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Showing posts from February, 2023

लासल गांव में मंडी सजी हुई है।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 ओ महाराज सुनो! कहो मोटू.... सुना है साहेब लासल गांव में  मंडी सजी हुई है। बिचौलियों की बांछे खूब खिली हुई है। चुनावी खर्च की जो भरपाई हो चली है। एक गरीब किसान कुदरत से लड़ता आता है बेचारा। खूब धूप में पांच सौ छब्बीस किलो प्याज लदवाता है बेचारा। बड़ी उम्मीद से दोपहर की रोटी ले घर से चलता है बेचारा। सोचा कल की रोटी का भी इंतजाम कर लाऊं? इसी उम्मीद में.. किसी तरह घर से चालीस मील मंडी पसीने में लथ पथ पहुंचता है बेचारा। अपनी मेहनत से उगाई लाल प्याज को तुलवाता है बेचारा। अरे पांच सौ छब्बीस किलो है तुका राम चवन साहिब। पर्ची ले किसान खुशी से आड़ती से मिलता है बेचारा। लो तुका राम ये चेक और पंद्रह दिन बाद लगा लेना। दो रुपिया बने है इसे जल्दी से भूना लेना। तुका राम की गहरी आंखों संग निराशा माथे पे आई थी। जो पांच सौ छब्बीस किलो प्याज वो लाया था उसकी पांच सौ रुपए ढुलाई थी। चौबीस रुपए की पर्ची मंडी में कटवाई थी बाजार का आज भाव भी एक रुपए किलो का था ये उसको कहां पता था। बाजार की पर्ची काट कर हाथ में दो रुपिया की बड़ी रकम आई थी। तुका राम की नस काटो तो मानो खून

कट्टर ईमानदार ,भ्रष्टाचार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 ओ महाराज सुनो! कहो मोटू.. आज कल दिल्ली के दिल में संग्राम छिड़ा बड़ा है। एक कट्टर ईमानदार भ्रष्टाचार में लिप्त पड़ा है। ओह ये ईमानदार भी सुना है नेता बना बड़ा है। जहां नेता वहां भ्रष्टाचार का झाड़ बड़ा पड़ा है। आज राजनीति में जो इंसान ईमान बेचे वही बड़ा है। वो  साफ सुथरा दिखता पाप का घड़ा बड़ा पड़ा है। उसके सफेद कुर्ते के नीचे काला धब्बा पड़ा बड़ा है। बाहर से खुशबू बखेरता अंदर से सड़ांधे पड़ा है। ये विशेष कोयले की दलाली में काला पड़ा है। इनकी नसों में खून के पानी सवाल बड़ा है। देश की कसमें खाने वाले लो दारू दलाली में पड़ा है। अब देखो आम आदमी से भी कोई नासमझ बड़ा है। क्योंकि ये राष्ट्रवाद की घुट्टी पिए पड़ा है। एक का भ्रष्टाचार दूसरे का अचार विचार बड़ा है। उलझन बस इतनी सी है नेता को अपना समझा पड़ा है। ये कब क्या किसी के हुए सवाल बड़ा है? सत्ता के खेल में मैदान  भ्रष्टाचार से भरा पड़ा है। लांछनो का दौर अब बहुतों से बहुत बड़ा है। अब हर और एक नेता बद से बदनाम हुआ पड़ा है। फिर एक कोई रोशनी की लहर और विश्वास बड़ा है। इस बदनाम शहर में कोई न कोई तो ईमान

