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खूबसूरत ख्यालों की दुनिया असल दुनिया से अलग क्यों होती है? खूबसूरत ख्याल क्यों आते है? हम सब की एक अपनी दुनिया होती है। सदा आम दुनिया से दूर । दिल के बेहद नजदीक। हम संसार को अपनी एक मन की निगाह से देखते है। जहाँ सब मन मुताबिक हो ऐसी मन एक तस्वीर पेश करता है।इस तस्वीर के बहुद सुखद पहलू होते है। मन के अंदर ही जिये जाते है। बिल्कुल महफूज़ ।देश दुनिया की सख्ती से दूर। जीवन में बहुत से ख़्वाब हम देखते है। जब बचपन था तो सोते हुए भी खेलते थे सपनो में प्यार के झगड़े करते थे सपनो में।सोते सोते बड़बड़ाते थे तो माता पिता शायद हंसते हो ये सब नज़ारा देख के। फिर कुछ जवानी की तरफ बढ़ने लगे। कुछ अपना भविष्य बनाने के ख्यालों में खो अपनी चाहत की दुनिया का ताना बाना बुनने में व्यस्त हो गए। कुछ इश्क़ मुश्क़ में उलझ के खयालों की दुनिया जीने लगे।कुछ खयालों को दबा के जीवन का भोझ भी शायद ढोने लगे।फिर भी दबे और भोझ से पटी जिंदगी रात होते ही हसीन ख्यालों में खोने से नही चूकती। फिर और बड़े हुऐ जीवन सामाजिक होने लगा। रिश्तों की जकड़ मजबूत होने लगी । बंधन हो गये। अब बहुत से पकते ख्यालों की मंजिल भी आ गयी। ख्याल तो ख्याल है और ख्वाबों में आते जाते रहते है। मगर दुनिया से तो दूर ही थे। सहसा बहुत से ख्याल गलत भी साबित हुए और फिर सपनो में समा गए।जीवन अपनी रफ्तार से भागता रहा। परिवार ने ख्यालों की जगह लेने की कोशिश शुरू कर दी। ये भी ढीढ हैं। फिर सुखद एहसास लिए आ धमकते है। रोज़ नया ताना बाना बुनने लगते है। जैसे ही अकेले हुए घेर लेते है। मन की दबी कुचली इच्छाओं को पूरा करने की किवायत में जुट जाते है। हम अपने में फिर गुम होने लगते है। और नया कुछ मन में धार लेते हैं। यहीं से फिर अपनी ख्वाबों की राह पे दौड़ पड़ते हैं।ये दौड़ हम बहुत बार मजबूत इरादों की बदौलत जीत भी लेते है। बहुत कुछ खो भी देते है। मगर सुखद एहसास बहुत बार कुछ टूटने की आवाज़ से भी दूर ले जाता है। ख्याल ख़्वाब हसीन तो होते है मगर दुनिया की ठोकरों से हमेशा दूर होते है। इनसे मन हमेशा खुश तो होता है और एक जीवन अमृत का संचार भी बनाता है। ख्यालों की मधुरता आप में संजीवनी होती है। हर दबी प्रस्थिति में राह निकाल लेने की क्षमता रखती है। ख्यालों की दुनिया हमेशा आप की आज की दुनिया से बेहतर होती है। ये आज से शायद बहुत आगे होती है।मगर ये हमेशा बेहतरी के लिए जी जा सकती है और जीने भी चाहिये। आप दुनिया में अपने ख्वाबों की ख्यालों की दुनिया ढूंढोगे और ये दुनिया ही हमेशा रोड़ा बन के खड़ी रहेगी। ये मन की आवाज़ है उठती रहेगी और दुनिया शायद दबाने मि भरकस कोशिश करेगी। न ये ख्याल रुकेंगे न आप और न ये दुनिया । तो दोस्तों ख्यालों को जी भर के जियो और जहां तक संभव हो सके पहुंच जाओ। एक मंज़िल पे पहुंचोगे तो दूसरी नज़र आयेगी। ख्याल रहे ख्यालों की दुनिया है आप से दो कदम आगे ही रहेगी।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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