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मेरा देश मेरी जिम्मेवारी।

💐******✍🏼देश की तरक्की उस के द्वारा जनता को दी जा रही सुविधिओं से आंकलन में आती है। ये हम प्रत्यक्ष देख भी सकते हैं। दुनिया में सुविधिओं को लेकर एक जंग लड़ी जा रही है। दुनिया के कुछ भाग मूलभूत सुविधिओं से वंचित हैं और कही कहीं प्रचुर सुविधएं उपलब्ध हैं। जहां ये प्रचुरता में पहुंच गई है शायद जनता वहां बहुत जागरूक हो गयी है। या यूं कहें पढ़ लिख जाने के बाद अपने लिए बेहतर सुविधिओं को अर्जन करने के मकसद से जागरूक हो गए है। नियम कायदे कानून बेहतर तरीके से अपनाते निभाते है। सुविधियाएँ पनपती है और सालों साल उनमे बेहतरी तो आती ही है उनका कार्यकाल भी बेहतर होता है। सुरक्षा इसी में मेहतबपूर्ण अंग है और स्वछता दूसरा। ये आज इस लिए कह रहा हूँ कि दो दिन में दो चीज़े होती देखी। में सुबह सुबह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 16 पे उतर रहा था। और मेरे सामने एक व्यक्ति प्लेटफार्म की दीवार पे मूत्र विसर्जन में लिप्त था। इतने साफ सुथरे प्लेटफार्म पे सुबह 6:45 पे ये हो रहा था। कोई रेलवे या पुलिस स्टाफ भी नही था। मेरे पीछे एक युवक भी ये देख रहा था उससे रहा नही गया। और जोर से कर्कश आवाज़ में गुराते हुए आवाज़ लगाई। उस व्यक्ति ने जैसे ही सुनी फटाफट पैंट की ज़िप ऊपर कर एक तरफ चलने लगा। पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग कृपया बुरा न माने वो पूर्व से था । भाई यो चांटा ही मार देता बहरहाल उसे रोक के पूछा गया कि येही जगह मिली थी। तो वो बोला साहब बहुत तेज़ लगी थी आस पास कुछ था नही और सामने से गाड़ी आ गयी। गुस्सा तो आया पर उसे इसके लिए थपड़ पड़ता तो दुख भी होता। आगे के लिये ऐसा न करें इसका झूठा वादा लेकर जाने दिया।  व्यथा दोनों तरफ है।  सफाई चाहिए पर मूलभूत चीज़े खोजनी पड़ती है और ये नज़र आराम से नही आती। व्यवस्था का असर है। दूसरी घटना आज घटी। में आज शाम मेट्रो में था। आफिस से घर जाने के लिए । जैसे ही ट्रेन राजीव  चौक पहुंची। सवारियां चढ़ गई। में दरवाज़े की बगल में खड़ा था मुझे एक स्टेशन बाद उतरना था। दरवाज़ा बन्द होने लगा। एक आदमी भागता आया और अपना ब्रीफ केस दरवाज़े मैं अड़ा दिया। दरवाज़ा खुल गया। भाई भीड़ में फस गया। मेरे से रहा नही गया और पूछा भाई रोज़ ऐसा करते हो। भाई अकड़ के बोला हां ऐसा ही करता हूँ रोज़ का काम है। मैने कहा किसी दिन फस गए तो। जबाब हाज़िर ब्रीफ केस फसेगा में क्यों। मैंने कहा भाई ये मशीन है इसमें दिमाग नही होता। किसी दिन फस गई और मेट्रो चल गई तो समझीये क्या होगा। बोला कुछ नही होगा। अब कुछ लोग भी उसे घूरने लगे तो उसने आंखे फेर ली। फिर भी मैन सब को सुनाने के लिए कह ही दिया। भाई ये राष्ट्रीय संपति है कोई आप के घर की वस्तु नही। आप को इसे इस्तेमाल की भी तमीज़ होनी चाहिए। तो एक दो और सुनाने में शामिल हो गए। ये देख भाई अगले स्टेशन पे ही उतर गए। हमे खूबसूरत बेहतरीन सुविधाएं सरकार हमारा जीवन स्तर  सुधारने के लिए मुहैय्या कराती है। इनकी स्वछता और रखरखाव का जितना जिम्मा सरकार का है उतना ही हमारा। ये देश को खूबसूरत और सुरक्षित रखना हमारी जिमेवारी है। इसे हर नागरिक को निभानी चाहिए और जहां जरूरत पड़े विरोध के सुर शिष्टाचार के साथ प्रकट करने चाहिये। ये हमारे सपनो का भारत है इसका पूरा जिम्मा इसके नागरिकों पे है। अपनी जिम्मेवारी ईमानदारी से निभाइये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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