पार्क।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 मेरे बचपन का अधिकांश समय एक सरकारी कॉलोनी में बीता। जहां हर पॉकेट में एक छोटा पार्क और छह पॉकेट के बीच एक बड़ा पार्क था। झूले थे खेलने की जगह थी। फूलों के पौधे थे खूबसूरत पेड़ पौधों वनस्पतियों की भरमार  थी। हम हॉकी क्रिकेट फुटबाल सब खेलते दौड़ लगाते थे। पार्क की सेवा भी करते थे। पानी लगा कर। खूब शरीर की वर्जित होती थी पसीने निकलते थे और आनंद होता था। अब शहरों के आवास के विकास ने पार्क खत्म कर दिए है। दिल्ली भी सुकड़ गई है। फरीदाबाद में तो हाल बेहद खराब है। सरकार इनके प्रति बहुत असंवेदनशील है।पार्क के विषय में सोचते सोचते बहुत कुछ लिखने को दिल किया। तो चलो पार्क के मूलभाव से शुरुआत करते है। एक पार्क मूल रूप से लोगों के आने और आराम करने, आनंद लेने और अपने घरों और काम की दिनचर्या से कुछ समय बिताने के लिए बनाई गई भूमि का एक अच्छी तरह से कटा हुआ और संरक्षित क्षेत्र है। *ये मूलभावना मानसिक संकुचन के चलते आज कल मर गई है।*  एक अच्छे पार्क के तौर पर उदाहरण के लिए इंडिया गेट का चिल्ड्रन पार्क। जैसा कि नाम से ही संकेत मिलता है, एक ऐसा पार्क है जहां बच्चे स

कविता।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 कविता की कल्पना शीलता में  कमाल की जान है। कभी किसी की दाढ़ी  तो कभी किसी की मूछ समझाती है। जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि कहलवाती है।  बहुत लॉजिकल बन कर हंसी ठठे भी लगवाती है। कभी नेता को जमीन पे ले आती है। कभी अभिनेता की उड़ान रद्द करवाती है। आम आदमी से उसकी सही पहचान भी कराती है। कहती है आम आदमी ही रहो ज्यादा न उछलो समझाती है। खुद से ही अपनी  तारीफ  करती करवाती है। जो आस पास घट रहा चीख चीख सुनाती है। कही ये वीभत्स रस में घृणा, हास्य रस में हास, करुण रस में शोक , रौद्र रस में क्रोध , वीर रस में उत्साह , भयानक रस में भय ,शृंगार रस में रति ,अद्भुत रस में आश्चर्य , शांत रस में निर्वेद , वात्सल्य रस में संतान और भक्ति रस में  अनुराग  और ईश्वर आराधना के दर्शन कराती है। ये कविता समुंद्र को कूजे में समाती है। चुनिंदा शब्दो से हाले जहां बताती है। आसानी से दिल में कहीं भी  उतर जाती है। एक बार को उसके रस से दिल को निहलाती है। गहरी निराशा में मार्ग प्रशस्त के दर्शन करवाती है। लिखने वाले के ज्ञान की भी थाह बताती है। वाह वाही हुई तो मंजिल मिल गई बताती ह

ये मेरा मुल्क है लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 ये मेरा मुल्क है लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा। दिल्ली में दिल है इसका अड़ा। यहां है इसका मंदिर सबसे बड़ा। एक छोटा मंदिर भी है देखो खड़ा। एम सी डी है जिसका नाम पड़ा। पार्षदों के जामवाड़े से कुछ दिन से पटा पड़ा। लोकतंत्र में चुने नुमाइंदों का यहां घड़ा बड़ा। पढ़े लिखे समझदार बुद्धिजीवियों का है ये धड़ा। वाह क्या नजारा है आज इसके सदन का! चहों और जूते चप्पल चल रहे है। शंखनाद हो गया है। क्या महिला क्या पुरुष पार्षद सब लोकतंत्र के जमकर मजे ले रहे है। वो देखो एक ने माइक पकड़ा । आप ने क्या समझा? भाई ये उसे तोड़ रहे है। तभी और जोश आया तो दूसरे भाई को थप्पड़ जड़ रहे है। ईते में उनको टांग से घसीटा। वो लुढ़कते नीचे आ रहे है। अरे कुछ उनका वीडियो बना रहे है। लोकतंत्र का नजारा सबको दिखा रहे है। तभी थप्पड़ वाले सरकार को कुछ लोग और नीचे घसीट रहे है। जूते चप्पल जमकर रसीद कर रहे है। गीता का ज्ञान चरित्ररार्थ हो रहे है। भगवन आप भी लोकतंत्र के छोटे मंदिर का भरपूर आनंद ले रहे हो। पार्षद रूपी गोपियों के संघर्ष को तूल दे रहे हो। लो ये जोश आ गया उनमें। लो उसके बाल पकड़

