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Showing posts from May, 2019

भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 144 से 147 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 144 से 147 तक। यहां न्यायपालिका के उच्चतम न्यायालय में  संविधानिक वैद्यता को चुनौती देती याचिकाएं उनके लिए बनती खंडपीठ उनके अधिकार क्षेत्र और सारी व्यवस्था को चलाने के लिए सहायक सेवक का पूरा लेखा जोखा है।न्याय पालिकांक अध्याय इन्ही अनुच्छेदों के साथ समाप्त होता है।चलिये पढ़ें... 144. सिविल और न्यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य किया जाना--भारत के राज्यक्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य करेंगे । [67]144क. [विधियों की सांविधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों के निपटारे के बारे में विशेष उपबंध ।]  संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 5 द्वारा (13-4-1978 से) निरसित । 145. न्यायालय के नियम आदि--(1) संसद  द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, राष्ट्रपति के अनुमोदन से न्यायालय की पद्धति और प्रक्रिया के, साधारणतया, विनियमन के लिए  नियम बना सकेगा जिसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात्  :-- (क) उस न्यायाल

भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 136 से 143 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 136 से 143  में उच्चतम न्यायालय में विधि से समाहित शक्तियों की विवेचना की गई है। चलिये जाने इसे.... 136. अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत--(1) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत के राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री , अवधारण, दंडादेश या आदेश की अपील  के लिए विशेष इजाजत दे सकेगा । (2) खंड (1) की कोई बात सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, अवधारण, दंडादेश या आदेश को लागू नहीं होगी । 137. निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालयों द्वारा पुनार्विलोकन--संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाएं गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाएं गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनार्विलोकन करने की शक्ति होगी। 138. उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता की वॄद्धि--(1) उच्चतम न्यायाल

भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 131 से 135 तक

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 131 से 135 में न्यायालय की  प्रारंभिक अधिकारिता उसके निर्णय और निर्णय को लेकर अपील पे पूरी न्यायिक प्रकिर्या समझाई गयी है।अधिकार क्षेत्र का भी वर्णन है।आप पढ़े बहुत से मीडिया में चलत्ते मुकदमों पे कुछ रोशनी पड़ जाये शायद।चलिये जाने इसे... 131. उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता--इस संविधान के उपबंधों  के अधीन रहते हुए,-- (क) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच, या (ख) एक  ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों और दूसरी ओर एक  या अधिक अन्य राज्यों के बीच, या (ग) दो या अधिक राज्यों के बीच, किसी विवाद में, यदि और जहां तक उस विवाद में (विधि का या तथ्य का) ऐसा  कोई प्रश्न अंतर्वलित है जिस पर  किसी विधिक अधिकार का आस्तित्व या विस्तार निर्भर है तो और वहां तक अन्य न्यायालयों का अपवर्जन  करके उच्चतम न्यायालय को आरंभिक अधिकारिता होगी : [53][ परन्तु उक्त अधिकारिता का विस्तार उस विवाद पर नहीं होगा जो किसी ऐसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य लिखत से उत्फन्न हुआ है जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले  की गई थी या

भारतीय संविधान भाग 5 अध्याय 4 अनुच्छेद 124 से 130 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣✍🌹 आज हम भारतीय संविधान भाग 4 अध्याय 4 अनुच्छेद 124 से 130 तक पढ़ेंगे।इनमें हमारे एक प्रमुख स्तंभ न्याय पालिका का पूरा लेखा जोखा है।चलिये जाने  --संघ की न्यायपालिका 124. उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन--(1) भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायमूार्ति और, जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती है तब तक, सात[49] से अनधिक अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा । (2) उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात् , जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र   द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक वह फैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है : परन्तु मुख्य न्यायमूार्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में भारत के मुख्य न्यायमूार्ति से सदैव परामर्श  किया जाएगा : परन्तु यह और कि -- (क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना