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अफवाहों का बाज़ार गर्म हो ,दिमाग में उलझन हो ,रास्ते धुंदले हों ,मन में बेचैनी हो, कुछ ऐसा हो जाये कि हमारे मन की हो जाये। ये ख्याल हर वक़्त सामने आते जाते रहते है। अपने इर्द गिर्द अपने को ही सांत्वना देते हम नज़र आते है।क्या ढूंढते है दूसरे की बात में शायद अपने पकाये खयालों पे मोहर ढूंढते है।ख्याल तो ख्याल ही है। आते है जाते है।स्तिथि बदलती है ये बेचारे भी बदल जाते है। वे भी अफवाहों की तरह हमारे दिल दिमाग में घर कर जाते है।जब तक मन की सुन न लें कहाँ आराम पाते है। बहरहाल अफवाहों का बाज़ार गरम है तो मजे की रोटियां सब सेक रहे है। एक दूसरे के भाव पड़ते नज़रें न जाने क्या खोज रही है।ना जाने कान क्या सुनने को बेकरार है। बहरहाल अफवाहों का बाज़ार गरम है और हम उसमे तपिश में है।कुछ किनारे बैठ बहते लावे को देख रहे है। गर्मी भयंकर है ना जाने किस खास के लिए किनारे खड़े हो ये सब झेल रहे बै। बहरहाल अफवाओं का बाज़ार बेहद गर्म है। कुछ दिल से लगायें है तो कुछ आंख मूंद लिए है। कुछ अपनी ऐसे में स्तिथि मजबूत करने में लगे है। पेट तो सबको लगा है । परिवार तो सबका है। मुह में कोर तो डालना ही है। बहरहाल अफवाओं का बाज़ार गर्म है। कुछ कोप भवन में शायद जा बैठे है। कुछ ऊपर से अपने को संतुलित दिखाने का प्रयास कर रहे है।उलझने तो उनके मन में भी बहुत है पर सुलझाने का वक़्त जा चुका है। बहरहाल अफवाओं का बाज़ार गर्म है। कुछ दिल से लगा बेठे थे। कुछ मन मनोस के ही चिपके थे तो कुछ समय काट रहे थे। आज तक का साथ तो ईमानदारी का था। ये अचानक क्या हुआ कि सब धुल गया। क्या कहें भाई अफवाओं का बाजार गर्म है। तीर तरकश में बहुत से है मगर अब चलायें किसपे। जहां चलाने थे वहां के तो अब हम हुए जाते है। बहरहाल अफवाओं का बाज़ार गर्म है और हम वक़्त पे सब छोड़ अपने कर्म का साथ दिए जाते है। ये तो यू चलेगा । बदलाव जीवन का नियम है। आज यहां तो कल वहां किसे खबर है। बहरहाल अफवाओं का बाज़ार गर्म है। बिके या न बिकें पर विश्वास तो डोल ही गया हमारे तरकश के तीर को क्या पता था के निशाने पे तो हम ही हैं। जिन्हों को अपने ने ही लूटा तो अब जमाने से क्या गम है। बहरहाल हमारे आफिस में अफवाहों का बाज़ार गर्म है।
जय हिंद।
मेक इन इंडिया को सादर प्रणाम।
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शुभ रात्रि।
कर्म पे ध्यान दिजीये फल विदेश में है🤣
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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