💐जीवन में कई बार प्रस्थितियाँ आप की समझ के बाहर होती है। सब कुछ बेहतर देने के बाद बेहतर मिलना मुश्किल सा महसूस होता है। परिणाम आशा अनुरूप हर बार नही मिलते। अपनो से न मिले तो ज्यादा महसूस होता है। भावनात्मक रिश्ते कई बार कटोचते से महसूस होते है। हम कही और तो वो कहीं और चल रहे होते है। इस समय भावनाओ में बहना भी कुछ ठीक नही होता। प्रस्थितियाँ बहुत बार आप के बस में नहीं होती। आप उनपे नज़र तो रख सकते हो पर परिणाम अपेक्षित हो ये उम्मीद नही की जा सकती। किया क्या जाये? बहुत से और प्रश्न उठने संभाविक हो जाते है। और शायद कुछ चीज़े वक़्त पे भी छोड़ देनी चाहियें। पिछले दो तीन साल से कुछ ऎसी ही स्तिथियाँ प्रस्थितियाँ मेरे आस पास भी बन रही थी। मेरे अपनो की। कुछ चीजों में गंभीरता लाने में मैं नाकाम रहा। कुछ आकलनों में सही भी नही रहा। शायद उम्मीदें ज्यादा बांध ली हों। जिनसे बांधी वे कहीं और ही मंजिल तलाश रहे हो।कुछ मौका ढूंढ़ रहे हो आँख से बच के निकलने का। चेहरे का कृत्रिमपन नही पड़ पा रहे थे। कुछ ठगा सा महसूस हुआ। हम प्यार में शायद कुछ ज्यादा ही इशारों को नज़रंदाज़ कर गये। कुछ सख्त तो होना ही था। सो आज एक फैसला ले ही लिया। और ये सोच गलत या सही है फैसला अब वक्त करेगा। बाकी देखा जायेगा। मन पे ठेस तो नही लगेगी। गलानि का एहसास तो नही होगा। अंतरात्मा कोसेगी तो नही। फैसले गलत हो सकते है तो सुधार हो सकता है। यदि सही हुए तो शायद किसी का भविष्य ही बच जाये। और हो सकता है भविष्य भविष्य में आज पे मुस्कुराये। रुला भी सकता है। पर शायद कुछ चीजों को लेकर ये मेरी फितरत में है ही नही। रोज़ सोचता हूं बहुत से अपने एतबारों का आंकलन करता रहता हू। कितने एतबार रोज़ टूटते है और कुछ रह भी जाते है। या यूं कहिये आज कुछ टूटा भी है। तो दिल को कि्या मजबूत सोच घड़ी को जरा 2 साल पीछे तक घुमाई। आंकलन किया। आज की वास्तुस्थिति देखी। जब कोई तस्सली देता मुकाम नज़र न आया तो मन मजबूत कर कुछ मुश्किल फैसला कर ही लिया। देखिये कहाँ तक आस जगती या टूटती है। फ़ैसलों से उम्मीद तो सदा ही रहती है। किसी के जीवन की राह तह होनी है और जिनकी होनी है वो बेपरवाह हुए है। हम भी कोशिश में है किंतु आज हमे न भी सुनो कल तो याद करेगे ही। हम सौ नाउम्मीद सही तुम्हारी पर तुम अपनी उम्मीद तो कभी बनोगे। फिर कोई और नही एक बार तो हमे भी याद करोगे।चल बढ़ाते हैं एक कदम हम भी । तू न सही तेरे लिए हम ही सही।
जय हिंद।
****🙏🏾****✍🏼
शुभ रात्रि।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
Comments
Post a Comment