सभी भोगों का उसने त्याग कर दिया था। उसकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती ने उसे तामसी शक्ति के रूप में दर्शन दिया। भगवती महामाया ने उससे कहा, ‘‘महाभाग! तुम्हारी तपस्या सफल हुई। मैं तुम पर परम प्रसन्न हूं। तुम्हारी जो भी इच्छा हो मैं उसे पूर्ण करने के लिए तैयार हूं। वत्स! वर मांगो।’’ भगवती की दया और प्रेम से ओत-प्रोत वाणी को सुनकर हयग्रीव की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। उसके नेत्र आनंद के अश्रुओं से भर गए। उसने भगवती की स्तुति करते हुए कहा, ‘‘हे कल्याणमयी देवि! आपको नमस्कार है। आप महामाया हैं। सृष्टि, स्थिति और संहार करना आपका स्वाभाविक गुण है। आपकी कृपा से कुछ भी असंभव नहीं है। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे अमर होने का वरदान देने की

कार्तिक माह विशेष- पृथु अवतार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ भगवान विष्णु जे चौबीस अवतारों में से  नौवाँ अवतार है आदिराज पृथु अवतार  । धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वायम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के साथ हुआ।उनके यहां वेन नामक पुत्र हुआ।उसने भगवान को मानने से इंकार कर दिया और स्वयं की पूजा करने के लिए कहा। तब महर्षियों ने मंत्र पूत कुशों से उसका वध कर दिया। तब महर्षियों ने पुत्रहीन राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिससे पृथु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल का चिह्न देखकर ऋषियों ने बताया कि पृथु के वेष में स्वयं श्रीहरि का अंश अवतरित हुआ है।  वेन के अंश से राजा पृथु की हस्तरेखाओ तथा पाँव में कमल चिन्ह था |हाथ में चक्र का चिन्ह था | वे विष्णु भगवान के ही अंश थे | ब्राह्मणों ने राजा पृथु का राज्याभिषेक करके सम्राट बना दिया | उस समय पृथ्वी अन्नहीन थी और प्रजा भूखो मर रही थी | प्रजा का करुण क्रन्दन सुनकर राजा पृथु अति दुखी हुयी | जब उन्हें मालुम हुआ कि पृथ्वी माता ने अन्न ,औषधि आदि को अपने उदर में छुपा लिया है तो वह धनुष बाण लेकर

कार्तिक माह विशेष-भगवान ऋषभदेव अवतार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ आज की आनंद चर्चा भगवान ऋषभदेव पे हो जाये। पढ़ते पढ़ते बहुत सुंदर लेख मिला। लीजिए आप भी इस आनंद चर्चा में आनंद की अनुभूति का एहसास कीजिये- कथा का आरंभ होता है महाराज नाभि से।महाराज आग्रीध्र के पुत्र महाराज नाभि का सबसे बड़ा दुःख यही था कि उनकी कोई संतान नहीं थी । इस कारण उन्होंने अपनी धर्मपत्नी मेरूदेवी के साथ पुत्र की कामना से यज्ञ प्रारम्भ किया । दिव्य तेजस्वी एवं ओजस्वी ऋत्विजनों ने श्रुति के मंत्रों से यज्ञपुरूष का स्तवन किया और शंख-चक्र-गदा-पद्मधारी चतुर्भुज नारायण प्रकट हुए । उनके श्री अंगों की अदभुत शोभा थी । अनन्त, अपरिसीम सौन्दर्यसुधासिन्धु मंगलमय प्रभु विष्णु का दर्शन कर राजा, रानी और ऋत्विजों की प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं रही । सबने अत्यन्त श्रद्धा और भक्ति से प्रभु के चरण कमलों में सादर दण्डवत प्रणाम कर अघ्र्यादि के द्वारा उनकी विधिवत पूजा एवं वंदना की । “प्रभु ! राजर्षि नाभि और उनकी पत्नी मेरूदेवी आपके ही समान पुत्र चाहते हैं” । ऋत्विजों ने उनकी पूजा-अर्चना करने के बाद सभी की कामना स्पष्ट कर दी । “ऋषियों ! आप लोगों ने बड़ा दुर्लभ वर मांग