जीभ , जिह्वा।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 जीभ या जिह्वा बहुत ही खास इंद्री है।भोजन और जीवन दोनो का स्वाद सही रूप में समझाती है। हम समझे न समझे अलग बात है। छुरी से तेज कांटों से नुकीली और रबड़ से ज्यादा लचीली होती है। जब चलती है तो खाते हुए खाने का स्वाद देती है और बोलते हुए शब्दों के बाण छोड़ने की ताकत रखती है। कुछ भी भेद सकने के क्षमता रखती है। यही प्रेम द्वेष दोष का कारण है। संपूर्ण जगत इसकी धार पे नाचता है। पूरी मनुष्य योनि इसके इशारों पे चलती है।ये मनुष्य वाणी को जगत से रूबरू करवाती है। बहुत महत्व की इंद्री है दोस्तो।  इसके सही गुण अगर समझ में आ जाएं जो हम अक्सर जानते हुए  भी अंजान बने रहते है तो हमारा उद्धार ही हो जाए। इसका एक बहुत सुंदर प्रसंग रामायण में है।  एक बार विभीषण जी "प्रभु राम "के पास आए और पूछने लगे हे प्रभु! लौकिक और पारलौकिक सफलता का साधन क्या है?  तब भगवान ने कहा ये तो बड़ा ही सरल प्रश्न है इसको तो आपको "श्री हनुमान जी" से ही पूछ लेना चाहिए था।ये कहकर "श्री राम जी" ने विभीषण को "हनुमान जी" के पास भेज दिया।यही प्रश्न विभीषण जी न

मैं।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 सोच रहा हूं "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"। कुछ विचार करता हू तो कुछ समय ठहर सी जाती है। फिर जाने अंजाने बिना बताए लौट आती है। मेरी बुद्धि को अपना घर समझ कब्जा जमा लेती है। फिर वही "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"। देखा... ऑफिस में बॉस सदन में नेता सब उसके अधीन है। मंदिर में पुजारी गिरजा में पादरी भी इसके मुरीद है। स्कूल में मास्टर कॉलेज में प्रोफेसर भी फैन है। तो लगा "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"। गाड़ी का मैकेनिक और गाड़ी का ड्राइवर भी इसके शौकीन है। अमीर की अमीरी और गरीब की गरीबी भी इसकी मुरीद है। लाला सेठ व्योपारी की जेब भी इससे भरी हुई है। क्या करू अब" मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"। आज कल तो होनहार में भी ये घर करी हुई है। जिधर देखो यहां वहां जहां तहां बिखरी हुई है। जिसे देखो इसे लूट रहा है और इससे सबकी जेब भरी हुई है। बेशर्म हो कहता हूं "मैं मेरी जाती भी नही और ये मुझे भाती भी नही है"। बचपन से जवानी तक हर और ये देखी जा र

धर्म और पंथ?

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 कुछ असहज से प्रश्न मन में कभी कभी समाज में पनपती विकृति को देख आ जाते है। हम हिंदी भाषी लोग है। मुझे न इंग्लिश का गूड ज्ञान है और न ही हिंदी में मजबूत पकड़ और उर्दू अरबी फारसी फ्रेंच तो भूल ही जाइए। फिर में आजकल टेलीविजन पर बहुत ज्ञानवान लोगो को धर्म और पंथ का अनुवाद और मतलब समझाते देखता हूं।  धर्म वो है जो धारण योग्य हो बस इतनी सी बात समझ आती है। इसकी कुछ मूल शिक्षाएं है जो बहुत ही वैचारिक सामाजिक चेतना है। फिर लोग पंथ समझाने लगते है। बस हम यहीं ज्ञानियों को समझ नही पाते। धर्म विश्व में बस एक है बाकी सब पंथ।  इसी से प्रश्न उठता है क्या ईसाई धर्म की परिभाषा में नही आ सकते? क्या मुस्लिम धर्म की परिभाषा में नही सकते? ऐसे ही बौद्ध जैन बहाई यहूदी आदि आदि भी? इन सब जगह धर्म के ये दस लक्षण क्या नही पाए जाते... धैर्य, क्षमा (सहिष्णुता), मन पर नियंत्रण, चोरी न करना, मन-वचन एवं कर्म की शुद्धता, इन्द्रीयनिग्रह, शास्त्रों का ज्ञान, आत्मज्ञान, सत्यभाषण एवं अक्रोध। मुझे लगता है ये सब बातें सब जगह मोजूद है। उपवास ,रोजे , फास्टिंग के माध्यम से इन विश्व के तीन

