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Showing posts from April, 2023

जय बाबा सिद्ध चानन।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 मेरा पैतृक घर पंजाब के जिला रूप नगर की तहसील आनंदपुर साहिब के पास है। मेरे अपने गांव में पांडव कालीन शिव मंदिर है।मगर आज की कहानी उसके पास ही स्थित मंदिर सिद्ध चानन या कहें सिद्ध चानो की है। यह प्राचीन मंदिर हमारे गांव से 5 किलोमीटर दूरी पर है। इसका इतिहास भी द्वापर युग से जुड़ा हुआ है। इसकी कहानी जानने के लिए कुछ खोजबीन करनी पड़ी। सोचा आप से भी सांझा करूं। शुरू करते है अरदास से। मैने भी करवाई । जै जै बाबा सिद्ध चानो जी, रखे तू रखावे तू, वख्शे तू वख्शावे तू, दुशमन की दौड़ से, घोड़े की पौड़ से, रक्षा करनी बाबा जी, हिन्दु को काशी, मुसलमान को मक्का, दुशमन को तेरे नाम का धक्का। जय बाबा सिद्ध चानो जी। यह सिद्ध बाबा चानो की अरदास है। बाबा सिद्ध चानो के उत्तर भारत में बहुत से मंदिर हैं और उनकी मान्यता है। इनमें कुछ मंदिर जैसे मेरे गांव के पास आनंदपुर तहसील का मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के प्रागपुर का मंदिर, बिलासपुर जिले के समैला का मंदिर और हमीरपुर जिले के पिपलु के मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं। वैसे तो इन मंदिरों में हर दिन ही भक्तों का तांता लगा

कुछ भूली बिसरी यादें।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️✍️🌹 कभी कभी याद आ जाती है कुछ भूली बिसरी सी यादें। और मंद मंद मुस्कुरा जाती है ये भूली बिसरी यादें। न जाने कितनी उम्मीदों से भरी थी ये भूली बिसरी यादें। वक्त गुजर गया उम्मीद गुजर गई बस रही तो ये भूली बिसरी यादें। हर दौर में कुछ चमन खिले कुछ गुल बने। वक्त गुजरा तब्दील हुई कुछ भूली बिसरी यादें। कुछ एहसास जो जिए थे इन सांस के साथ। गुजरे वक्त ने बना दिया इन्हे कुछ भूली बिसरी यादें। वक्त की स्याही से लिखे कुछ पल सहेजे थे। समय दौड़ता गया रह गई कुछ भूली बिसरी यादें। कुछ रिश्ते बने कुछ टूटे कुछ रूठे कुछ माने। वक्त ने इन्हे भुला दिया बनाकर कुछ भूली बिसरी यादें। कुछ नजरों के इशारे थे कुछ ख्वाब हमारे थे। समय बदला रहने दिया तो बस कुछ भूली बिसरी यादें। उड़ने का शौक बहुत था छलांगे भी मारी थी। बोझिल कदमों ने दबा दिया रही ये मेरी भूली बिसरी यादें। मिलने और बिछड़ने के गम बहुत बार हुए। वक्त की मलहम ने बना दिए इसे मेरी भूली बिसरी यादें। बहुत से खब्वाबों की कब्र गाह बनती रही ये गहराइयां। वक्त की धूल ने इसे भी तब्दील दिया रही तो बस भूली बिसरी यादें। आज फिर इस धूल को हटा

अंधेरी सुरंग में।

🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️ संध्या काल में उठी इक मशाल में बहुत प्रश्न है। किसी अंधेरी सुरंग में बहुत राजनेतिक कोड़ दफन है। घना अंधेरा है चहुं ओर सन्नाटा भी पसरा हुआ है। कुछ अजीब से दुर्गंध भी हर और फैली हुई है। किसकी ये लाश है जो पैरों तले तो आ रही है दिख नही रही है। मशाल की रोशनी में कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा है। तभी पता चला मेरा चश्मा एक सुरंग के बाहर ही छूट गया है। इस राजनेतिक कोढ़ की दुर्गंध में सब पहचान छुप गई है। इंसान है या जानवर इक सी बू बनी हुई है। इस महामारी का अंदेशा बाहर उजाले में भी फैलने का डर लगने लगा है। अब इस राजनेतिक सुरंग के भीतर बहुत दम घुटने लगा है। पता ये चला है जो भीतर गया वो वापिस नही हुआ है। मुझे लगता है मेरी कब्र का नंबर भी यही लिखा है। जुर्रत मैने जो की कि इस सुरंग का पता आम आदमी के नाम लिखा है। हसरत तो बचाने की थी ये कहां पता था नंबर अपना पहले लिखा हुआ है। कोशिश तो फिर भी समझने की है नंबर लग भी जाए किसको इसका गिला है। प्रश्न अभी भी यक्ष बना हुआ है.. संध्या काल में उठी इक मशाल में बहुत प्रश्न है। किसी अंधेरी सुरंग में बहुत राजनेतिक कोड़ दफन है