Skip to main content

काम क्रोध माया से वासना तक यात्रा।

💐****✍🏼काम क्रोध माया ये वासना के सबसे ज्यादा छुपे हिस्से या पहलू है। बात वासना पे हो रही है। वासना कोई बुरा शब्द नही है पर उसकी व्याख्या ऐसी चीज़ों के साथ कि जाती है जिससे इस शब्द को सुनते ही हमारे अंदर की दृष्टि उनमे ऊपर लिखी तीन चीज़े ढूंढने लगती है। वासनाएं अनन्त और उनन्त भी हो सकती है। क्योंकि ये छुपी हुई कुछ भावनाओ से समाहित हो निर्मित होती है। 'काम' हर प्राणी के   प्रकृति के द्वारा जीवन रूपी संरचना रचना के निर्माण का अभिन्न अंग है। हर जीव में जो प्राण लिए है उसमे ये पाई जाती है। इस संसार का उद्भव और निर्माण इसी का नतीजा है। ये स्वभाविक रूप से प्राणियों में है। एक मनुष्य को छोड़ बाकी समय और हद तह किये बेठे है। ये आप अपने आस पास जानवरों में बखूबी देख व भांप सकते हो। ये जीवन चक्र का अभिन अंग है। जानवर भी एक सामाजिक प्राणी है और बिना कपड़ों के रहता है। ।मनुष्य प्राणी भी है और कहें तो पृथ्वी पे एक ज्यादा दिमाग लिया जानवर भी है। जो अपने को ढकने की काबलियत से  लवरेज है।इस ढकने की कला ने काम के ज्ञान को कई मायनों में तब्दील कर उसमें एक ऐसी रंगत पैदा कर दी है के विज्ञान बहुत से अप्राकृतिक अवस्थाओं को प्रकृति बनाने में लगी है। ये काम अक्सर जानवरों में झगड़े के सबसे बड़ा कारण होता है। ये अक्सर कुत्तों बंदरों में आप अपने आस पास देख ही सकते हो। मनुष्य कैसे बच सकता है? प्रश्न है? ये क्षणिक है ये सब वक़्त के साथ समझ जाते है। संभाविक है ये भी जान जाते है। मगर ये जो बेहतरीन दिमाग दे दिया है ना ये सब माया की जड़ है। काम से क्रोध हमेशा उतपन होगा और माया काम की लालच को बढ़ाती मिलेगी। माया इस संसार के समस्त प्रकार के धन साधन संसाधन है। पुरुष के लिए स्त्री और स्त्री के लिए पुरुष माया के वहीं अंग है। हम माया को काम के जरिये भोग के सुख के भाव को पाते है । और संतुष्टि होने पे हर बार संतुष्टि ढूंढते है यहां वासना शब्द आ जाता है। संसार मायावी है। जैसे खूबसूरत हिल स्टेशन पे जा के आकर्षण से सुखद एहसास होता है वैसे ही शारीरिक सुंदरता सब को समान रूप से आकर्षित कर सुखद एहसास दे जाती है। ये माया का खिंचाव पहले मन की भूख शांत करता है और फिर तन पे हावी हो वहशी होने की हद तक जाने की काबलियत रखता है। ये जो कहा जा रहा है प्राणियों की संभविक अवस्था है। ये होता ही है भले मुह पे नकार दें। और फिर शिक्षा मनुष्य नामक प्राणी को ही हांसिल है। क्योंकि ज्ञान विज्ञान प्रकृति को मनुष्य ही सबसे ज्यादा समझता आया है। इस समझाइश ने बहुत से नायाब सुख दे दिए है। मनुष्य भी सामाजिक प्राणी है परंतु अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि से भरपूर। कुछ समाज व्यवस्था को बेहतर ढंग से चलाने के लिए और जहां के लिए झगड़े न हो हमारे पुरखो ने कुछ व्यवस्थाएँ बना दी। उनको समाज के लिए कुछ ऐसे व्यक्तित्व भी तैयार करने थे जो माया काम क्रोध को बखूबी समझ के साथ इसे सीमा के भीतर रख कर एक बेहतर समाज का निर्माण  कर सके। इससे गुरुओं की परंपरा पड़ी। जो एक काल तक बेहतरीन थी और सामाजिक ताना बाना उलझन भरा भी नही था। काम को साध के क्रोध को साधा जा सकता है और जब ये दो चीज़े सध जाती है तो मायावी संसार के दूसरे कारक सध जाते है वासना का ह्रास होता है। इसीलिए बहुत से योग योग्य होने के लिए बनाये गये। इन तीनो के साधने से सामाजिक व्यवस्थाएँ सुदृढ़ होती है। ये सब हमारे हिसाब से भटकेे लोगों को सभ्य रहने देने के लिए हुए।अब वक्त ने करवट ली। हमारा ज्ञान विज्ञान के चलते कहीं पीछे छूट गया। काम ने कामुकता का प्रचुर प्रचार कर उसे हिंसात्मक बना दिया। अत्यधिक लोभ और माया की प्रचुरता ने ढोंग पैदा कर दिया। लोग ढूंढने चले थे शांति मिल गयी वेदना। एक सहज ज्ञान वासना के रूप से बाहर आ विभस्त हो गुनाह हो गया। काम क्रोध माया ने सन्यास को हर लिया। अब सन्यास ले लोग वैकुंठ का सुख पृथ्वी पे भोगने पे आतुर है। और यहीं गीता का ज्ञान आज के संधर्ब को स्पष्ट कर रहा है। एक पुराना गाना है" जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान ये है गीता का ज्ञान ये है गीता का ज्ञान'"।  काम क्रोध माया के वश हो साधु सन्यासी गुरु चेला सब पाप के भागी होते है। चंद्रमा और ब्रह्मा की जीवन गाथा और उनका प्रायश्चित इससे ज्यादा कोई स्पष्टीकरण की किसी को आवयश्कता नही है। बुद्धि भगवान ने दी है। ज्ञान किताबों में लिख दिया गया है। विज्ञान उनन्त है। साधन समस्त है। किसी की शरण में जा के से पहले सौ बार सोचे क्योंकि ज्ञान आप के भीतर ही है।बाकी सब अपने कर्मों के फल भोगेंगे ही पर आपकी गलती भी अज्ञान रहने की थी जिससे वेदना हुई या हो सकती है ।ये ज्ञान आप के लिए है।इसलिये वासना ईश्वर के ज्ञान की हो तो शुभ  नही तो गुनाह की कोई हद नही।
जय हिंद।
****🙏🏾****✍🏼
शुभ रात्रि।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Comments

