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भगवान ने ये शरीर काया दी । एक बेहद जटिल मशीन बना दी। इसे आज तक विज्ञान पूरी तरह समझ नही पायी। इस मशीन को चलाने के लिए भी तरह तरह के ईंधन लगते है।वायु पानी भोजन इत्यादि इत्यादि। और बचपन में माँ के गर्भ से बाहर आने के बाद से ये सिलसिला शुरू हो जाता है। बच्चा पैदा होने के साथ मां के दूध के सेवन से ताकत पाता है। मशीन चल पड़ती है। बनने लगती है । धीरे धीरे मशीन भोजन के तरफ बढ़ती है। ये भोजन में मशीन वही और उसी तरह का स्वाद ढूंढती है जो पैदा होने के समय और अपने बचपन में लिया था। जीभ की स्वाद ग्रंथियां जैसे जैसे इंसान रूपी मशीन बढ़ती है अपना स्वाद ढूंढ़ लेती है। अब यहां से एक कला समाज को मिलती है। वो है पाक कला।पाक कला में निपुणता एक ऐसी कला है जो किसी के भी दिल में बहुत आसानी से उतर जाती है। पाक कला को जानने वाला इंसानी स्वाद को बखूबी समझता है। और जो इसे समझ गया समझिये अपने आधे जीवन का स्वामी हो गया। और प्रेम मुफ्त में पा जाता है। आज का मेरा संधर्ब हमारे घर में विराजे पाक महारथियों पे है। और एक बात और याद आ रही है। जो जैसा भोजन ग्रहण करता है उसका व्यवहार भी वैसा ही देखने को मिलता है। तो तामसिक स्वादिष्ट भोजन आप के अंदर तामसिक प्रवृति का सृजन भी करती है। पर एक बात सच ये है भोजन तामसिक हो या सात्विक मगर स्वाद सर्वदा आप को खींच ले जाता है। ये मशीन क्या कमाल की है अपने को चलाने के लिए पृथ्वी पे पायी जाने वाली ज्यादतर चीजें भोज्य और भोग्य बना ली है। और स्वाद के पीछे भागते भागते होटलों रेस्टोरेंटों ढाबों फ़ूड चैन पेय पदार्थों के ब्राण्ड न जाने क्या क्या बन गया है। सिर्फ एक ही चीज़ अपनी पाक कला से बनाये स्वाद को चखने दुनिया भागी आती है इंसानी जीभ का स्वाद।ये ही हमारे घर पे हम या तो खुद बनाने की कला सीख लेते है ये फिर माँ और बीवी अपने हाथों से बने स्वादिष्ट खाने से आप का दिल जीत आपको प्रसन्न कर स्वास्थ्य लाभ भी देती है। आप के इर्द फर्द फैले समाज में कहीं न कहीं आप एक ज्यादा खुशी का अनुभव करते हो। बाहर के खाने की इच्छा कम होती है। मन आनंद में जा प्रसन्ता महसूस करता है। स्वादिष्ट खाना प्रेम उत्तपन करने में सक्षम है। ये आप को भावनात्मक रूप से और गहराई में उतारने में सक्षम है। इसलिए हमारे समाज में ये कला घर की बेहतरी के लिये स्त्रियों में बचपन से ही डालने की कोशिश की जाती है। मर्दों में ये कला अगर स्त्रियाँ बुरा न माने तो शायद ज्यादा बेहतर व्योपारिक मायनो में देखने को मिलती है।फिर भी वे सब घर में स्वाद अपनी बीवी या माँ बेटी के हाथ का हो ढूंढते है। पाक कला आप को बेहतर ढंग से जीवन में जरूरी मसालों के मिश्रण को सीखाने में भी सक्षम है। अपनी बेहतरी के लिए इसे एक बार अपनाईये शायद कुछ नया जीवन में एहसास और मनोरंजन हो जाये।ये मशीन की पूर्ति आप अपने आप अपनी पाक कला से भी कर सकते हैं।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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