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पुराने समय से हमारे यहां आदर भाव दिखाने के कई तरीके बताये गये है। गुरु शिष्य परंपरा सदियों पुरानी है। गुरु का आदर उसकी सेवा और उसकी मर्यादा का आदर शिष्य की शिक्षा का प्रथम अध्याय होता है। प्रथम गुरु माँ होती है। उसके चरण वंदन से कई शिक्षाएँ हाथ लगती हैं। पहला आदर भाव से झुकना जो आप में शालीनता का पहला सबक देता है। बड़ों के प्रति कृतज्ञता का भाव उत्तपन करता है। आप में समर्पण का संदेश अनुग्रहित करता है। इससे प्रथम आप के सामने वाले के हृदय में प्रेम भाव आप के प्रति उत्पन होता है। ये प्रेमभाव आप के प्रति आकर्षण को जन्म देता है। ये आकर्षण आप को बुनियादी शिक्षा के पहले सफ़े से सफलता का परिचय करा देता है। जिसने गुरु की नज़र में आकर्षण पैदा कर लिया और अपने लिए स्नेह। उसका सफल होना तह है। हर समाज ने अपने आदरभाव के तरीके विकसित किये है। एक अदब को जन्म दिया है। अंग्रेज़ गले मिलते है। मुस्लिम अदब से सिर झुका सलाम बजाते हैं। हिन्दू नमस्कार करते है। ये अदब समाज की विशिष्ट पहचान भी है। संसार की दूरियां सिमट रही है। संसार सिमट गया है। दुनिया के तौर तरीके आप के दर आ पहुंचे है।अब आप ने माँ को तो गुरु का हिन्दू होने के नाते अपनी तहज़ीब से ओहदा दे दिया। और सीख सीख ली के झुक के भी संसार जीता जा सकता है। पहला सबक आप स्कूल में दोहरा पाते हो या नही आज की शिक्षा व्यवस्था पे निर्भर है। शिक्षक के पांव हाथ लगाना।कोई कह रहा था वक़्त के साथ सब बदल जाता है और बदलते वक़्त के साथ हमे भी बदल जाना चाहिये। पांव हाथ लगाना न लगाना औपचारिकता का विषय मात्र है। जिसे समय के साथ बदल जाना बेहतर है क्योंकि अब हमें पांव हाथ लगाने का तरीका भी मालूम नही। याद रहे मंदिर अभी गिरिजा बना नही है वहां जा के हमे बहुत सी अपनी मान्यते याद आ जाती है या जो हम ने देख के सीखी है उसका असर नज़र आता है। हिन्दू एक जीवन पद्यति है। इसमें समाहित शिक्षाएँ वैज्ञानिक हैं। जिनको बहुत शोध से हमारे ऋषि मुनियों ने समझा है और शिक्षा का जरूरी अंग बनाया है। हमारा व्यवहारिक विज्ञान और समाजों से बेहतर रहा है। इन्हें भूल के आगे बढ़ना शायद हमारी सबसे बड़ी भूल हो। पैसा ये ज्ञान देने में सक्षम नही है आपूति विध्वंसक जरूर है। अपने अदब को नई ऊंचाई देना हमारा अपना कर्तव्य है। बाकी सोच अपनी अपनी इसमें कोई किसी से विवाद नही। सब अपने जीवन में अपने तरीके से खुश रहे ये हमारी सब के लिये दुआ है। हम अपनी संस्कृति के संग्रक्षक है इतना एहसास को होना जरूरी है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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