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बहुत से व्यक्तित्व आप को प्रभावित करते हैं आप के जीवन काल में।जब बचपन था तो माता पिता से बेहतर कोई नही। उनकी बौद्धिक क्षमता से ज्यादा कुछ दुनिया में नही। आप को हर चीज़ का जबाब उनके पास नज़र आता है। और बात भी सही है। बचपन के ज्यादतर सवाल माँ बाप अच्छे से हमे समझा सकते है। वो ज्यादातर आम प्रश्न होते थे या फिर छोटी कक्षा के जिन्हें ज्यादातर माँ बाप हल करने की स्तिथि में होते थे। इसलिए हमारे लिए बचपन के हमारे प्रेरणा स्रोत्र भी होते है। पहली शिक्षा किसी भी इंसान को घर से ही मिलती है। घर पे दादा दादी माता पिता और भी रिश्तेदार हमारे शुरू शुरू के शिक्षक बनते है। और ये बात पूरी उम्र आप को राह दिखाती रहती है। पूरे जीवन का सार बड़े बजुर्ग हमे संक्षिप्त में समझा पाते हैं। ध्यान से अपने जीवन में इन सब का योगदान देखिये तो पता चलेगा कि बहुत कुछ हम उनके चश्मे से देखने की कोशिश करते रहते है। ये बचपन में मिले सहज ज्ञान का प्रभाव होता है। जो पूरी उम्र संग ही रहता है। सहज और व्यवहारिक ज्ञान ज्यादातर घर से ही मिलता है। स्कूल में सीखने या सिखाने पे भी बहुत बार बच्चों में बदलाव नही आता।हम हमेशा इसकी शिकायत स्कूल के मथे मढ़ते रहते है। जो शायद सही नही होता। बचपन के समय दिमाग बेहद विकासशील होता है। हर चीज़ को बहुत जल्दी पकड़ता है अपनी उम्र के हिसाब से। जब हम बड़ी क्लासों में पहुंचते हैं तो बहुत से काबिल व्यक्तित्वों से मुलाकत होती है। इसमें शिक्षक से लेकर शोधकर्ता तक के विभिन्न पेशे से के लोगों का संगम हो सकता है। धीरे धीरे हम आपने आस पास की दुनिया से सीख के अपनी राह चुनने की कोशिश करते हैं। बहुत से व्यक्तित्व हमे इस दौरान प्रभावित करते रहते हैं।हमारा आंकलन बचपन में मिली शिक्षाओं के दायरे में ज्यादा होता है। नज़रिया बहुत कुछ बचपन से सीखी देखी दुनिया का सार लिए होता है। ये आंकलन आप अपने ऊपर कर के देख लीजये। आप को अपने आस पास की दुनिया की सोच से आप की सोच किंतनी प्रभावित होती है उसका ज्ञान हो जायेगा। इसलिए कहा ही गया है संगत का असर तो होता ही है। जैसी संगत वैसी सोच। बच्चे बाहर ही संगत नही बनाते घर भी उनकी सबसे बड़ी संगत है। एक बेहतर नागरिक बनाने के लिये आप के घर की संगत भी बड़ी मेहतबपूर्ण है इसे समझने में जरा मुश्किल होती है। इसलिए अपने व्यक्तित्व को बेहतर कीजये और रखिये बच्चे आप को बड़ी आस से देख रहे हैं।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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