बहुत फुर्सत हुई तो।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 आज बहुत फुर्सत हुई तो गुनगुना लिए। कुछ दिल की सुन लिए कुछ उसे सुना लिए। बहुत अरसा हुआ अपने से बात किए। अब मौका मिला तो दिल खोल दिए। आज बहुत फुर्सत हुई तो गुनगुना लिए। दिल सी दिल की बात हुई तो मुस्कुरा लिए। कुछ बीती यादों को फिर से दोहरा लिए। जो सपने में थे उनको फिर से जी लिए। आज बहुत फुर्सत हुई तो गुनगुना लिए। बहुत सकूं भरा है ये समां जो  बीता याद कर लिए। दौड़ तो रोज लगी थी आज फुर्सत निकाल ही लिए। उन बीते पलों को याद कर फिर जी लिए। आज बहुत फुर्सत हुई तो गुनगुना लिए। एक वो भी दौर था जब हम हम थे । एक वो भी दौर था जब आजाद हम थे। एक वो भी दौर था बस हमारे सपने और हम थे। आज बहुत फुर्सत हुई तो याद कर गुनगुना लिए। कभी किसी को छेड़ लिए कभी मस्ती भी कर लिए। जब दौर भी फुर्सत का था और नादानियां भी कर लिए। कभी इसे पकड़ा उसे छोड़ा और फिर दौड़ लगा दिए। आज बहुत फुर्सत हुई तो गुनगुना लिए। जो बीत गया वो सुंदर था उसे फिर से जी लिए। जो चल रहा उसे सुंदर करने का जतन कर लिए। कल किसे क्या पता कल की सोचना ही छोड़ दिए। आज बहुत फुर्सत हुई तो गुनगुना लिए। जो दिल में था दिल

व्यवहार।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 व्यक्ति का व्यवहार ही व्यक्ति को समाज में श्रेष्ठ या तुछ बनाता है। इसे जीवन के आरंभ से ही सीखने सिखाने की कोशिश करनी चाहिए। आप का व्यवहार अच्छा है और उसमे आदर और प्रेम का मिश्रण है तो समझिए उत्तम है। आप का व्यवहार उत्तम है तो समझिए आप प्रिय और लोकप्रिय दोनो ही है। उत्तम व्यवहार आप के शालीन होने का भी घोतक है। शालीन व्यक्ति विशेष और आदरणीय है। जहां शालीनता जा वास है वहां प्रेम आसानी से पनपता है। जहां प्रेम का वास हो सम्मान का वहां होना निश्चित है।  ये जीवन को सुखी और संपन्न बनाने का आसन सा ही नुस्खा है। हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होए। आप सदा अपने आस पास के लोगो को आकर्षित करने में सफल रहेंगे। अब आप इससे उलट तस्वीर गाडिये। आप शालीनता छोड़ थोड़े गुस्सैल अखड़ और बदतमीज हो जाइए। आप में सदा अप्रसन्नता का वास रहेगा। लोग आपसे दूरी बना कर रखेंगे। सब कुछ होते हुए भी अभाव दिखेगा। चिड़चिड़ा पन सदा हावी रहेगा। विचार संकीर्ण होंगे। शक सदा आप के दिमाग की सवारी करेगा और प्रेम कोसों दूर होगा। अगर आप ताकतवर हुए तो दरिद्र कमजोर पे आपका जोर चलेगा मगर इज्जत सम्मा

शौक बड़ी चीज है!