Popular posts from this blog

रस्म पगड़ी।

🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक  समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस

भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 तक।

🌹🙏❣❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣❣✍🌹 भारतीय संविधान भाग 5 अनुच्छेद 112 से 117 वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया का वर्णन करता है। ये  सरकार की वित्तीय प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग है।हमारे संघ प्रमुख हमारे माननीय राष्ट्रपति इस हर वर्ष संसद के पटल पर रखवाते है।प्रस्तुति।बहस और निवारण के साथ पास किया जाता है।चलो जरा विस्तार से जाने। यहां अनुच्छेद 112. वार्षिक वित्तीय विवरण--(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित  प्राप्ति यों और व्यय  का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में “वार्षिक  वित्तीय विवरण”कहा गया है । (2) वार्षिक  वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में-- (क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर  भारित व्यय के रूप में वार्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित   राशियां, और (ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थाफित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, पृथक –पृथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा   । (3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भार

दीपावली की शुभकामनाएं २०२३।

🌹🙏🏿🔥❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🇮🇳❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🔥🌹🙏🏿 आज बहुत शुभ दिन है। कार्तिक मास की अमावस की रात है। आज की रात दीपावली की रात है। अंधेरे को रोशनी से मिटाने का समय है। दीपावली की शुभकानाओं के साथ दीपवाली शब्द की उत्पत्ति भी समझ लेते है। दीपावली शब्द की उत्पत्ति  संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली,  मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी),