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Showing posts from July, 2019

व्हाट्सएप्प ज्ञानी।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 युवा पीढ़ी में बहुत जोश है पढ़ने का जरा कम होश है। एक लाइन शुरू करे के इससे पहले खत्म करने की जल्दी है। किताबें बहुत पड़ी है किसको इन्हें पढ़ने की पड़ी है। ज्ञान बहुत है गूगल में जरा सी उंगली मारो दुनिया सामने खड़ी है। क्या कमी है किताबों में इसकी सारी जंग दिमाग मे छिड़ी है। गूगल बाबा के बाद व्हाट्सएप्प बाबा भी मैदान में है। जो गूगल पे न मिले उसे कहीं से घूमता घुमाता आपके सामने ले आये। अब ज्ञानी नये दौर से गुजर रहे हैं व्हाट्सएप्प से ज्ञान अर्जन कर रहे है। कहते है ना के देखा कभी भूलता नही येही ज्ञान ले रहे है। जो कुछ भी दिखाया जाये सच्ची सच्ची सच मान रहे है। जो कूड़ा कचरा वहां बिखरा है सब दिमाग मे डाल रहे है। जिसे साफ सुथरा होना चाहिए था कूड़ा घर बना रहे है। किताबे पड़ने से आंखे दुखती है ये मन ही मन जान रहे है। हर सहज को और सहज समझ सहजता से भीतर समा रहे है। एक नया दौर है जहां व्हाट्सएप्प बाबा अपना ज्ञान धड़ल्ले से बांट रहे है। पहले क्लास में एक आधा कुशाग्र ब मुश्किल मिला करता था। अब एकसौ दो प्रतिशत व्हाट्सएप्प छात्र कुशाग्र बुद्धि के पाये जा रहे है। प्रोफेस

दोस्त।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 दोस्त बहुत मचलते है मुझसे लड़ते झगड़ते है। अपने मतवाले पन के लिये मुझसे उलझते है। जब भी प्रेमशब्द से धोते है कुछ खास लगते है। कोस कोस न थकते है बड़े सयाने कहलाते है। अपनी ढपली अपना ढोल जबरदस्ती बजाते है। मौका मिलते ही कम्बलं कुटाई करवाते है। हक़ समझ के अपना गाली गुफ्तार कर जाते है। जबरदस्ती के चोट दे चालाक हमदर्द बन जाते है। सारे मन की टोह ले प्रिय को ले उड़ जाते है। जिस पे दिल आये वहीं से राह भटकाते है। तरसते दिल को आंखों में पढ़ और तरसाते है। मौज भी लेते है दिल खोल के यार बनाते है। जो सफा न पढ़ा हो जबरदस्ती याद करवाते है। इम्तिहान में जितना मुश्किल हो पास करवाते है। दुख कुछ भी हो हंसते हंसते समय कटवाते है। नाराज गर्लफ्रैंड को भीबमना  सौंप जाते है। हल्का भी खरोंच लग जाये दिल से सहलाते है। सारे खेल खेल के अखण्ड पाखण्ड रच जाते है। मगर हर मोड़ पे राहों में पहले खड़े मिल जाते है। खूब खींचेते कान मेरे गाली दे दोस्ती निभा जाते है। हर दुख दर्द के ये साथी खुशी खुशी सब दे जाते है। मन के मीत दूर होकर भी साथ हमेशा निभाते है। अब क्या कहूँ यारो दोस्त तो आखिर दोस

भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5 अनुच्छेद 225 से 226 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5 अनुच्छेद 225 से 226 तक। 225:- विद्यमान उच्च न्यायालयों की अधिकारिता—इस संविधान के उपबंधों  के अधीन रहते हुए  और इस संविधान द्वारा समुचित विधान-मंडल को प्रदत्त शक्ति यों के आधार पर  उस विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों  के अधीन रहते हुए , किसी विद्यमान उच्च न्यायालय की अधिकारिता और उसमें प्रशासित विधि तथा उस न्यायालय में न्याय प्रशासन के संबंध में उसके न्यायाधीशों की अपनी -अपनी  शक्ति यां, जिनके अंतर्गत न्यायालय के नियम बनाने की शक्ति  तथा उस न्यायालय और उसके सदस्यों की बैठकों का चाहे वे अकेले बैठें या खंड न्यायालयों में बैठें विनियमन करने की शक्ति  है, वही होंगी जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले  थीं  : [63][परंतु राजस्व संबंधी अथवा उसका संग्रहण करने में आदि−] या किए  गए किसी कार्य संबंधी विषय की बाबत उच्च न्यायालयों में से किसी की आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले , जिस किसी निर्बंधन के अधीन था वह निर्बंधन ऐसी  अधिकारिता के प्रयोग को ऐसे  प्रारंभ के पश्चात्  लागू नहीं  होगा ।] [64][226.

भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5 अनुच्छेद 218 से 224 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5 अनुच्छेद 218 से 224 तक। 218-उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों  का उच्च न्यायालयों को लागू होना—अनुच्छेद 124 के खंड (4) और खंड (5) के उपबंध , जहां-जहां उनमें उच्चतम न्यायालय के प्रति निर्देश है वहां-वहां उच्च न्यायालय के प्रति निर्देश प्रतिस्थाफित करके, उच्च न्यायालय के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उच्चतम न्यायालयके संबंध में लागू होते हैं । 219. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा शपथ  या प्रतिज्ञान–[54]* * * उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए  नियुक्त  प्रत्येक व्यक्ति , अपना  पद  ग्रहण करने से पहले , उस राज्य के राज्यपाल  या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त  व्यक्ति  के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए  दिए  गए प्ररूप  के अनुसार, शपथ  लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर  अपने  हस्ताक्षर करेगा । [55][220. स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात्  विधि–व्यवसाय पर  निर्बंधन—कोई व्यक्ति , जिसने इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात्  किसी उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप  में पद  धारण किया है, उच्चतम न्यायालय और अ

भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5–राज्यों के उच्च न्यायालय अनुच्छेद 214 से 17 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 5–राज्यों के उच्च न्यायालय अनुच्छेद 214 से 17 तक। आइये जाने उच्च न्यायालय के विषय मे। 214. राज्यों के लिए  उच्च न्यायालय–[43]* * * प्रत्येक राज्य के लिए  एक  उच्च न्यायालय होगा । [44]* * * * * 215. उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना–प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने  अवमान के लिए  दंड देने की शक्ति  सहित ऐसे  न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी । 216. उच्च न्यायालयों का गठन—प्रत्येक उच्च न्यायालय मुख्य न्यायमूार्ति और ऐसे  अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा जिन्हें राष्ट्रपति  समय-समय पर  नियुक्त  करना आवश्यक समझे । [45]* * * * 217. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति  और उसके पद  की शर्तें–(1) भारत के मुख्य न्यायमूार्ति से, उस राज्य के राज्यपाल से और मुख्य न्यायमूार्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति  की दशा में उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूार्ति से परामर्श  करने के पश्चात्, राष्ट्रपति  अपने  हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र  द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त  करेगा और वह न्याया

भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 4 – राज्यपाल  की विधायी शक्ति अनुच्छेद 213 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 6 अध्याय 4 – राज्यपाल  की विधायी शक्ति अनुच्छेद 213 तक। 213. विधान–मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राज्यपाल  की शक्ति –(1) उस समय को छोड़ कर जब किसी राज्य की  विधान सभा सत्र में है या विधान परिषद  वाले राज्य में विधान-मंडल के दोनों सदन सत्र में है, यदि किसी समय राज्यपाल  का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी  परिास्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण तुरंत कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिास्थितियां में अपेक्षित प्रतीत हों : परंतु  राज्यपाल , राष्ट्रपति  के अनुदेशों के बिना, कोई ऐसा  अध्यादेश प्रख्याफपित नहीं  करेगा यदि– (क) वैसे ही उपबंध  अंतर्विष्ट करने वाले विधेयक को विधान-मंडल में पुर : स्थाफित किए  जाने के लिए राष्ट्रपति  की पूर्व  मंजूरी की अपेक्षा  इस संविधान के अधीन होती ;या (ख) वह वैसे ही उपबंध  अंतर्विष्ट करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति  के विचार के लिए  आरक्षित रखना आवश्यक समझता ; या (ग) वैसे हर उपबंध  अंतर्विष्ट करने वाला राज्य के विधान-मंडल का अधिनियम इस संविधा