💐**********✍🏼क्रोध बहुत ही अहंकारी है। क्रोध मूलतः अहँकार से ही जन्म लेता है। इसमें मैं का बड़ा अंश होता है। और ये मैं हमारी ज्ञान की विसंगतियों के कारण सदा हमारे आस पास रहती है। क्रोध मूलतः आप में जब घर करता है जब आप की मनचाही स्तिथि नही बन रही होती। मन अप्रसन्न होता है। मन सी उपजी प्रबल भावनायें ज्ञान के प्रकाश को ढक लेती हैं। ये सब ज्यादातर अचानक होता है। ढके ज्ञान से सुनते कान भी बंद हो जाते है। आंखें खुली रहती है पर दिखाई कुछ नही देता। इसी तरह प्रबल भाग्य से जब कुछ छूटता है तो भाग्य भाग्य न रह मन को क्रोध की पीड़ा से भर देता है। कई बार ऐसे अंतर द्वंदों से आप के आस पास बहुत बेखबर लोग आप के किंचित अजीब व्यवहार से आहत हो जाते है। आप भी अपने को अपने व्यवहार से बेखबर आहत कर रहे होते हो। दिमाग पे भोझ बढ़ता है। भोझ बढ़ते हि ये ट्रिप हो जाता है। और सामने वाले से क्या व्यवहार करना है हमे भूला देतां है। और जब क्रोध दिमाग पे हावी होता है तो एक आप बड़े छोटे का लिहाज ही खत्म कर देता है। बिना हड्डी का हथियार चलने लगता है तो सब सुनने वालों के मन में हाहाकार मच जाती है। आप व्यथित हो अव्यवहारिक होने लगते हो। आप को इन सब का क्रोध वश आभास ही नही होता। इस स्तिथि में हम कुछ अपनो से ही उलझ जाते है। उनसे ही विवाद करते है। बहुत बार लोभ वश हम आंखों पे पर्दा डाल अपने परायों में फर्क भूल जाते हैं सब में हम किसी को आहत करें न करें अपने को जरूर कर लेते है। यहां भी भाग्य प्रबल है और कर्म प्रधान। शुद्ध कर्मो की चेष्टा शुद्ध रूप में एक बेहतर उतर प्रस्तुत करती है और मन में शांति बनायें आये रखती है। प्रबल भाग्य शुद्धता मे साथ जरूरत मुताबिक दे ही देता है और आप की हानि की संभावना कम होती है। अशुद्ध कर्म प्रबल भाग्य के अधीन हो कभी कभी अत्यंत नुकसान की संभावनाएं बना देते हैं। इन सब में नुकसान आप ही का हो रहा है। मन खराब होता है। बुद्धि दूषित होती है। जबान से निकले अपशब्द कई बार उम्र भर याद रह जाते है और गाहे बगाहे आप को तंग करते हौ। चेहरे पे भी दूषित भाव आप को शिष्टाचार से भी दूर कर देते हैं। और किसी भी तरह का लालच निर्मल बुद्धि को हर ही लेता है। ये सब में आप मन मैं अशुद्धता भर देते है। तामसिक वस्तुएँ आप को आकर्षित करने लगती है। ये ही सब बुराईयों की जड़ बनती है। क्रोध से दूर रहने की कोशिश करें।मन शांत रखें। मानसिक दबाब कम से कम रखें। तामसिक सेवन भी कम करें। जीवन मधुर हो आप के आस पास खुशियां फैला सकेगा। क्रोध को छोड़ प्रेम यात्रा शुरू कीजये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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