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Showing posts from August, 2017

लखनऊ के ये भी कुछ अंदाज़।

💐******✍🏼आज शाम काम खत्म कर बाहर खाने का कार्यक्रम बना। आज मेरी टीम साथ थी। कहाँ चला जाये ?तह हुआ की रॉयल कैफ़े चला जाये। रॉयल कैफ़े हज़रतगंज की मशहूर दुकान है। इसकी यादें बहुत पुराने से जुड़ी है कोई 15 साल से। में पहली बार इस शहर अपनी कंपनी की एक ट्रेनिंग में आया था। खाने पीने का शोक रहा है तो पूछा क्या मशहूर है लखनऊ का। दो चीज़े बताई गई एक टुंडे कबाब और दूसरी टोकरी या बास्केट चाट। टुंडे कबाब असली टुंडे वाले के ही मशहूर है और बास्केट चाट रॉयल कैफ़े की। और भी बहुत कुछ मशहूर है शुक्ला की चाट , बाजपेयी की पूरी कचौड़ी , चौक की ठंडाई , शर्मा टी स्टाल के समोसे बन मखन , सरदार के छोले कुलचे ,मां दुर्गा माँ रेस्ट्रॉन्ट।बहुत कुछ है खाने पीने को। पर रॉयल कैफ़े की बात अलग है। बेहद साफ सुथरा ।तमीज़दार और संवरे वेटर । जब लखनऊ आया तो यहां कई बार खाने का अवसर मिला। यहां मुझे सबसे अच्छी और बेहतरीन स्वाद लिए  जो अच्छी लगी वो थी  दम बिरयानी। वैसे मैं बिरयानी का शौकीन नही हूँ पर जो स्वाद यहां की बिरयानी का है वो बेहतरीन है। मैंने दो साल में स्वाद में कोई बदलाव नही पाया। एक ही स्वाद । कोई त्रुटि नही। पनीर के पीस

मेरा देश मेरी जिम्मेवारी।

💐******✍🏼देश की तरक्की उस के द्वारा जनता को दी जा रही सुविधिओं से आंकलन में आती है। ये हम प्रत्यक्ष देख भी सकते हैं। दुनिया में सुविधिओं को लेकर एक जंग लड़ी जा रही है। दुनिया के कुछ भाग मूलभूत सुविधिओं से वंचित हैं और कही कहीं प्रचुर सुविधएं उपलब्ध हैं। जहां ये प्रचुरता में पहुंच गई है शायद जनता वहां बहुत जागरूक हो गयी है। या यूं कहें पढ़ लिख जाने के बाद अपने लिए बेहतर सुविधिओं को अर्जन करने के मकसद से जागरूक हो गए है। नियम कायदे कानून बेहतर तरीके से अपनाते निभाते है। सुविधियाएँ पनपती है और सालों साल उनमे बेहतरी तो आती ही है उनका कार्यकाल भी बेहतर होता है। सुरक्षा इसी में मेहतबपूर्ण अंग है और स्वछता दूसरा। ये आज इस लिए कह रहा हूँ कि दो दिन में दो चीज़े होती देखी। में सुबह सुबह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 16 पे उतर रहा था। और मेरे सामने एक व्यक्ति प्लेटफार्म की दीवार पे मूत्र विसर्जन में लिप्त था। इतने साफ सुथरे प्लेटफार्म पे सुबह 6:45 पे ये हो रहा था। कोई रेलवे या पुलिस स्टाफ भी नही था। मेरे पीछे एक युवक भी ये देख रहा था उससे रहा नही गया। और जोर से कर्कश आवाज़ में गुराते हु