कार्तिक माह विशेष- देव ऋषी नारद अवतार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️  नारायण नारायण पाठको आज आनंद चर्चा भगवान् विष्णु के सबसे चंचल अवतार नारद मुनि के बारे में हो जाये।  आम तौर पे यदि कोई दो लोगों के बीच लड़ाई कराये तो उसे 'नारद मुनी' की उपाधी दी जाती हे। विष्णु पुराण के एक आनंदमय श्लोक के अनुसार "नरम नर समूहाँ कालहेना ध्यति खण्डयाटीत" जिसका मतलब हे की जो दो लोगों के बीच कलह करवाये वा नारद हे। लेकिन नारद जी की नीयत हमेशा साफ होती हे। वो जो कुछ भी करते हैं प्रभु की इच्छा अनुसार ही करते हैं, कभी बदले की भावना या कभी किसी को नुकसान पहुंचाने की भावना से नहीं।उनका दायें हाथ में वीणा, बाएं हाथ में खड़ताल, गले में पुष्प माला, चरणों में पवन पादुका, मुख पर मुस्कान, के साथ “नारायण नारायण” का जाप करते हुए अलौकिक आभा वाले देवर्षि नारद जी  का वर्णन सनातन धर्म के हर युग के अधिकांश धर्मग्रंथों में मिलता है।सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार नारद मुनि भी भगवान् विष्णु के अवतार थे इसका वर्णन  श्रीमद्भागवतगीता के दसवें अध्याय में स्वयं श्री कृष्ण जी ने किया है | 26वें श्लोक में श्रीकृष्ण जी ने कहा है  अश्वत्थः सर्ववृक्षा

कार्तिक माह विशेष-यज्ञ अवतार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में यज्ञ का बहुत महत्व है।जन्म से मरण के साथ इसे हर ईश्वरीय कर्म से जोड़ा गया है।आर्य सामजियों का तो दिन ही इससे शुरू होता है।आइये आज की आनंद चर्चा भगवान विष्णु का यज्ञ अवतार  पे हो जाये। वायु पुराण के अनुसार यज्ञ अवतार भगवान विष्णु के सातवें अवतार है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था। स्वायम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ। वे रूचि प्रजापति की पत्नी हुई। आकूति और प्रजापति रूचि के जुड़वाँ मिथुन संतानें हुईं। पुत्र यज्ञ जो भगवान विष्णु के यज्ञ नाम से अवतरित हुए। और कन्या हुईं दक्षिणा। मनु जी ने विवाह से पहले ही यह वचन लिया था कि प्रथम पुत्र उन्हें गोद दे दिया जाएगा क्योंकि वे जानते थे कि पुत्र नारायण का अवतार होंगे। इस वचन के अनुसार मनु ने यज्ञ को अपने पुत्र के रूप में गोद ले लिया। यज्ञ विष्णु रूप एवं दक्षिणा लक्ष्मी रूपा थी। इन दोनों का आपस में विवाह हुआ। इन्हीं के कारण से सृष्टि में सर्वप्रथम यज्ञों की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इन यज्ञों के कारण देवताओं की शक्ति बढ़ने

कार्तिक माह विशेष-श्री विष्णु सहस्त्रनामा।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ श्री विष्णु सहस्त्रनामा। आप इसका पाठ प्रभात की अमृत बेला में और संध्या समय में कर सकते है।हर नाम आप की आंतरिक शक्ति को प्रबल करता है।बस जरूरत है एक अभ्यास की।हर शब्द का हमारे शरीर पे प्रभाव पड़ता है। उच्चारण शुद्ध रहे।चलिए आज आनंद चर्चा में भगवान विष्णु के हज़ार नाम ही लिये जाएं।  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:   ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः । भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः ।। 1 ।।   पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः। अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च ।। 2 ।।   योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः । नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः ।। 3 ।।   सर्वः शर्वः शिवः स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्ययः । संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभु: ईश्वरः ।। 4 ।।   स्वयंभूः शम्भु: आदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः । अनादि-निधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ।। 5 ।।   अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभो-अमरप्रभुः । विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ।। 6 ।।   अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः । प्रभूतः त्रिककुब-धाम पवित्रं मंगलं

कार्तिक मास विशेष-नर नारायण अवतार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ उत्तरखंड स्तिथ बद्रीनाथ धाम हिन्दु आस्था का प्रमुख केंद्र है।यह ईश्वर की तपोस्थली अपने आप मे मनुष्य जाति के लिये वरदान है।इसका ऐतिहासिक पक्ष भी है। आज  आनंद चर्चा में जानते है इससे जुड़ी कथा। श्री कृष्ण जी को अर्जुन सबसे प्रिय इसलिए थे कि वो नर के अवतार थे और श्री कृष्ण स्वयं नारायण थे। आपने नर और नारायण का नाम तो सुना ही होगा। भारत का शिरोमुकुट हिमालय है, जो समस्त पर्वतों का पति होने से गिरिराज कहलाता है उसी के एक उत्तुंग शिखर के प्रांगण में बद्रिकाश्रम या बदरीवन है।  वहाँ पर इन चर्म चक्षुओं से न दीखने वाला बदरी का एक विशाल वृक्ष है, इसी प्रकार का प्रयाग में अक्षयवट है।  बदरी वृक्ष में लक्ष्मी जी का वास है, इसीलिये लक्ष्मीपति को यह दिव्य वृक्ष अत्यन्त प्रिय है।  उसकी सुखद शीतल छाया में भगवान् ऋषि मुनियों के साथ सदा तपस्या में निरत रहते हैं।  बदरी वृक्ष के कारण ही यह क्षेत्र बदरी क्षेत्र कहलाता है और नर-नारायण का निवास स्थान होने से इसे नर-नारायण या नारायणाश्रम भी कहते हैं। सृष्टि के आदि में भगवान् ब्रह्मा ने अपने मन से 10 पुत्र उत्पन्न किये।  ये

कार्तिक माह विशेष-छठ पूजा।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ बिहार सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध राज्य है। यहां का आमजन मेहनती और जागृत और ज्ञानी है।इसकी गवाह हमारी आज़ादी का संघर्ष भी है।आजकल त्यौहारों के दिन चल रहे है तो बिहार का सबसे ज्यादा हर्षोउल्लास से मनाया जाने वाला त्यौहार कैसे भूल सकते है। छठ पर्व।आज इसी पे आनंद चर्चा हो जाये। ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन हैं। इसलिए छठ पर छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव को प्रसन्न किया जाता है। इसे गंगा-यमुना या किसी भी नदी, सरोवर के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पूजा मनाई जाती है।यह पर्व चार दिन तक चलता है ।छठ पूजा को सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है।सूर्य देव के साथ इस दिन देवी षष्ठी की भी पूजा की जाती है।इस व्रत को संतान प्राप्ति की इच्छा से रखा जाता है। छठी माता बच्चों की रक्षा करती है ऐसी मान्यता है। इससे जुड़ी कुछ कथायें कहता हूँ। प्राचीन काल से ही छठ पूजा का विशेष महत्व रहा है। इसका आरंभ महाभारत काल में कुंती ने किया था ऐसी मान्यता है। सूर्य की आराधना से ही कुंती

कार्तिक माह विशेष- कपिल मुनि।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ आज की कथा आनंद चर्चा लंम्बी है। धैर्य से पढ़ें। बहुत ज्ञानवर्धक है।   भागवत पुराण में वर्णन है कि कपिलमुनि भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। कपिलमुनि की माता का नाम देवहूति व पिता का नाम कर्दम ऋषि था।कपिलमुनि एक यौगिक तपस्वी थे और अपनी मां देवहूति को बाल्यावस्था में सांख्य-शास्त्र का ज्ञान दिया था। उनकी मां देवहूति मनु व शतरूपा की पुत्री थी। शास्त्र ग्रंथ बताते हैं कि जब प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो उन्होंने अपने शरीर के आधे आधे हिस्से से नर व नारी का निर्माण किया। इन्हें मनु तथा शतरूपा कहा गया। देवहूति के पति थे ऋषि कर्दम। कपिल मुनि अपने माता-पिता की दसवीं संतान थे। उनसे पहले उनकी नौ बहनें थीं। कपिल मुनि ने जब सांख्य शास्त्र की रचना की थी तब बाल्यावस्था में ही कपिल मुनि  ने अपनी माता को सृष्टि व प्रकृति के चौबीस तत्वों का ज्ञान प्रदान किया था।कहते हैं कि सांख्य दर्शन के माध्यम से जो तत्व ज्ञान मुनि ने अपनी माता देवहूति के सामने रखा था वही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश के रूप में सुनाया था।  कपिलमुनि का श्रीमद्भगवत गीता में वर्ण