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 ओ महाराज सुनो! कहो मोटू!.. महाराज शौक बड़ी चीज है.. वो कैसे? सुना है पड़ोस वाले शर्मा जी को पिटने का बहुत शौक है गजब। पिटते है लाल कराते है चुप रहते पाए जाते है। सुना है सहने का बहुत शौक है भाई। ओह। वर्मा जी को धुलाई का बहुत शौक है। हर शनिवार को ढेर लगा रहता है वो रविवार तक धोते पाए जाते है। ओह। अरे वो मेहरा साहब को सफाई का बड़ा शौक है भाई। हैं? जी जी सुबह शाम लगे रहते है कभी झाड़ू कभी पोछा। सुना है मारने का बहुत शौक है। ओह। अरे हमारे प्रसाद जी भी अजब गजब है लाने ले जाने का बहुत शौक है। सुबह दूध शाम को सब्जी  लाने का शौक है। स्कूल से बच्चों को लाते ले जाते पाए जाते है भाई। ओह। क्या बात है प्रसाद जी की सब जगह जलवा तो उनका ही है भाई। अरे रुको भाई। चौधरी जी को चलने चलाने का बहुत शौक है। हैं। जी जी भाभी जी के सुझाए नक्शे कदम पे। ओह। अजी चोपड़ा जी भी है उन्हें कसम से फैंकने फिकवाने का बहुत शौक है.. कभी ज्ञान भक्ति से भरे गुबारे फैंकने का शौक  है।  घर से अपनी तशरीफ फिकवाते पाए जाते है। हैं। जी जी। ओह। बहुत ज्यादती है भाई। अरे आगे भी सुनो ये घर घर की क

हमारे संविधान की उद्देशिका।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ आज मुझे महसूस हुआ कि हमे भारत के संविधान की उद्देशिका को बार बार पढ़ना चाहिए और जब तक पढ़ना चाहिए जब तक ये समझ न आ जाए। 1977 के संशोधनों सहित। कृपया इसे पढ़े और अपने विवेक पे विश्वास रखें की जो समझ आ रहा है वो सही है। किसी से सलाह न लें न दूसरे की समझ का सहारा लें। मुझे पूरा विश्वास है इस  उद्देशिका की किसी को याद भी नहीं होगी। हमारे संविधान की उद्देशिका  "हम भारत के लोग, भारत को एक  सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न *समाजवादी, पंथनिरपेक्ष* लोकतंत्रात्मक गणराज्य* बनाने के लिए तथा  उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,  विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना  की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता  प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की  गरिमा और राष्ट्र की और एकता* *अखंडता** सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़  संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज  तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० "मिति मार्ग शीर्ष  शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं." इसे अ

वेलेंटाइन डे।

❣️🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🇮🇳🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹✍️❣️ प्रेम शब्द बहुत ही भावनाओं से भरा शब्द है।ये आंतरिक खुशी के समृद्ध रहने का सबसे बड़ा कारक है। इसका एहसास हमे युगों युगों से अलग अलग कथाओं और किवदंतियों के द्वारा कराया जाता रहा है। प्रेम का एहसास एक ही है और रूप अनेक। आज का दिन भी विशेष और इसमें भी रूप अनेक। वो है वैलेंटाइन डे। वैलेंटाइन का नाम सुनकर आपके दिल में कुछ-कुछ नहीं, बल्कि बहुत कुछ होने लगा होगा। आज हम यहां वैलेंटाइन डे का मतलब ही नहीं बल्कि इसकी शुरुआत से लेकर अभी तक के बारे में सब कुछ बताने जा रहे है।  14 फरवरी को मनाया जाने वाला दिन वैलेंटाइन डे, जिसे सेंट वेलेंटाइन के दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन कई प्रेमी जोड़े अपने प्यार का इजहार करते पाए जाते हैं। जो पहले से ही किसी के साथ प्रेम बंधन से बंधे है वो इस दिन अपने प्यार को और गहरा बनाने के लिए उपहारों का आदान-प्रदान करते है। विदेशों में इस दिन छुट्टी होती है। इस छुट्टी की शुरुआत असल में बेबीलोनियाई लुपरकेलिया त्योहार से ली गई है, जो फरवरी के मध्य मनाया जाता है। यह कार्निवल बसंत मौसम के आगमन भी सूचना देता है। इसके साथ ही इस