क्रोध और मेरी स्तिथि।

💐**********✍🏼क्रोध बहुत ही  अहंकारी है। क्रोध मूलतः अहँकार से ही जन्म लेता है। इसमें मैं का बड़ा अंश होता है।  और ये मैं हमारी ज्ञान की विसंगतियों के कारण सदा हमारे आस पास रहती है। क्रोध मूलतः आप में जब घर करता है जब आप की मनचाही स्तिथि नही बन रही होती। मन अप्रसन्न होता है। मन सी उपजी प्रबल भावनायें ज्ञान के प्रकाश को ढक लेती हैं। ये सब ज्यादातर अचानक होता है।  ढके ज्ञान से सुनते कान भी बंद हो जाते है। आंखें खुली रहती है पर दिखाई कुछ नही देता।  इसी तरह प्रबल भाग्य से जब कुछ छूटता है तो भाग्य भाग्य न रह मन को क्रोध की पीड़ा से भर देता है। कई बार ऐसे अंतर द्वंदों से आप के आस पास बहुत बेखबर लोग आप के किंचित अजीब व्यवहार से आहत हो जाते है। आप भी अपने को अपने व्यवहार से बेखबर आहत कर रहे होते हो। दिमाग पे भोझ बढ़ता है। भोझ बढ़ते हि ये ट्रिप हो जाता है। और सामने वाले से क्या व्यवहार करना है हमे भूला देतां है। और जब क्रोध दिमाग पे हावी होता है तो एक आप बड़े छोटे का लिहाज ही खत्म कर देता है। बिना हड्डी का हथियार चलने लगता है तो  सब सुनने वालों के मन में हाहाकार मच जाती है। आप व्यथित हो अव्यवहारिक

स्वार्थ से मोह और व्यथित मन।

💐****✍🏼हम सब अपने जीवन में बहुत सी इच्छाओं से बंधे है। अपनी खुशियां तलाशते कही न कहीं उन्हें ढूंढते कई बार स्वार्थी हो जाते है। स्वार्थ वश कहीं न कहीं किसी की कोई न कोई भावना आहत हो जाती है। किसी न किसी की अगर न भी हो तो अपनी तो हो ही सकती है। स्वार्थ और मोह बहुत से मन की व्याधियों के कारक है।  मोह किसी से भी ज्यादा हो तो याद कीजये उसके थोड़ा दूर जाते ही हमे कैसे विरह खिन्नता एकाकीपन के एहसास से झूझना पड़ता है। अपना एक अनुभव सुनाता हूँ।बहुत पुरानी बात है शायद सन 1986 की। मेरे मासी मासड़ किसी कार्य वश हमारे घर रहने आये। मुझे मासड जी अच्छे लगते थे। मासी भी बहुत प्यार करती थी। कई दिन हमारे घर रहे। इस दौरान उनके साथ साथ वक़्त गुजारने को काफी समय मिला। और जब आप एक साथ काफी दिन रहते हो और सुबह शाम आप को  चेहरे से  परिचय की आदत हो जाती है। तो आप की दिनचर्या में  उनका अनुभव उतर आता है। मासड जी का गठा कसरत का शरीर था। मुझे भी बड़ा शौक था कसरत वर्जिश का। उनसे कुछ कुछ चीज़ें सीख ली। आज शायद उन्हें याद नही। पर में उनसे प्रभवित था। अपने माँ बाप भी सदैव आस पास या सदैव सामने ही रहते थे। अब मेरे मासी मासड

काम क्रोध माया से वासना तक यात्रा।

💐****✍🏼काम क्रोध माया ये वासना के सबसे ज्यादा छुपे हिस्से या पहलू है। बात वासना पे हो रही है। वासना कोई बुरा शब्द नही है पर उसकी व्याख्या ऐसी चीज़ों के साथ कि जाती है जिससे इस शब्द को सुनते ही हमारे अंदर की दृष्टि उनमे ऊपर लिखी तीन चीज़े ढूंढने लगती है। वासनाएं अनन्त और उनन्त भी हो सकती है। क्योंकि ये छुपी हुई कुछ भावनाओ से समाहित हो निर्मित होती है। 'काम' हर प्राणी के   प्रकृति के द्वारा जीवन रूपी संरचना रचना के निर्माण का अभिन्न अंग है। हर जीव में जो प्राण लिए है उसमे ये पाई जाती है। इस संसार का उद्भव और निर्माण इसी का नतीजा है। ये स्वभाविक रूप से प्राणियों में है। एक मनुष्य को छोड़ बाकी समय और हद तह किये बेठे है। ये आप अपने आस पास जानवरों में बखूबी देख व भांप सकते हो। ये जीवन चक्र का अभिन अंग है। जानवर भी एक सामाजिक प्राणी है और बिना कपड़ों के रहता है। ।मनुष्य प्राणी भी है और कहें तो पृथ्वी पे एक ज्यादा दिमाग लिया जानवर भी है। जो अपने को ढकने की काबलियत से  लवरेज है।इस ढकने की कला ने काम के ज्ञान को कई मायनों में तब्दील कर उसमें एक ऐसी रंगत पैदा कर दी है के विज्ञान बहुत से अप्

