💐जीवन के क्रम में हम अपने आपसे बहुत सीखते और बहुत से सकारत्मक और नकारत्मक बदलाव अपने अंदर लाते रहते है। हम बात सकारत्मक बदलावों पे ही करेंगे। क्या आप अपने को रोज़ कुछ वक्त देते हो? फिर सुनिये अपने को केवल अपने को। 24 घंटे का दिन है। हमारी उम्र में नींद भी 4 से 6 घंटे की होती है।18 घंटे कुछ न कुछ सोच विचार काम कर्म खेल गप्प शप्प टीवी पूजा पाठ इत्यादि में हम अपना समय बिताते हैं। कहना ये है बहुत से कामों में दिन भर उलझे रहते है। जाग खुलने के बाद से जुट जाते हैं काम पे। दिनचर्या दैनिक निवृति से शुरू हो स्नान नाश्ते यात्रा आफिस व्योपार फिर यात्रा फिर रात का खाना और टीवी देख के सो जाना कर समाप्त हो जाती है। ज्यादातर रोज़ ये ही होता है। घर में बीवी बच्चे माता पिता भाई बहन भी होते है। जो कुछ आप का समय चाहते है। कुछ ये दे पाते हैं और कुछ दिमाग के बोझ के मारे अपने में ही उलझे रहते हैं।और अपना कीमती समय अपनी फिजूल की उलझन में उलझाए रखते हैं। वक़्त होकर भी गुजर रहा है उड़ रहा है। खुली आँखों के सामने से पल मिनट सेकंड घंटे हवा हो जाते है। हम अपनी स्तिथि बदल नही पाते। ज्यादतर ऐसा क्यों होता है? बड़ा सोचनीय विषय है। और गलती का एहसास भी नही होता। समझ काम नही करती। कोई समझ पकड़ में नही आती। उलझा दिमाग उलझी जिंदगी रोज़ उठती है और रोज़ सोती है। स्तिथि बदलती नही। हो ये रहा होता है की आप विचारशीलता के आभाव से ग्रस्त होते हो। दिन में कोई ऐसा समय नही निकाल पाते जिसमे सिर्फ इतना काम किया जा सके कि बीते 24 घंटों में हमने क्या किया इसका कुछ मंथन किया जा सके? क्या वो मेरे जीवन उपयोगी थे ,मेरे और मेरे परिवार की आशा अनुकूल रहे? जो उम्मीद मेरो ने बांधी थी उसपे कुछ खरे उतरे? किसी के दिल का सकूं ला सके? अपनी कुछ गलतियों का एहसास कर पाये या जान पाये? परिवार के प्रेम की अपेक्षाओं पे ये खरा रहे या नही? बहुत से सवाल रोज़ कहे अनकहे वक़्त के बहाव में बहे जाते हैं। कभी रोक पाये इन प्रश्नों को? कह पाये कभी अपने आप से इन्हें? सब प्रश्न ही प्रश्न । उत्तर भी है। कुछ समय अपने साथ भी गुजारो। आप अपने लिए भी जीना सीखो। अपने से बात करो। अपने दिल को दिमाग से मुलाकात का एहसास कराओ। कुछ वक्त सिर्फ अपने लिए एकांत में भी गुजारो। समय बांधने की जरूरत नही। जब दिन में कोई समय आप को मिले अपने को पकड़ के बैठ जाओ। दिमाग घड़ी को 24 घंटे पीछे कर शुरू करो। जो किया क्यों किया कैसे किये सही किया गलत किया कुछ प्रश्नों की रोशनी में अपने बीते 24 घंटे देखो। देखते देखते बहुत कुछ पकड़ में आने लगेगा। एक नया संघर्ष सुधार का शुरू होगा। व्यक्तित्व में आमूल चूल परिवर्तन महसूस करोगे। पहले से बेहतर नज़रिया आप में आने लगेगा। एक सकारत्मकता बनने लगेगी। उलझी पहेलियां समझ में आने लगेंगी। और आप का मन साफ हो सुंदरता लेने लगेगा। ये होते ही आप मुस्कुराने ज्यादा लगेंगे और जिंदगी से शिकायतें कही कम हो जायेंगी।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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