आज एक प्यारा शब्द सुना 'निराला' । जो कुछ आम दुनिया से अलग हो एक अलग सोच का मालिक हो एक अलग हुनर लिए हो एक अलग पहचान रखता हो। रोज़ आते जाते एक चौराहे से गुजरते एक मूर्ति देखता हूँ। आदरणीय सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'। उनकी कृतियाँ भी अदभुत थी। अनामिका उनमे से एक थी। इंसान निराला कई मायनों में हो सकता है। आप एक आब भाव निराले हो सकते है। आप की ऊँच निराली हो सकती है। आप के पहचान निराली हो सकती है। आप के गुण अवगुण निराले हो सकते है। आप की चाल ढाल निराली हो सकती है। आप के पहरावे निराले हो सकते है। आप के कर्म निराले हो सकते है।आप का खान पान निराला हो सकता है। आप की फितरत निराली हो सकती है। आप के दोस्त भी निरालों का संगम हो सकते है। कितना कुछ है एक इंसान के भीतर जो उसको बेहद अलग रूप में दुनिया की भीड़ में प्रस्तुत कर सकता है। ब्रेक डांस निराला था उसको ईजाद करने वाला भी निराला था। वहीं आर्कमडीज़ भी निराला वैज्ञानिक था। आप कई प्रतिभाओं में निराले हो सकते है। कुछ अलग होने चाहिये बस। बस्तियां भी निराली हो सकती है। उनमें रहने वालों का सामाजिक परिवेश भी निराला हो सकता है। आप कैसे किसी भी अपनी काल्पनिक उड़ान को रंग दे उसे पूरा करने की कवायत में जुट जाते हो कभी कभी। आप भी इसका एहसास नही कर पाते और जब आप इसमें डूब कर हर वक़्त इसी में मगन हो समाज की आंखों में अपना रंग देखना छोड़ देते हो आप का पहला पथ निराला बनने की तरफ होता है। बढ़ते जाईये और एक दिन आआणि निराली मन चाही भेंट अपने प्रयत्नों से पाइये। निराले श्रद्धा के पात्र भी होते हैं और हंसी के पात्र भी बन जाते है। पर जो धुन के पक्के होते है कहीं न कहीं अपना मुकाम पा मुह से कहलवा ही देते है 'भाई या छोरा तो घना करतूती है यू तो सचमुच निराला सें'। और निराले ही अपने पावं के निशान इस जहां छोड़ के चले जाते है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को शत शत नमन। किताबों के साथ साथ उनकी खूबसूरत प्रतिमाएँ भी उनके निशान छोड़ने के सबूत युगों तक रहेंगे। निराले विरले ही होते हैं। विरलों की जगह इतिहास में बन ही जाती है। पप्पू।
🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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