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आज मैं हमारे भगवान के यहां गृहशांति का मंत्र खोज रहा हूँ। भगवान शिव पार्वती जी के साथ कैलाश पे बहुत सुखी है। विष्णु लक्ष्मी जी साथ क्षीर सागर में शेषनाग शय्या पे आनंद मगन है और बैकुंठ में शांति है। ब्रह्मा जी गायत्री जी के साथ ब्रह्मलोक में आनंद ले रहे है। बहुत सकून का जीवन व्यतीत कर रहे है। किस कारण इतना शांत जीवन ?सब की अर्धांगनियाँ खुश है। मजा हो रहा है। आनंद चल रहा है। मायालोक के जम्बूदीप में विराजती मायारूपी लोकस्वरूपी जनता गुणगान कर रही है। पर पति पत्नी का ये रिश्ता बड़ा शांत है। जब देखो कोई झगड़ा नही।हमेशा साथ साथ सर्व लोक भ्रमण और वो भी हंसते हंसते। सर्वत्र आनंद ही आनंद। राज क्या है? और ये राज इस दुनिया पे कब खुलेगा? बड़ा सीधा पर उलझा प्रश्न है। सब लोग मिल के पार्वती जी की लक्ष्मी जी की और गायत्री जी की सास को ढूँढ़िये बस।दो बर्तनों में से एक गायब? खड़केंगे कब? बड़ी समस्या है जी। बर्तन खड़क नही रहे तो तांडव होगा कब? प्रश्न पे प्रश्न उलझते जा रहे है। सोचो एक बार शिव जी को ससुर जी दक्ष प्रजापति ने तंग कर दिया। तो सती के शोक में भयंकर तांडव हुआ। अब सोचिये पार्वती जी को सास का वर मिला होता यो शिव जी का क्या होता। कैलाश छोड़ कहाँ जाते? क्या रोज़ तांडव होता। क्या रोज़ हिमालय हिलता?प्रलय होती। इस जम्बू दीप का क्या होता? अब लक्ष्मी जी को अगर सास का वर मिल जाता तो? भगवान विष्णु क्षीर सागर की गहराइयों में गोते लगा रहे होते। शायद शांति कही ढूंढ़ तपस्या में लिप्त हो जाते। वर्ना रोज़ सुनामी का भयं सताता हमें। समुद्र बिना मतलब ही रोज़ उग्र हुआ रहता। बेचारे मछुआरों का हाल बुरा होता। और अगर विष्णु भगवान इनसब में उलझे रहते तो हमे पालता कोन? अब ब्रह्मा जी ने ये सृष्टि की रचना तो कर दी । बहुओं को सास भी थमा दी। अब ये सोचिये अपना घर बचा के ही रखा। नहीं तो कोन से लोक में जगह मिलती जहां शांति के कुछ पल नसीब होते। न भावनाओ का कत्ल होता न रिश्तों की दुहाई और न आंसू का सैलाब न खुद्दारी की दुहाई न रोज़ रोज़ मीन मेख होती न हर बात पे दोनों और से खिंचाई। भगवान तो भगवान है इसलिए कोई इल्ज़ाम नही कुछ तो उनको भी मनोरंजन करना था न। वहां उनके लोक में कोन से टेलीविज़न इंटरनेट लैपटॉप पे वो ये सब देखते है। वो हर वक़्त हमारी मनुष्य लीला को देख अपना आनंद लेते है। फुल टाइम सास बहू एंटरटेनमेंट। फ्री फ्री फ्री। ये आपके लिए फ्री नही है प्लीज।आपको दोनों तरफ की टिकट न चाहके भी खरीदनी पड़ती है। और आप भी इसका लुत्फ रोज़ ले सकते है बशर्ते उलझे नही। भगवान के मनोरंजन की व्यवस्था जारी रहनी चाहिये।इसमें कोई समझौता नही। क्या मालूम येही निर्वाण हो।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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