सड़कों पे बंटता ज्ञान।

आज सुबह हर बार की तरह एक यात्रा फिर शुरू हुई। टैक्सी बुलाई गई। आज मौसम बहुत हि सुहाना हुआ जाता था। सारी रात बारिश होती रही बादल गरजते रहे बिजलियाँ गिरती रही और धरा शीतलता ग्रहण करती रही। सो रिमझिम बरसात में यात्रा का आरम्भ हुआ। जैसे ही टैक्सी से पास पहुंचा ड्राइवर लपक के बाहर आया और बड़ी ही तमीज़ से दरवाज़ा खोला और बैठने के लिए आग्रह किया। जवान लड़का था। अच्छा लगा जिस तरीके से उसने स्वागत किया। गाड़ी सरपट दौड़ पड़ी। हमने भी भाई से पूछ लिया कहाँ से इतना आदर सत्कार सीखा। जबाब था साहब आप सब से और गलतियां कर के सीखा। मेरी उत्सुकता बाद गयी।मैन कहा कैसे। कहा साहब हम पड़े लिखे नही है तो जो सीखा देख देख सीखा। हमने कहा कहाँ से हो। बोला लखनऊ से। फोर भी अनपढ़। कहा हैं बोला सरकारी विद्यालय में शुरू की थी। मास्टर को पढ़ाई से ज्यादा मारना पसंद था तो मारने से बुद्धि मजबूत तो नही होती पर हैं शरीर जरूर मजबूत हो जाता है। कुछ धक्का लगा। कहा स्कूल छोड़ दिये। छोटी उम्र में घर की व्यवस्था और जरूरतों के लिए माँ बाप ने भी पढ़ने में न जोर देकर कमाई पे लगा दिया। पर हम खुश हैं। कमा रहे है।मोटर साईकल की छह किश्त बाकी है बस।

एक उन्माद क्या भीड़ तो क्या अदालत।

😞****✍🏼कुछ अजीब सा हो रहा है न आस पास। इंसान अपनी आस्था से वहशी हुआ जाता है। नैतिकता और कानून का तराज़ू एक इंसाफ के रास्ते किंतनी जानो का दुश्मन बन सकता है। भीड़ और उसके उन्माद के नीचे कितने ही दब जाते है। भावनायें उग्र रूप धारण कर लेती है। कानून और इंसाफ आंखें बंद कर लेता है। एक लहू की धार बह निकलती है। एक ने अपने जोश से लहू बहा दिया दूसरे ने अपने विवेक की कलम से एक निरपराध उन्मादी को सदा के लिए सुला दिया। क्या आस्था क्या दोष क्या प्रभु क्या होश सब निरंकुश है भीड़ के ओट में। किसी को ईमानदारी और अपनी आन कई जानो से ज्यादा प्यारी दूसरे को अपने धर्म के गरूर से पनपी उन्माद भरी भीड़ की बलि प्यारी। दोनों ही अपना काम कर रहे है। एक इंसानियत को बचाने में उग्र है। दूसरा धर्म के प्रचार से उजड़े बिखरे घरों को जोड़ने में समग्र है। कुछ धर्म को धर्म के नाम पे बचा रहे है और कुछ नारी के शोषण को इंसाफ दिला रहे है। हैरत इस बात की है के दोनों ही भीड़ तंत्र को जानकर उन्मादी हो रहे है। इनसब के बीच अशिक्षा के धरातल से उपजी नासमझ भक्ति आसक्ति और विश्वास ने  भ्रष्ट तंत्र से उलझन मोल ले ली है। धर्म बाजार हुआ जाता है